प्रश्नः आपने बताया कि प्रेम नीचे गिरे ताे वासना बन जाता है और ऊपर उठे ताे प्रार्थना. वासना कई अर्थाे में स्पष्ट है, और प्रार्थना का विषय भी अपने-आप में स्पष्ट है. लेकिन इन दाेनाें के बीज प्रेम में मैं एक धुंधलापन और अस्पष्टता पाता हूं. प्रेम का यह धुंधलापन क्या है और क्याें है?
याेग चिन्मय! प्रेम ताे धुंधला हाेगा ही, क्याेंकि प्रेम रहस्य है. वासना स्पष्ट हाेगी और प्रार्थना भी स्पष्ट हाेगी.प्रेम ताे दाेनाें का मध्य है. प्रेम ताे तरल अवस्था है. न ताे प्रेम वासना है और न प्रेम प्रार्थना है, प्रेम दाेनाें के मध्य की कड़ी है; संक्रमण का काल है. संक्रमण का काल ताे धुंधला हाेगा ही, अनिवार्यतया धुंधला हाेगा. तुम्हारे लिए ही ऐसा है, ऐसा नहीं; सभी के लिए ऐसा है.वासना ताे साफ है. मिट्टी की पकड़ है. पर के ऊपर शिकंजा है. प्रकृति की दाैड़ है. जीव-विज्ञान की तुम्हारे ऊपर अंधी जकड़ है. सब साफ-साफ है. वासना में कुछ उलझा हुआ नहीं है. वासना गणित जैसी साफ है.और प्रार्थना भी साफ है. क्याेंकि वासना है पदार्थ के लिए, प्रार्थना है परमात्मा के लिए; दाेनाें का विषय स्पष्ट है. एक तीर जा रहा पदार्थ की तरफ; उसका लक्ष्य भी साफ है.
एक तीर जा रहा है परमात्मा की तरफ; उसका भी लक्ष्य साफ है. लेकिन प्रेम का तीर कहीं भी नहीं जा रहा- न पदार्थ की तरफ, न परमात्मा की तरफ. प्रेम का तीर अभी तूणीर में है. इसलिए अड़चन हाेती है कि यह प्रेम के तीर का प्रयाेजन क्या है? इसका लक्ष्य क्या है? और लक्ष्य साफ न हाे ताे प्रेम अस्पष्ट रह जाता है, धुंधला-धुंधला रह जाता है. लगता ताे है कुछ है, मगर क्या है, ठीक-ठीक मुट्ठी नहीं बंधती, तराजू पर नहीं तुलता, नाप-जाेख में नहीं आता. वासना भी नाप-जाेख में आ जाती है. इसलिए इस जगत में भाेगी भी स्पष्ट है और त्यागी भी स्पष्ट है. दाेनाें के गणित बिल्कुल सुसंबद्धित, सुरेखाबद्ध हैं. कवि अस्पष्ट है. कवि तरल है, कवि ठाेस नहीं है. कवि दाेनाें के मध्य है.अगर विज्ञान वासना है ताे धर्म प्रार्थना है और काव्य प्रेम है. लेकिनजिसे भी वासना से प्रार्थना तक जाना हाे उसे प्रेम की घड़ी से गुजरना ही हाेगा.
एक स्त्री अभी गर्भवती नहीं है, सब स्पष्ट है. िफर एक दिन उसकाे बच्चा पैदा हाे जाएगा, मां बन गई, तब भी सब स्पष्ट हाे जाएगा. लेकिन दाेनाें के मध्य में वह जाे नाै महीने का गर्भ है, सब अस्पष्ट रहेगा, धुंधला-धुंधला रहेगा.कुछ-कुछ एहसास भी हाेगा कि है, मगर काैन है? बेटा हाेनेवाला है कि बेटी हाेनेवाली है? सुंदर हाेगा, असुंदर हाेगा? बुद्धू हाेगा, बुद्धिमान हाेगा? सब अस्पष्ट है? कुछ पकड़ में नहीं आता.प्रेम की अवस्था गर्भ की अवस्था है. वासना प्रार्थना बनने के मार्ग पर जब चलती है ताे यह पड़ाव आता है.यह पड़ाव शुभ है. घबड़ाओ मत.और हर चीज काे स्पष्ट करने की जरूरत भी क्या है? कुछ ताे अस्पष्ट रहने दाे! यह हमें कैसा पागलपन पकड़ा है... सारी दुनिया का पकड़ा है, कि हर चीज स्पष्ट हाेनी चाहिए! एक महान राेग आदमी काे सता रहा है कि हर चीज काे स्पष्ट कराे. और जाे चीज स्पष्ट न हाेती हाे वह हमकाे इतनी बेचैनी देती है कि बजाए इसके हम स्वीकार करने के कि वह अस्पष्ट है, यही स्वीकार करना पसंद करेंगे कि वह है ही नहीं.
इसलिए बहुत-से तथ्याें काे विज्ञान ठुकराता है.ठुकराने का कारण यह नहीं है कि वे तथ्य नहीं हैं और कारण यह भी नहीं है कि उन तथ्याें की प्रतीति नहीं हाेती विज्ञान काे. मगर मजबूरी यह है कि वे स्पष्ट नहीं हाेते; धुंधले-धुंधले हैं. और विज्ञान जब तक स्पष्ट न हाे जाए, काेई चीज पकड़ेगा नहीं. स्पष्टता के लिए उसने कसम खा रखी है. उसने एक आबद्धता मान रखी है, एक कमिटमेंट, प्रतिबद्ध हाे गया है--कि स्पष्ट ताे हाेना ही चाहिए. उसने स्पष्टता की बलिवेदी पर सब कुछ चढ़ा दिया है. ताे जाे स्पष्ट नहीं है, वह इंकार कर देना है.प्रेम बड़ी अस्पष्ट घटना है--रहस्यपूर्ण, धुंधलीधुंधली, तरल्. रूप उसके बदलते हैं, राेज-राेज बदलते हैं, प्रतिपल बदलते हैं. र्सिफ आभास ही अनुभव हाेता है.एक छाया मात्र अनुभव हाेती है.