हमारा कानून हर एक को सुरक्षा देता है

ॲड. बी. एस.धापटे ने नागरिकों के अधिकारों की जानकारी दी

    05-Oct-2025
Total Views |
vdsvbds 
पुणे, 4 अक्टूबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)

कई बार जिंदगी में ऐसे हालात आते हैं, जब हमें कानून की सही जानकारी न होने के कारण परेशानी उठानी पड़ती है. चाहे मामला घर-परिवार का हो, नौकरी का हो या संपत्ति का हो, हर स्थिति में भारतीय कानून हमें न्याय पाने का अधिकार देता है. इस बारे में ॲड.बी.एस.धापटे ने कुछ सामान्य सवाल और उनके कानूनी समाधान दै.आज का आनंद के पाठकों के लिए दिए हैं. उनसे की गई बातचीत के कुछ विशेष अंश..  
 
एड. भालचंद्र धापटे
मोबाइल-9850166213
 
प्रश्न: हिस्सेदारी के दावे का निर्णय हो गया है, लेकिन अभी तक वास्तविक बंटवारा नहीं हुआ है. तो इसके लिए क्या करना होगा ?
उत्तर: -
हिस्सेदारी के दावे का निर्णय हो गया, इसका मतलब है कि अदालत ने सभी वारिसों के हिस्से तय कर दिए हैं. लेकिन यह केवल कागज पर होता है. वास्तव में अगर किसी को जमीन, मकान या संपत्ति का अलग-अलग कब्जा नहीं मिला तो उस डिक्री का लाभ नहीं मिलता. ऐसी स्थिति में अमल की प्रक्रिया शुरू करनी पड़ती है. इसके लिए अदालत में आवेदन करना होता है कि डिक्री के अनुसार वास्तविक बंटवारा किया जाए. अदालत इसके लिए एक आयुक्त (उेााळीीळेपशी) नियुक्त करती है, जो मौके पर जाकर निरीक्षण करता है, नक्शा तैयार करता है और हर वारिस को उसका हिस्सा दिलाता है. अगर कोई विरोध करता है तो अदालत पुलिस की मदद से भी इस पर अमल करवा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने ‌‘शुभ करण बुबना बनाम सीता सरन बुबना' मामले में कहा है कि केवल डिक्री लेना पर्याप्त नहीं है, उसे लागू भी करना जरूरी है. इसलिए अगर हिस्सेदारी की डिक्री हो गई है तो अगला कदम अमल का आवेदन करना है.

प्रश्न: हमें अदालत से तलाक लेना है तो इसके लिए कौन-कौन से दपतावेज लगेंगे और केस को कितना समय लगेगा ?
उत्तर: -
तलाक लेने के लिए सबसे पहले यह तय करना पड़ता है कि वह आपसी सहमति से होगा या विवादित (कॉन्टेस्टेड) होगा. अगर आपसी सहमति से तलाक लेना है, तो पति-पत्नी दोनों एक साथ अर्जी देते हैं और बच्चों की देखरेख, आर्थिक लेन-देन, संपत्ति का बंटवारा आदि पर लिखित समझौता करते हैं. इसके लिए विवाह प्रमाणपत्र, पहचानपत्र, पते का प्रमाण, विवाह के फोटो, शादी की तारीख और जगह का प्रमाण जैसे दपतावेज लगते हैं. अगर विवादित तलाक है, तो पति-पत्नी में से कोई एक निर्दिष्ट कारणों (जैसे अत्याचार, परित्याग, व्यभिचार, मानसिक उत्पीड़न) के आधार पर दावा करता है और उसके प्रमाण प्रस्तुत करता है. इसके लिए गवाह, मेडिकल रिपोर्ट, शिकायतें, पुलिस रिकॉर्ड आदि काम आते हैं. समय की बात करें तो आपसी सहमति से तलाक सामान्यतः 6 महीने की कूलिंग पीरियड के बाद 6 से 12 महीनों में पूरा हो जाता है. जबकि विवादित तलाक में साक्ष्य, गवाह और अपील के कारण 3 से 5 साल तक लग सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ‌‘अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर' मामले में कहा है कि आपसी सहमति के तलाक में 6 महीने की अवधि हर मामले में अनिवार्य नहीं है, अदालत परिस्थिति के अनुसार इसे कम कर सकती है.

प्रश्न: मेरे ग्राहक ने मुझे 3 लाख का चेक दिया था. बैंक में जमा करने पर ‘Stop Payment' के कारण यह लौट आया. अब में क्या कर सकता हूं?
उत्तर: -
अगर चेक ‘Stop Payment के कारण बाउंस हो गया है तो भी यह चेक बाउंस का मामला माना जाता है. "Negotiable Inrtrumentr Act, 1881’ की धारा 138 के अनुसार यह अपराध है. आपको सबसे पहले ग्राहक को कानूनी नोटिस भेजना होगा, जो चेक लौटने की तारीख से 30 दिनों के भीतर भेजना जरूरी है. नोटिस में बकाया रकम 15 दिन में चुकाने का निर्देश देना होता है. अगर वह पैसे नहीं देता तो आप मजिस्ट्रेट के सामने आपराधिक शिकायत दर्ज कर सकते हैं. दोष साबित होने पर आरोपी को 2 साल तक की सजा या दोगुना जुर्माना हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने 'MMTC Ltd. Vr Medchi Chemicalr' केस में कहा है कि ‘Stop Payment’ का कारण देने पर भी यह अपराध ही माना जाएगा, इसलिए त्वरित नोटिस और फिर शिकायत करना जरूरी है.

प्रश्न: अक्सर सुनने में आता है कि पति जीवित रहते हुए पत्नी को गुजारा भत्ता देता है. लेकिन पति की मृत्यु के बाद पत्नी को उसकी संपत्ति में अधिकार मिल सकता है क्या ?
उत्तर: -
पति के जीवित रहते अगर पत्नी आर्थिक रूप से निर्भर है तो उसे ‌‘मेंटेनेंस' का अधिकार होता है. लेकिन पति की मृत्यु के बाद स्थिति बदल जाती है. उस समय पत्नी को पति की संपत्ति में वारिस के रूप में अधिकार मिलता है. ‌‘हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956' के अनुसार पत्नी 1 क्लास कैटेगरी में आती है. इसलिए यदि पति ने वसीयत नहीं बनाई है, तो पत्नी को बच्चों के साथ संपत्ति में समान हिस्सा मिलता है चाहे वह घर हो, जमीन, बैंक डिपॉजिट, शेयर या अन्य संपत्ति. इसलिए पति की मृत्यु के बाद अलग से मेंटेनेंस की जशरत नहीं होती, बल्कि उसे वारिस होने के नाते हिस्सा मिलता है. सुप्रीम कोर्ट ने ‌‘ओमप्रकाश बनाम राधाचरण' केस में भी यही कहा है.