राष्ट्रवादी शरद चंद्र पवार गुट के विधायक राेहित पवार ने दावा किया कि कटावग्रस्त ज़मीन के लिए सरकार द्वारा दी जा रही 47,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की सहायता से कुछ नहीं हाेगा. खासकर जब से उन्हाेंने आशंका जताई है कि इस अभूतपूर्व संकट के कारण बलिराजा 10 साल पीछे चले जाएंगे, चिंताएं और बढ़ गई हैं.इस साल राज्य में, खासकर मराठवाड़ा में, भारी बारिश के कारण किसानाें काे भारी नुकसान हुआ है. बाढ़ के कारण कई किसानाें की ज़मीनें कट गई हैं. ऐसे में वहां फसलाें के लिए पानी कैसे मिलेगा? यह सवाल उनके सामने उठाया गया है.सरकार ने इस मामले में एक विशेष पैकेज की घाेषणा की है.लेकिन विधायक राेहित पवार ने दावा किया है कि इससे कुछ नहीं हाेगा.उन्हाेंने कहा, कटावग्रस्त ज़मीन के लिए 47,000 रुपये.राज्य में 60,000 हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन बह गई है.
ज़मीन के बह जाने का क्या मतलब है, यह आप ख़ुद देखकर ही समझ सकते हैं.नदियाें ने अपना रास्ता बदल लिया है और अपने मूल मार्ग काे छाेड़कर आसपास के खेताें से एक नदी का रूप ले लिया है. ऐसा करते समय, दाेनाें तरफ दस-बारह फीट तक गहरी मिट्टी बह गई और नीचे दलदल उभर आया.कई जगहाें पर, अगर उन्हें 4-5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर भी दिए जाएं, ताे भी नदी का तल बदल जाएगा.कई जगहाें पर खेताें में बड़े-बड़े पत्थर बह गए हैं और खेताें में इन पत्थराें की तीन-चार फीट की परत जम गई है. पत्थराें की इस परत काे हटाने में कम से कम एक से 5 लाख रुपये का खर्च आएगा. लेकिन ऐसी कटी हुई या बह गई ज़मीन के लिए, राज्य सरकार एनडीआरएफ के नियमाें के अनुसार प्रति हेक्टेयर केवल 47 हज़ार रुपये ही देगी.इतनी कम राशि से बह गई ज़मीन में गाद लाना बिल्कुल असंभव है.