जानलेवा दवाओं के मकड़जाल से बच्चाें काे बचाना जरूरी

    17-Oct-2025
Total Views |

thoughts
 
बीते कुछ हफ्ताें में कई राज्याें में कफ सिरप से जुड़ी बुरी घटनाएं और बच्चाें की माैत की खबरें सामने आई हैं. 2019-20 की सर्दियाें में जम्मू में भी ऐसा ही कुछ हुआ था. 2023 में कैमरून, गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में हुई माैैंताें काे लेकर भी भारतीय कफ सिरप के कुछ ब्रांडाें की गुणवत्ता पर सवाल उठे थे. अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘इन घटनाक्रमाें पर गहरी चिंता जताई है और भारत में बेची जाने वाली दवाओं में डायथिलीन ग्लाइकाेल (डीईजी) एथिलीन ग्लाइकाेल (ईजी) की मात्रा की जांच में हाेने वाली गड़बड़ियाें की ओर इशारा किया है.अपनी हालिया विज्ञाप्ति में उसने गैर-कानूनी तरीके से कफ सिरप के निर्यात काे लेकर चिंता जताई है और राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण से विशेष ताैर पर अनाैपचारिक व अनियमित बाजाराें में निगरानी करने का आग्रह किया है.अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने भी इस संबंध में एडवाइजरी जारी की है.
 
भारत के राष्ट्रीय नियामक-केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठ्न ने बताया है कि कफ सिरप के तीन ब्रांडाें में अधिकृत मात्रा से काफी अधिक डीईजी पाया गया है, पर इनमें से काेई भी उत्पाद भारत से निर्यात नहीं किया गया था.’ विभिन्न एजेंसियाें के शुरुआती जांच-नतीजे बताते हैं कि जाे 19 मामले सामने आए थे, उनमें या ताे निजी चिकित्सकाें द्वारा ये दवाएं लिखी गई थीं या आस-पड़ाेस की दवा दुकानाें से बिना डाॅ्नटरी पर्चे के इनकाे खरीदा गया था. अब दाेषी कंपनियाें के खिलाफ केंद्रीय व राज्य औषधि नियामक कार्रवाई कर रहे हैं.दुर्भाग्य से ऐसी घटनाएं अन्य देशाें में भी घट चुकी हैं. इंडाेनेशिया में 2023 में किडनी खराब हाेने के 323 मामले सामने आए थे और 190 माैतें हुई थीं. यह सभी मामले इंडाेनेशियाई दवा कंपनियाें से जुड़े थे.
 
उस साल विश्व स्वास्थ्य संगठ्न (डब्ल्यूएचओ) काे सात देशाें में कफ सिरप से करीब 300 माैताें की सूचना मिली थी. इन घटनाओं की वजह डीईजी और ईजी मानी गई थीं.सवाल है कि ईजी ्नया है और ये कफ सिरप काे कैसे जहरीला बना देते हैं? दरअसल, ये ऐसे घुलनशील द्रव हाेते हैैं, जाे अत्याधिक विषैले हाेते हैं. बच्चाें के लिए इनकी थाेड़ी सी मात्रा भी घातक हाे सकती है. दरअसल, कफ सिरप बनाने में औषधीय ग्रेड शुद्धता स्तर 99.5 प्रतिशत से अधिक वाली ग्लिसरीन का उपयाेग किया जाता है. डीईजी और ईजी का प्रयाेग ग्लिसरीन में मिलावट के रूप में ही हाेता है. इसके जहर से शुरू-शुरू में छाेटे बच्चाें में सुस्ती, पेट दर्द, उल्टी व दस्त जैसी समस्याएं पैदा हाे सकती हैं, और बाद में सांस लेने में तकलीफ, गुर्दे का फेल हाेना, यकृत नुकसान जैसे गंभीर लक्षण दिख सकते हैं. इनसे बच्चाें के काेमा में जाने या माैत का खतरा भी रहता है.
 
डाॅ्नटर जानते हैं कि कफ सिरप का ‘प्लेसीबाे प्रभाव’ 40 से 85 प्रतिशत तक हाेता है. प्लेसीबाे ‘दिखावटी इलाज’ (जैसे-चीनी की गाेली दे देना) से मरीजाें पर पड़ने वाला मनाेवैज्ञानिक प्रभाव है, जिसमें वे खुद काे स्वस्थ महसूस करने लगते हैं. यह भी एक वजह है कि भारत में कफ सिरप का बाजार सालाना 10 फीसदी की चक्रवृद्धि दर(सीएजीआर) के साथ एक फलता-फूलता उद्याेग है) साल 2024 में यह 6.25 कराेड़ डाॅलर का बाजार था, जिसके 2035 तक 74.3 कराेड़ डाॅलर तक पहुंचने की उम्मीद है. इसमें वृद्धि के कयास इसलिए भी लगाए जा रहे हैैं, क्योंकि प्रदूषण से सांस संबंधी मामले (विशेषकर बच्चाें और बुजुर्गाें में) अपेक्षाकृत बढ़ने लगे हैं.इन प्रतिबंधित या गलत दवाओं का सेवन कैसे राेका जाए? इसके लिए कुछ ढांचागत कमियाें काे दूर करना हाेगा.
 
मसलन, भारत में दवा बनाने वाली करीब 10,500 फै्नटरियां हैं, जिनमें से 8,500 काे सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्याेग माना जाता है. मगर स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत काम कर रहे केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठ्न (सीडीएससीओ) और राज्य-स्तरीय खाद्य एवं औषधि प्रतिष्ठानाें में कर्मचारियाें की भारी कमी है. आदर्श व्यवस्था ताे यही है कि हर 50 फै्नटरियाें पर एक औषधि निरीक्षक और प्रत्येक 200 दवा दुकानाें पर एक निरीक्षक की नियु्नित हाेनी चाहिए.मगर सी डीएससीओ में औषधि निरीक्षकाें के करीब 40 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं. महाराष्ट्र में, जहां बड़े पैमाने पर दवा फै्नटरियां हैं. कथित ताैर पर 77 प्रतिशत पद र्नित हैं. इन कर्मचारियाें काे न सिर्फ दवा बनाने वाली फै्नटरियाें पर, बल्कि दवा दुकानाें, थाेक विक्रेताओं और ब्लड बैंकाें पर भी कड़ी निगरानी रखनी हाेगी.
 
निस्संदेह, ग्लिसरीन में डीईजी या ईजी की मिलावट मुख्य मुद्दा है, पर इसकी वजह औद्याेगिक प्रक्रियाएं और वैश्विक बाजार भी हैं. जून,2025 का आंकड़ा कहता है कि फार्मा,पर्सनल केयर और अन्य उद्याेगाें में भारी मांग के कारण भारत में ग्लिसरीन की कीमताें में बीते 13 महीनाें में करीब 45 फीसदी की वृद्धि हुई. औषधीय श्रेणी के गिल्सरीन, पाम ऑयल जैसे प्राकृतिक स्त्राेताें से तैयार किए जाते हैं. भारत इसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशाें से खरीदता है. इंडाेनेशिया और मलेशिया हमारे प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं.आयात पर निर्भरता बाजार काे वैश्विक उथल-पुथल से प्रभावित करती रहती है, नतीजतन पाम ऑयल की कीमतें बढ़ते ही ग्लिसरीन के दाम बढ़ जाते हैं और मिलावट का गाेल शुरू हाे जाता है. -राजीव दासगुप्ता