गुलटेकड़ी, 17 नवंबर (आ.प्र.) वर्तमान में मंडी समितियां केवल मंडी शुल्क (सेस) वसूलने के उद्देश्य से कार्य कर रही हैं. अतः, मंडी समितियों की कार्यप्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन करना आवश्यक है, ऐसे विचार महाराष्ट्र राज्य व्यापारी कार्रवाई समिति के समन्वयक एवम् दि पूना मर्चेंट्स चेंबर के अध्यक्ष राजेंद्र बाठिया ने रखे है. पुणे में मंगलवार (18 नवंबर) को राज्यव्यापी व्यापारी सम्मेलन हो रहा है. इस पृष्ठभूमि में बाठिया ने अपनी भूमिका स्पष्ट की है. बाठिया ने कहा कि महाराष्ट्र कृषि उपज क्रय-विक्रय अधिनियम, 1963 लगभग 60 वर्ष पुराना कानून है. इसमें आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है. फिलहाल व्यापारियों के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम (FSS I), पैकिंग अधिनियम (विधिक माप विज्ञान अधिनियम), GST आदि कानूनों का पालन करना अनिवार्य हो गया. औद्योगीकरण ने कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण की मात्रा में भी वृद्धि की, जिससे बाजार में बिक्री के लिए किसानों से प्राप्त उत्पादों की आपूर्ति कम हो गई. प्रारंभ में, किसानों से प्राप्त उत्पादों (कृषि उत्पादों) को विनियमित करने वाले कानून में संशोधन किया गया और उसे सभी कृषि उत्पादों पर लागू किया गया. परिणामस्वरूप, प्रांतों और विदेशों से आयातित उत्पादों का विनियमन भी बाजार समितियों के माध्यम से लागू किया गया, साथ ही उन स्थानों पर भी जहां बाजार समिति द्वारा कोई सुविधाएं प्रदान नहीं की जाती हैं. विभिन्न कानूनों के लागू होने के कारण, शहर की मंडी समिति इस अधिनियम में अपेक्षित कार्य नहीं कर पा रही थी. कृषि उपज मंडी समिति का कामकाज जारी रहे, इसके लिए मौजूदा कानून में कृषि उपज मंडी समिति में केवल किसानों से आने वाले माल को विनियमित करने का प्रावधान बना रहना चाहिए. किसानों के अलावा अन्य व्यापारियों या उद्योगों से आने वाले माल को विनियमित नहीं किया जाना चाहिए. ताकि उपभोक्ताओं को अधिक कीमत न चुकानी पड़े और मूल्य वृद्धि भी न हो. हाल ही में, राज्य सरकार ने महाराष्ट्र की कुछ बाजार समितियों को राष्ट्रीय बाजार समिति घोषित करने हेतु एक अधिसूचना जारी की है. इस अधिसूचना में कई त्रुटियां हैं. इसे कानून में बदलने से पहले, व्यापार प्रतिनिधियों से चर्चा करके निर्णय लिया जाना चाहिए. सरकार ने राज्य के बजट सत्र में प्रत्येक तहसील के लिए एक बाजार समिति बनाने की नीति जारी की है. कृषि उपज के लिए बाजार की उपलब्धता हेतु यह मामला आवश्यक है. किसी भी वस्तु को विनियमित करने के लिए, बाजार समिति किसानों, उपभोक्ताओं और अन्य हितधारकों को न्यूनतम सुविधाएं प्रदान करने के लिए बाध्य होनी चाहिए. बाजार समिति को अपने अधिकार क्षेत्र में उत्पादित कृषि उपज को केवल ऐसी सुविधाओं के साथ प्रदान किए गए कार्यक्षेत्र के भीतर ही विनियमित करने का अधिकार होना चाहिए. कृषि विभाग को उत्पादित कृषि उपज की मात्रा के आधार पर, मण्डी समिति के अधिकार क्षेत्र में आने वाले उत्पादों को विनियमित करने का अधिकार होना चाहिए. जो वस्तुएं अनुसूचित वस्तुओं में शामिल हैं, लेकिन सीधे तौर पर किसानों से संबंधित नहीं हैं, उन्हें विनियमित नहीं किया जाना चाहिए. इस संबंध में, यह शर्त रखना आवश्यक है कि मण्डी क्षेत्र में उत्पादित ऐसी वस्तुओं की मात्रा, मण्डी समिति में आने वाले माल के 50 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए.
पारंपरिक व्यवसायों को पुनर्जीवित करने अधिनियम आवश्यक महाराष्ट्र कृषि उपज क्रय-विक्रय अधिनियम, 1963, जिसे उपभोक्ताओं और किसानों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से लागू किया गया था, वर्तमान में बाजार परिसर में संचालित किसी भी संस्था के हित में नहीं है. इस अधिनियम में विदेशी निवेशकों, ठेका खेती, मॉल और ई-कॉमर्स के लिए विभिन्न प्रावधान किए गए हैं, लेकिन यह पारंपरिक व्यवसाय करने वाले व्यवसायों के लिए घातक साबित हो रहा है. इसलिए, दमनकारी प्रावधानों को निरस्त करने और बड़ी संख्या में अकुशल श्रमिकों के लिए रोजगार पैदा करने वाले पारंपरिक व्यवसायों को पुनर्जीवित करने के लिए इस अधिनियम को लागू करना आवश्यक है. - राजेंद्र बाठिया, (समन्वयक, महाराष्ट्र राज्य व्यापारी कार्रवाई समिति)
मंडी परिसर में बुनियादी सुविधाओं पर काम जरुरी बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ, मंडी परिसर में कृषि उपज के भंडारण हेतु गोडाउन, कोल्ड स्टोरेज की स्थापना आवश्यक है. कृषि उपज के निर्यात हेतु आवश्यक पैकिंग, गुणवत्ता आदि के संबंध में किसानों को प्रशिक्षित करना तथा निर्यात को प्रोत्साहित करना जरुरी है. किसानों से प्राप्त शीघ्र नष्ट होने वाली कृषि उपज के भंडारण की उचित व्यवस्था करना ताकि बिक्री न होने पर किसानों को होने वाले नुकसान को रोका जा सके. विभिन्न राज्यों में प्रसंस्करण उद्योगों को उक्त कृषि उपज के आगमन और प्रस्थान की जानकारी से अवगत कराना तथा उन्हें क्रय हेतु प्रेरित करना, बाजार समिति के कार्य का एक अंग होना चाहिए. कृषि उपज पर भारी मात्रा में कीटनाशकों और उर्वरकों का प्रयोग किया जा रहा है. इसका दुष्प्रभाव सभी स्तरों पर नागरिकों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. इसके लिए यदि एक आधुनिक प्रयोगशाला स्थापित की जाए और उक्त उपज का मंडी समिति द्वारा परीक्षण और प्रमाणीकरण किया जाए, तो उपभोक्ताओं को जैविक कृषि उपज उपलब्ध हो सकेगी. उपभोक्ता इसके लिए अधिक कीमत चुका सकेंगे. चूंकि ऐसी उपज की विदेशों में अधिक मांग है, इसलिए इसका निर्यात किया जा सकता है. मंडी समितियों को अपने कार्यक्षेत्र में उत्पादित कृषि उपज के गुणों के बारे में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता पैदा करनी चाहिए. अतः किसानों से प्राप्त कृषि उपज को बाजार में उपलब्ध कराया जाना चाहिए.