देश की जेलाें काे इन्सानाें के रहने लायक बनाया जाए

    09-Oct-2025
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बढ़ती तकनीकी सुविधाओं और अपराध से अर्जित धन के अंतरराष्ट्रीय लेन-देन की संभावनाओं ने अपराध का भी वैश्वीकरण कर दिया है. नशीली दवा, अवैध हथियार और हत्या-ये वे उल्लेखनीय क्षेत्र हैं, जहां बड़े पैमाने पर ऐसे गिराेह सक्रिय हैं, जाे अपनी हरकताें से राष्ट्राें की सीमाओं या पासपाेर्ट और वीजा जैसे नियंत्रणाें की धज्जियां उड़ाते रहते हैं. ऐसा ही एक गैंग लाॅरेन्स बिश्नाेई का है, जिस पर आराेप है कि यह कई वर्षाें से जेल में रहकर ही हत्या और फिराैती जैसे अपराधाें का संचालन कर रहा है. इस गैंग काे पिछले दिनाें कनाडा की सरकार ने आतंकवादी संगठन घाेषित कर दिया.कनाडा सरकार का मानना है कि इस गैंग की मदद से भारतीय एजेंसियां कनाडा में सक्रिय खालिस्तान समर्थक तत्वाें के खिलाफ कार्रवाइयां कराती रही हैं.
 
18 जून, 2023 काे कनाडा में सक्रिय खालिस्तान समर्थक तत्वाें के खिलाफ कार्रवाइयां कराती रही हैं. 18 जून, 2023 काे कनाडा में खालिस्तान आंदाेलन के एक प्रमुख नेता हरदीप सिंह निजर काे दिनदहाड़े गाेलियाें से भून दिया गया था. तब कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडाे ने भारतीय एजेंसियाें पर उंगली उठाई थी. हालांकि, भारत सरकार ने इस आराेप का खंडन किया था. पर इस वाकये ने दाेनाें देशाें के संबंधाें में इस कदर तल्खी भर दी कि कूटनीतिक स्तर पर उनके संबंध न्यूनतम हाे गए थे. हाल में लंबे विमर्शाें के बाद दाेनाें देशाें के राजदूत वापस अपने काम पर लाैटे हैं.लाॅरेन्स बिश्नाेई गैंग से संबंधित कनाडाई सरकार की कार्रवाई का विश्लेषण करने के लिए दाे तथ्याें काे ध्यान में रखना हाेगा. एक ताे यह समझ विकसित करनी हाेगी कि अपने विराेधियाें का सफाया कराने के लिए सभी सरकारें भाड़े के हत्याराें का इस्तेमाल करती रही है.
 
सीआईए और माेसाद ने ताे दुनिया भर मे भूमिगत संगठनाेें का इस्तेमाल इस तरह के अभियानाें के लिए किया ही है, साेवियत रूस में स्टालिन ने भी अपने विराेधी ट्राटस्की की हत्या मै्निसकाे में भाड़े के हत्यारे से कराई थी. यद्यपि भारत सरकार इस बात का दावा करती रही है कि कनाडा ने कभी ऐसा अकाट््य सबूत उपलब्ध नहीं कराया है, जिससे किसी भारतीय एजेंसीकी संलिप्तता सिद्ध हाे सके, पर कनाडा समेत खुफिया जानकारियां साझा करने के लिए गठित ‘फाइव आईज’ के अन्य सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भारत की दलील से पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं. भारत सरकार के स्पष्टीकरण काे न कारने के लिए काेई बहुत विश्वसनीय कारण नहीं है और यह मान लेना चाहिए कि नज्जर की हत्या में भारतीय एजेंसियाें का हाथ नहीं है.
 
यदि उनकी संलिप्तता कभी सिद्ध हुई, ताे यही कहना हाेगा कि ऑपरेशन बहुत ही गैर-पेशेवर तरीके से किया गया था. यह स्थिति और गंभीर इसलिए हाे जाती है कि निज्जर हत्याकांड के कुछ ही दिनाें के अंदर वैसी ही एक घटना अमेरिका में हुई, जिसमें अमेरिकी अधिकारियाें ने अपनी धरती पर एक अन्य खालिस्तान समर्थक गुरवंत सिंह पन्नू की हत्या का षड्यंत्र रचने का आराेप एक भारतीय खुफिया एजेंसी पर लगाया और एक व्य्नित काे गिरफ्तार भी किया.पिछले कुछ सालाें से ऐसे अपराधी गिराेहाें की संख्या बढ़ती जा रही है, जाे विदेशी धरती पर बैठकर भारतीय सीमा में अपने अपराध सिंडिकेट का संचालन कर रहे हैं. इनके सरगना बाहर बैठकर देश में अपने गुर्गाें द्वारा फिराैती या भाड़े की हत्या जैसे जघन्य अपराध कराते रहते हैं. नशीले पदार्थाें की चिंताजनक हद तक चपेट में इन्हीं अपराधियाें की वजह से आए हैं.
 
इनमें एक समूह ताे ऐसा है, जिसे कई राष्ट्र हम से शत्रुता के कारण प्राेत्साहित करते हैं. ये पाकिस्तान द्वारा पाेषित वे अपराधी हैं, जाे उसकी सरजमीं पर रहकर भारत के पृथकतावादी संगठनाें की भिन्न-भिन्न तरीकाें से मदद करते हैं. इनकाे वहां की एजेंसियाें की मदद से प्रत्यावर्तित कराने की कल्पना भी व्यर्थ है. उनके खिलाफ ताे कूटनीतिक दबावाें से विश्व जनमत काे अपने पक्ष में करके ही कार्रवाई की जा सकती है.पिछले कुछ वर्षाे में थाईलैंड, दुबई, नेपाल, अमेरिका, कनाडा और कुछ लैटिन अमेरिकी देश इन गैंगस्टराें के लिए सबसे बड़ी शरणस्थली के रूप में उभरे हैं. इन सभी देशाें के साथ पिछले कुछ वर्षाेर् मेंं भारत ने प्रत्यर्पण संधियां की हैं, पर इसके बावजूद वाटेड अपराधियाें काे उनकी शरणस्थली से वापस भारत लाना और उन्हें भारतीय अदालताें के सामने पेश कर दंडित करा पाना भारत की कानून-व्यवस्था लागू कराने वाली संस्थाओं के लिए एक दुरूह काम है.
 
हालिया समय मेंं संयु्नत अरब अमीरात का रवैया बहुत सहयाेगपूर्ण रहा है और बड़ी संख्या में अपराधी वहां से भारत भेजे गए हैं. यह दाेनाें देशाें के शासकाें के बीच विकसित हुए बेहतर संबंधाें के चलते संभव हुआ है. नेपाल भी लंबे समय से हमारा सहयाेग करता रहा है. समस्या पश्चिमी देशाें से आती है. इन देशाें में मानवाधिकाराें के सम्मान का जाे स्तर है, उसके कारण वहां की अदालतें बहुत से मामलाें में सिर्फ इस तर्क के आधार पर किसी अपराधी काे भारत काे साैंपने से इन्कार कर देती हैं कि भारतीय जेलाें में उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाएगा. या भारत में पुलिस द्वारा पूछताछ के दाैरान थर्ड डिग्री का इस्तेमाल हाेगा.
इन आराेपाें में सच्चाई भी है और विदेशी अदालताें में इनके सबूत पेश करना भी बहुत मुश्किल नहीं है. भारतीय मीडिया और भारतीय अदालताें के निर्णय इनकी पुष्टि करने वाले उदाहरणाें से भरे पड़े हैं और सिर्फ उन्हें पेश करके पश्चिमी अदालताें काे आश्वस्त किया जा सकता कि भारत भेजे जाने पर किसी व्य्नित के, भले वह अपराधी ही क्यों न हाे, मानवाधिकाराें की गारंटी नहीं ली जा सकती है.
-विभूति नारायण राय पूर्व आईपीएस अधिकारी