समर्पण व न्याय के प्रति अटूट निष्ठा का पेशा है वकालत

कर्तव्य और चरित्र निर्माण का माध्यम : वरिष्ठ वकीलों ने समाज के लोगों के लिए दी अपनी महत्वपूर्ण राय

    16-Nov-2025
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पुणे, 15 नवंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
समाज का निर्माण केवल इमारतों, सड़कों और व्यवस्थाओं से नहीं होता, बल्कि उन लोगों से होता है जो अपने-अपने क्षेत्र में ईमानदारी, जिम्मेदारी और मूल्यों के साथ काम करते हैं. हर पेशा अपनी जगह महत्वपूर्ण है, लेकिन जब व्यक्ति अपने कार्य को केवल रोजगार नहीं, बल्कि सेवा, कर्तव्य और चरित्र निर्माण का माध्यम मानने लगता है, तब वही पेशा समाज के लिए प्रेरणा बन जाता है. आज की तेज ररतार जिंदगी में जहाँ भौतिक उपलब्धियाँ अक्सर केंद्र में दिखाई देती हैं, वहीं अब भी ऐसे लोग मौजूद हैं जिनके लिए इंसानियत, नैतिकता, सत्य, अनुशासन और समाज के प्रति योगदान सबसे बड़ा पुरस्कार है.यह राय वकालत के पेशे से जुड़े लोगों ने दै.आज का आनंद के लिए प्रो.रेणु अग्रवाल से बातचीत में व्यक्त की. प्रस्तुत हैं उनकी बातचीत के प्रमुख अंशप्रो. रेणु अग्रवाल (मो. 8830670849)  
 
रिटायरमेंट के बाद भी नई जिंदगी की शुरूआत

मैं डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट, छत्रपति संभाजीनगर में प्रबंधक की पोस्ट से वर्ष 2021 में रिटायर हुआ हूँ. मेरे तीन बेटे हैं और तीनों की शादी हो चुकी है. हम सब एक साथ औरंगाबाद में ही रहते हैं. रिटायरमेंट के बाद अब मैं घर पर ही आराम करता हूँ. रोज सुबह नमाज पढ़ने के बाद वॉकिंग करता हूँ और अपना पूरा समय परिवार को देता हूं. पोते-पोती के साथ दिन कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता. नौकरी के समय अधिकांश समय काम में ही निकल जाता था. कभी-कभी तो ऑफिस का काम घर भी लाना पड़ता था, जिससे परिवार को बहुत कम समय दे पाता था. लेकिन अब मैं सुकून महसूस करता हूँ.मैंने रिटायरमेंट से पहले ही उसकी तैयारी कर ली थी. मेरा मानना है कि हमेशा अपना काम पूरी लगन और ईमानदारी से करना चाहिए. -एन. के. खान, छत्रपति संभाजीनगर
 

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वकालत सिर्फ पेशा ही नहीं, जिरमेदारी भी

मेरे परिवार में मेरी पत्नी और तीन बेटियां हैं. मैं हाईकोर्ट में एक क्रिमिनल लॉयर हूं. वकालत एक नोबल प्रोफेशन है, जिसमें हमें अत्यंत लगन और मेहनत से काम करना होता है. कभी-कभी ऐसे केस आते हैं जिन्हें समझना काफी मुश्किल होता है. ऐसे समय में सामने वाले से कई सवाल पूछकर सच्चाई तक पहुंचना पड़ता है. कोर्ट में जज के सामने यदि हम पूरी तैयारी के साथ नहीं पहुंचते, तो केस हारने की पूरी सम्भावना रहती है, और इसका सबसे बड़ा नुकसान क्लाइंट को होता है. इसलिए मैं हर विद्यार्थी को यही कहना चाहता हूँ कि कोई भी पेशा चुनें, लेकिन पूरी ईमानदारी और मेहनत से काम करें. अपनी वजह से किसी दूसरे का नुकसान होऐसा कोई कार्य हमें कभी नहीं करना चाहिए. - एड. नासिर पटेल, जिला-हरसुल
 

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सच की वकालत समाज में सम्मानजनक

मेरे परिवार में मेरे माता-पिता, मेरी पत्नी, दो बेटेबहुएँ, पोता.पोती और एक बेटीइस तरह मेरा भरापूरा और सुखी है. मैं कई सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ा हूँ. मेरी पढ़ाई पुणे के बीएमसीसी कॉलेज से हुई. इसके बाद लॉ कॉलेज से लॉ की डिग्री लेकर मैंने वकालत शुरू की. वकालत के साथ-साथ मैं शेयर मार्केट में भी इन्वेस्टमेंट करता हूँ. संत राजेंद्र सिंह महाराज के सत्संग से जुड़ने के बाद अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं. भाई, सत्संग में तो सच बोलना होता है और कोर्ट में झूठ. कैसे एडजस्ट करते हो? इस पर मैं हमेशा यही कहता हूँ कि सत्संग से जुड़ने के बाद जीवन में झूठ बोलने का प्रमाण बहुत कम हो गया है. अग्रवाल समाज से मैं यही कहना चाहूँगा कि कोर्ट में कम से कम जाएँ. यदि कोर्ट के बाहर ही सेटलमेंट हो जाए तो यह सभी के लिए बेहतर है. इससे समय भी बचता है, तनाव भी कम होता है और मानसिक शांति भी मिलती है. -आनंदप्रकाश रामेेशरदास अग्रवाल, मार्केटयार्ड, गुलटेकड़ी, पुणे
 

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वकालत सिर्फ पेशा नहीं, समाज सेवा का संकल्प भी

मैं पेशे से वकील हूँ और एक संयुक्त परिवार में रहता हूँ. मेरे लिए पैसों से अधिक दिल का सुकून महत्त्वपूर्ण है. कभी-कभी हमारे ऑफिस में ऐसे लोग भी आते हैं जिनके पास अपना केस लड़ने के लिए पैसे नहीं होते. ऐसे लोगों के मामले भी हम लेते हैं, और जब वह केस जीत जाते हैं तो मन को बड़ी तसल्ली मिलती है. वकालत करना मुझे पसंद है और मैं पूरी लगन तथा मेहनत के साथ अपना काम करता हूँ. मैं हर विद्यार्थी से यही कहना चाहता हूँ कि मन लगाकर पढ़ाई करें. वकील का पेशा सिर्फ पैसा कमाने का साधन नहीं, बल्कि समाज सेवा का एक बड़ा अवसर भी है. - विवेक चौहान, भूषणनगर

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संस्कारों की ज्योत पीढ़ियों को राह दिखानेवाली सीख

 मेरी उम्र 82 वर्ष है और मैं एक रिटायर्ड टीचर हूँ. टीचर का प्रोफेशन बड़ा ही खास होता है, क्योंकि उनके सामने अलग-अलग तरह के बच्चे होते हैं, जिन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनाना उनका कर्तव्य है. मैं अपने दो बेटे-बहुओं और पोता-पोती के साथ पदमपुरा में रहती हूँ.आजकल की पीढ़ी के बच्चों और पहले के बच्चों में काफी अंतर देखने को मिलता है. आज के बच्चों को बहुत ज्ञान है और उन पर विदेशी संस्कृति का प्रभाव भी स्पष्ट दिखता है. कोई भी संस्कृति गलत नहीं होती, लेकिन अपनी मूल संस्कृति को भूलकर दूसरों के पीछे भागना उचित नहीं है. माता-पिता को बच्चों को कहकर नहीं, बल्कि अपने व्यवहार से अच्छे संस्कार देने चाहिए. हमें जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए. हमारी पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी को मिलकर चलने में ही भलाई है. परिवर्तन समय का नियम हैहमें भी उसे अपनाकर आगे बढ़ना चाहिए और खुश रहना चाहिए. - मार्गरेट मुन्नूस्वामी रामू, पदमपुरा
 


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बुद्धिजीवियों का पेशा और समाज परिवर्तन का माध्यम

मैं सैयदा हिना रिजवी, पेशे से अधिवक्ता हूं. मैंने इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कंपनी तथा सर्विस मामलों में प्रैक्टिस की है. आजकल मैं तमिलनाडु राज्य में अपने पति और बेटे के साथ रह रही हूँ. अपने वकालती जीवनकाल में मैंने अच्छे और बुरे दोनों तरह के वक्त देखे, साथ ही कई विरोधाभासों का भी सामना किया. कहीं वकालत मेरे विवाह के मार्ग में बाधा बनी, तो दूसरी ओर मुझे अपने पति जैसे वकील और वकालत के कद्रदान जीवनसाथी के रूप में मिले.एक अधिवक्ता की हैसियत से मेरा मानना है कि वकील समाज को नया आयाम दे सकता है. वकालत चुनौतियों से भरा हुआ और बुद्धिजीवियों का पेशा है, जिससे हमारा दायित्व समाज की ओर और भी बढ़ जाता है. वकील की जिम्मेदारी केवल न्यायालय परिसर तक सीमित नहीं होती. हमारा कर्तव्य है कि हम समाज को न्याय दिलाने के साथसाथ लोगों को कानूनी जागरूकता, उनके अधिकारों और उनके कर्तव्यों की जानकारी भी प्रदान करें. -सैयदा हिना रिजवी, तमिलनाडु  
 
 
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