गाैरवशाली इतिहास वाला बिहार आज विकास की दाैड़ में पीछे क्यों है?

    20-Oct-2025
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बिहार का इतिहास बहुत ही गाैरवशाली है. पाटलिपुत्र यानी राजधानी पटना स्थित माैर्य साम्राज्य अखंड भारत का पहला विश्वसनीय उदाहरण है. शिक्षा के क्षेत्र में भी बिहार की उपलब्धियां गाैरवशाली हैं. यहां विश्व का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा सहित विक्रमशिला जैसे ज्ञान के केंद्र पांचवीं से 12 वीं शताब्दी तक फलते-फूलते रहे.अपने शीर्ष पर नालंदा में दस हजार छात्र और शिक्षकाें की उपस्थिति दर्ज की गई थी. शताब्दियाें तक नालंदा में न सिर्फ भारत, बल्कि एशिया के कई देशाें सहित चीन से भी विद्वान ज्ञानार्जन के लिए आते रहे. नालंदा ही पूर्वी एशिया में पुस्तकालयाें के निर्माण का प्रेरणा स्राेत बना.प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्यभट पांचवीं शताब्दी में पाटलिपुत्र आकर ही रहने लगे थे. बिहार शायद देश में ऐसा पहली प्रांत है, जहां काैटिल्य के अर्थशास्त्र के जरिये न्याय और शासन के माैलिक सिद्धांत दिए गए.
 
पाटलिपुत्र सामाजिक सेवाओं और खासताैर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी अग्रणी था. पाटलिपुत्र अपने सभी नागरिकाें के लिए नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए जाना जाता था.फिर 16वीं शताब्दी में बिहार से निकले शेरशाह सूरी के साम्राज्य का दाैर भी गाैरवशाली रहा. अधाेसंरचना काे लेकर उसकी परिकल्पना अपने समय से कहीं आगे थी, जिसका परिचय हमें गैं्रड ट्रंक राेड के रूप में मिलता है, जाे आज भी भारत का प्रमुख राजमार्ग है. अतीत में कई दाैर ऐसे आए, जहां बिहार ज्ञान और सामाजिक समानता का केंद्र रहा. इसी राज्य में जागतिक वर्गीकरण और लिंग आधारित भेद के खिलाफ सबसे पहले आंदाेलन हुए.सामाजिक-राजनितिक विषयाें में सक्रिय भूमिका बिहारियाें का खास गुण है. आजादी के आंदाेलन के प्रणेता महात्मा गांधी ने सबसे पहले 1917 में बिहार के चंपारण में सत्याग्रह से शुरूआत की थी. इस अहिंसक आंदाेलन ने भारत में सत्याग्रह की नींव रखी.
 
स्वतंत्रता मिलने के बाद 1974 का बिहार आंदाेलन राज्य की राजनीतिक चेतना का उदाहरण बना, जिसकी शुरुआत किसी राजनीतिक पार्टी ने नहीं, बल्कि स्थानीय छात्राें ने की थी. इसका नेतृत्व कर रहे गांधीवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने शुरू में ताे बिहार सरकार में भ्रष्टाचार और कुशासन काे चुनाैती दी, लेकिन जल्दी ही वह आंदाेलन देश भर में इंदिरा गांधी सरकार के विराेध में बदल गया.इससे भ्रष्टाचार और सरकारी एजेंसियाें द्वारा मानवाधिकाराें के हनन का विराेध किया. जयप्रकाश नारायण की ‘संपूर्ण क्रांति’ ने केंद्र सरकार काे सबसे बड़ी चुनाैती दी, जिसके फलस्वरूप आपातकाल की घाेषणा हुई.बिहार की ये सूचनाएं केवल सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्व की नहीं हैं, बल्कि राज्य जिन परेशानियाें से जूझ रहा है, उनके समाधान में भी प्रासंगिक हैं. बिहार साक्षरता की कमी, खराब स्वास्थ्य सेवाओं, अविकसित मूलभूत ढांचा, ऊर्जा की कमी, जाति व लैंगिक असमानता से जूझ रहा है.
 
बिहार कैसे और क्यों पिछड़ गया? इसके बहुत से कारण हैं, जिनमें कुछ खास बिहार की ही उपज हैं, जैसे कमजाेर शासन और भूमि सुधार में उदासीनता. इसके पिछड़ने के कुछ बाहरी कारण भी हैं, जैसे राज्य के बंटवारे के कारण संसाधनाें का क्षरण और मालढुलाई की दराें का सामान्यीकरण.ब्रिटिश शासन का बिहार के विकास पर लम्बे समय तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. सबसे पहले ताे लाॅर्ड काॅर्नवालिस के नेतृत्व में 1793 में स्थायी समझाैते के तहत लागू की नई जमींदारी व्यवस्था बहुत हानिकारक साबित हुई. इस प्रणाली में ही जमींदार के लिए राजस्व की एक राशि तय कर दी गई और राजस्व काे पैदावार से जाेड़ना बंद कर दिया गया.
इसने बिहार में कृषि उत्पादन काे मिलने वाले प्राेत्साहन काे खत्म कर दिया. दूसरा पहलू था, 1948 में मालढुलाई दराें में समानता जिसमें लाैह अयस्क, काेयला और दूसरे खनिजाें की कीमतें पूरे देश में समान कर दी गईं.
 
इससे खनिज समृद्ध बिहार काे औद्याेगिक उत्पादन के लिए कम लागत वाले खनिज स्राेत का जाे फायदा मिलता, नहीं मिला. साथ ही बाहर के उद्याेगाें, के पास यहां स्थानांतरित हाेने की काेई वजह ही नहीं बची, क्योंकि वे यहां के खनिजाें काे उसी दाम पर मुंबई, काेलकाता या चेन्नई में खरीद सकते थे. इसी कारण बहुत से वाहन उत्पादक, जिन्हें इस्पात की जरूरत हाेती है, उन्हाेंने बिहार के बजाय पश्चिमी राज्याें में अपने उद्याेग लगाए. इससे बिहार में औद्याेगिक विकास नहीं हाे पाया और राज्य के औद्याेगीकरण काे हानि हुई. इस कारण बिहार बिहार के सकल घरेलू में संतुलित विकास के बजाय प्राथमिक क्षेत्र (कृषि) का ही बाेलबाला बना रहा.
 
हाल के दाैर में 1990 से 2005 के बीच विकास की प्राथमिकता ही खत्म हाे गई. यह कहा जाता है कि तत्कालीन सरकार ने जान-बूझकर सरकारी नाैकरियाें में भर्ती काे कम किया, क्योंकि उसे लगता था कि इसका अधिकतम फायदा सवर्णाे का मिलेगा. सत्तापक्ष का सारा ध्यान उन लाेगाें के उत्थान पर था, जिन्हें दलित और शाेषित माना जाता है. इस दाैर में असल आमदनी ठहर गई और एक प्रतिशत के हिसाब से बढ़ती रही.इसके अलावा, एक कारण ऐसा था, जिस पर बिहार का काेई नियंत्रण नहीं था और वह था केंद्रीय सरकाराें द्वारा उपेक्षापूर्ण रवैया यह हाल की सरकाराें तक में समान रूप से देखा जा सकता है. ब्रिटिश शासन ने बिहार और ओडिशा काे मिलने वाले राजस्व काे दूसरे राज्याें में बांटा, जिसके कारण यहां शासन, स्वास्थ्य, शिक्षा पर न्यूनतम प्रति व्य्नित निवेश ही हाे पाया. स्वतंत्रता के बाद भी कमाेबेश यही परिपाटी चलती रही, जिससे प्रांतीय असामानता ही नहीं , बल्कि बिहार काे क्षति भी पहुंची. - एन. के. सिंह, अर्थशास्त्री व पूर्व राज्यसभा सांसद