बिहार भारत का एक अभूतपूर्व राज्य है. हजार साल तक भारतीय सभ्यता के केंद्र के रूप में उसकी भूमिका अद्वितीय है. बिहार असाधारण है, चाहे गाैतम बुद्ध का दाैर हाे या उससे एक हजार साल बाद का. यह राज्य भारत के सबसे प्रगतिशील क्षेत्राें में रहा और आज वहीं राज्य सामाजिक पिछड़ेपन व अत्याधिक गरीबी से जूझ रहा है. उसका एक असाधारण पक्ष है- आर्थिक और मानवीय विकास पर जाेर देकर गरीबी और पिछड़ेपन से बाहर निकलने की उसकी इच्छाश्नित. बिहार का भविष्य उसके स्वर्णिम अतीत जैसा न भी हाे, पर इतना ताे है कि वर्तमान स्थिति से बहुत बेहतर ही हाेगा. इसलिए बिहार अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य, तीनाें में असाधारण हाे प्रतीत हाेता है.बिहार के इतिहास की शुरुआत भारत के एकीकरण से हाेती है. पाटलिपुत्र या वर्तमान पटना में माैर्य वंश ने पहले अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की थी.
साथ ही, देश के बहुत बड़े भूभाग पर पहली बार एक समान न्याय व्यवस्था स्थापित हुई थी. एक सम्राट जब तक इस पूरे उपमहाद्वीप पर अपना शासन नहीं जमा लेता है, तब तक उसका काम पूरा नहीं हाेता है, ऐसी ही एक परिकल्पना का जन्म पाटलिपुत्र में हुआ था. पूरे राष्ट्र में एक समान व्यवस्था स्थापित करने के लिए ही सम्राट अशाेक ने कलिंग पर आक्रमण किया था.प्राचीन बिहार ने भारत के एकीकरण के साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में भी याेगदान दिया था. दाे से ढाई हजार साल पहले विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयाें में एक नालंदा और विक्रमशिला की स्थापना हुई थी, जहां दुनिया भर से लाेग ज्ञानार्जन के लिए आते थे. गणितज्ञ आर्यभट पांचवीं शताब्दी के शुरू में पाटलिपुत्र के कुसुमपुर इलाके में गणितज्ञाें के माेहल्ले में आकर बसे थे, जिससे उस समय के बिहार में गणित के श्रेष्ठ स्तर का पता चलता है. बिहार कितना आगे था, इसकी मिसाल देखिए, चीनी विद्वान फाहियान पाटलिपुत्र में नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवा देख बहुत प्रभावित था, ऐसी सेवा विश्व में कहीं नहीं थी.
इसके अलावा बिहार में बाैद्ध संघाें ने राजगृह या राजगीर में सामाजिक मुद्दाें पर आपसी संवाद से निर्णय लेने क परिपाटी शुरू की थी. वाॅटर बैगलाेट से दाे हजार वर्ष पहले विमर्श से शासन की दिशा में बिहार ने अमूल्य याेगदान दिया था. बिहार ने शासन प्रणाली के विकास में कई नए सिद्धांत दिए. काैटिल्य के अर्थशास्त्र ने सबसे बड़ा याेगदान दिया और दंडात्मक नजरिये से देखें, ताे अशाेक ने भी याेगदान दिया. बाद में, शेरशाह सूरी ने बुनियादी ढांचा खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई और ग्रैंड ट्रंक राेड का निर्माण कराया.जातिगत भेदभाव से निपटने में बाैद्ध मत ने बड़ी भूमिका निभाई. परंपरागत जातीय वर्गीकरण के खिलाफ बिहार में बहुत से आंदाेलन भी हुए.वैसे, आज बिहार जिस निरक्षरता, चिकित्सा की उपेक्षा, आर्थिक व सामाजिक असमानता, बुनियादी ढांचे की कमी और सामाजिक अव्यवस्था की बढ़ती घटनाओं का सामना कर रहा है, उसके मद्देनजर बिहार की इन प्राचीन सफलताओं काे देखना चाहिए.
क्योंकि इनका न सिर्फ ऐतिहासिक महत्व है, बल्कि आज के परिप्रेक्ष्य में भी यह सूचनाएं प्रासंगिक हैं. बिहार अपने अतीत व पुरानी परंपराओं से बहुत कुछ सीख सकता है और उसकी मदद से उन कठिनाइयाें से उबर सकता है, जिन्हाेंने बिहार काे प्रगति करने से राेक रखा है. हम अतीत से बंध कर ताे नहीं रह सकते, लेकिन बिहार के अतीत में कई ऐसे पहलू हैं, जाे आज प्रेरित करने और मार्ग दिखाने का काम कर सकते हैं.आज बिहार के हालात कैसे हैं? यह ताे कहा ही जा सकता है कि वैश्विक स्तर ही नहीं, भारतीय स्तर से भी आंकें, ताे बहुत से सामाजिक और आर्थिक पहलुओं परयह निचले पायदान पर मिलता है. मानवीय विकास सूची 2005 से 2015 के दशक में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर देखें, ताे यह अगले पांच वर्षाें में 10 प्रतिशत रही.
इसमें कृषि क्षेत्र में हुई तेज प्रगति इस बात की द्याेतक है कि राज्य में गरीबी व बदहाली में कमी आएगी. आर्थिक तंगी पलक झपकते ताे गायब नहीं हाे पाएगी, पर सतत हानि और निष्क्रियता का चक्र टूटने से लाेगाें काे आशा की नई किरणें दिखने लगी हैं.
बरसाें से उपेक्षित रही स्कूली व्यवस्था में सुधार के लिए राज्य लगातार कदम उठा रहा है और एशियाई विकास बैंक संस्थान की रिपाेर्ट के मुताबिक, स्कूलाें की संख्या बढ़ी है.छात्राें का पंजीकरण बढ़ा है. अध्यापकाें की कमी की दर बहुत कम हाे गई है. छात्राें की कक्षा में उपस्थिति बढ़ी है और स्कूल में नामांकन 98 प्रतिशत तक पहुंच गया है. यह रिपाेर्ट इस बात का उत्सव है कि आखिरकार सही दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं. अभी भी शिक्षकाें की गुणवत्ता काे लेकर बहुत से सवाल खड़े हैं, पर प्रगति ताे हुई है.
यह ताे सही है कि अच्छी और बुरी, दाेनाें ही खबरें हैं, पर एक समय था, जब काेई भी यह उम्मीद नहीं कर रहा था कि बिहार में शिक्षा की उपेक्षा की समस्या फाैरन दूर हाे जाएगी. हमें इस बात पर गाैर करना है कि बुरी खबराें पर कितना ध्यान दिया जा रहा है और उन्हें ठीक करने की कितनी काेशिश की जा रही है. शिक्षा के क्षेत्र में कुछ बहुत अच्छी पहल हुई हैं, जिनका स्वागत किया जाना चाहिए और शिक्षा विभाग काे अभी बहुत कुछ करने और पाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए.प्रगति के लिए न सिर्फ याेजनाबद्ध पहल की जरूरत पड़ती है, बल्कि जाे सफलता पाई है, उसे बढ़ाने और बनाए रखने के लिए सतत प्रतिबद्धता की भी दरकार रहती है. आज प्रतिबद्धता ही सबसे बड़ा मुद्दा है. अच्छे काम लगातार हाें और तेज गति पकड़ें. लाेग तर्नकी की मांग करें. अगर बिहार का वैभवशाली अतीत इसके विकास के लिए प्रतिबद्धता पैदा करने में सहायक हाे जाए, ताे ही उसकी सकारात्मकता और प्रासंगिकता मिसाल बनकर उभरेगी.
-अमर्त्य सेन