समझदार सेनापति जीत मिलते ही युद्ध खत्म कर देता है, उसे खींचता नहीं. - अर्थशास्त्र परंपरा.युद्ध कभी-कभार ही वहां खत्म हाेते हैं जहां वे थमते; जहां वे विराम लेते हैं, वहां से अनुपात का आगाज हाेता हैं. वर्सासय से लेकर गाजा तक, बगदाद से कीव तक, हर अधूरा युद्ध वही सबक दाेहराता है, बिना संयम की जीत अपने ही विनाश के बीज बाेती है. जब जीत अपमान में बदल जाए, तब शांति भरभराकर गिर जाती है. भारत लंबे समय से इस सच्चाई काे जानता है. ढाका से लेकर कारगिल व ऑपरेशन सिंदूर तक, भारतीय गणतंत्र की जीत सभ्यतागत रही है, युद्धविराम थकान से नहीं अपतिु दूरदर्शिता से राेक लेने की क्षमता. संयम का अर्थ पीछे हटना नहीं; यह एक फैसला हाेता है, विवेक के साथ साहस का, अनुपात संग श्नित का. अंत भला हाे, यह कमान का सबसे मुश्किल काम है.
अपरिमेय जीत का जाल : जैसे कि दुनिया के महाद्वीपाें और समुदायाें में खून बह रहा है, संयम की बात कहीं नहीं हाे रही. युद्ध बेवजह जारी रहते हैं, और शांति का काेई नामलेवा नहीं. इस नैतिक शून्य में, भारत की आनुपातिक संतुलन की विरासत एक गुण से कहीं ज्यादा है. यह अतिरेक के युग के लिए प्रति-आख्यान बन जाती है. अपरिमेय जीत सत्ता का सबसे पुराना जाल है. वर्साय ने हिटलर काे जन्म दिया; इराक के जातीय बंटवारे ने आईएसआईएस पैदा की. बिना साेचे-समझे बदला लेने की प्रवृत्ति सिर्फ वर्दी बदलती है, दुश्मनी नहीं. पूर्ण विजय की तलाश अ्नसर अगली पीढ़ी की पूर्ण हार तय करती है.भारत का अनुशासन सिद्धांताें पर युद्ध खत्म करने में है, न कि तालियाें की खातिर.
विघटन पैदा करने वालाें काे चुनाैती : वर्तमान विश्व व्यवस्था के रचनाकार, जाे गठबंधन काे आज्ञाकारिता के बराबर मानते हैं, जिस विघटन काे वे अब काेस रहे हैं, वह खुद उन्हाेंने पैदा किया.जाे लाेग स्वायत्तता की आलाेचना अलग-थलग जाने या तटस्थता रखने के रूप में करते हैं, उनके लिए जवाब सरल है, गुटाें की वफादारी विफल रही. भारत का अनुशासन महज घरेलू गुण नहीं; यह श्नित के विफल माॅडल काे चुनाैती देता है, एक दबाव रहित आमूलचूल बदलाव पेश करता है, जिसमें स्वायत्तता व संयम रणनीतिक पसंद के उच्चतम रूप बन जाते हैं.
आधुनिक श्नित का व्याकरण : संयम सिर्फ विरासत बनकर नहीं रह सकता. आज श्नित प्रयाेग न केवल हथियाराें से बल्कि एल्गाेरिदम, वित्त और इन्फलुएंस के जरिये किया जाता है. राज्य-व्यवस्था का व्याकरण बदल गया है. सप्लाई चेन घेराबंदी की रस्सियां हैं, डेटा नया रणक्षेत्र है, और सबसे आगे है कहानी गढ़कर फैलाने की हाेड़. आगामी युद्ध घाेषित रूप में न हाेकर सहेज कर पाली खुन्नस है, जाै धारणा, सटीकता और धैर्य के जरिये लड़े जाएंगे. जाे देश अंत बढ़िया कर सकेगा. वही लंबा टिक पाएगा. भारत के लिए चुनाैती दाेहरी है: सदी की रफ्तार से कदम मिलाकर अपना सभ्यतागत स्वभाव कायम रखना. सिद्धांत काे तैयारी संग, नैतिकता काे फुर्ती के साथ, और धैर्य काे सटीकता से जाेड़ना हाेगा. संयम की कला तकनीक, कूटनीति और संचार के साथ पिराेनी हाेगी.
रणनीतिक स्वायत्तता का मरहम : जब पी-5 वीटाे से पंगु हाे जाता है, संयु्नत राष्ट्र निष्प्रभावी हाे जाता है और लहु-लुहान दुनिया में खून बहना जारी रहता है. व्यापार एक हथियार बन गया और शांति पुरस्कार की चाहत रखने से पहले काबिलियत का ढिंढाेरा पाेटने वाले प्रायाेजक ढूंढ़े जा रहे हैं, तब फिर किससे उम्मीद की जाये? काेई नहीं. ऐसे ही हालात में भारत की सभ्यतागत नैतिकता की जरूरत है, हु्नम चलाने के लिए नहीं, बल्कि मिसाल पेश करने काे. यह दिखाने के लिए कि ताकत काे परिभाषित करने के लिए दूसरे पर हावी हाेने की जरूरत नहीं; वह संयमित राष्ट्र जाे सीना तान चले, अभी भी तूफान काे थाम सकता है. विभाजित दुनिया में यह रणनीतिक स्वायत्तता है, सिद्धांतपरक तीसरी राह, जाे गुटीय राजनीति से दूर रहे, ऐसा मरहम जाे तारीफ चाहे बिना धाव भर दे.
संयम की पुनर्कल्पना : नतीजाें पर महारत पाने के बाद संयम काे अब संदर्भ में सिद्धहस्तता हासिल करनी हाेगी. यह वहां से शुरू हाेता है जहां श्नित प्रयाेग खत्म हाेता है और जिम्मेदारी शुरू हाेती है. यह दूरदर्शिता के जरिए व्य्नत अनुपात और दृढ़ विश्वास से दर्शाया आत्मसंयम है. शासन उद्वेग, श्नित और प्रयाेजनवश झूठ से परे हाेता है.
-लेंफ्टि जन, एसएस मेहता (अ.प्रा.)