आसियान में माेदी के वर्चुअल संबाेधन का अर्थ गहरा हैं

    02-Nov-2025
Total Views |
 
 

thoughts 
कुआलालंपुर स्थित काॅन्वेंशन सेंटर के जिस चमचमाते गलियारे में दक्षिण एशिया के नेता संवाद कर रहे थे, वहां एक खाली कुर्सी बहुत कुछ बता रही थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी ने 47वें आसियान शिखर सम्मेलन और 22वें आसियान भारत शिखर सम्मेलन काे वर्चुअली संबाेधित किया. सम्मेलन में उनकी सुनियाेजित अनुपस्थिति ने कई चर्चाओं काे जन्म दिया. ्नया नई दिल्ली डाेनाल्ड ट्रंप से सार्वजनिक संपर्क बनाने से कतरा रही है?कुआलालंपुर में प्रधानमंत्री की गैरमाैजूदगी काे उनके व्यस्त रूटीन या कार्यक्रम से नहीं जाेड़ा जाना चाहिए, नई दिल्ली की तरफ से उस वाशिंगटन से जानबूझकर दूरी बनायी गयी है, जाे आतंक के साैदागराें काे दाेस्त के रूप में पेश करता है और जहां माॅस्काे के साथ आजमायी हुई दाेस्ती काे राजद्राेह बताया जाता है.दुनिया के दाे सबसे प्रभावशाली नेता - भारतीय प्रधानमंत्री माेदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डाेनाल्ड ट्रंप एक- दूसरे से कन्नी काटने के विचित्र कूटनीतिक दांव चल रहे हैं.
 
दाेनाें अपने-अपने देश काे लाेकतंत्र के प्रणेता के रूप में चित्रित करते हैं. लेकिन इधर दाेनाें आमने-सामने खड़े हाेने से बच रहे हैं.कुआलालंपुर के सम्मेलन काे, जहां ट्रंप ने आने का फैसला किया और माेदी ने ऑनलाइन संबाेधित करने का निर्णय लिया, दाे ताकतवर लेकिन अविश्वासी नेताओं के असहज रिश्ताें का नया प्रमाण बताया जा रहा है. मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम की मेजबानी से संपन्न हुए सम्मेलन में आसियान के दस सदस्य देशाें - इंडाेनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम, फिलीपींस, ब्रूनेई, कंबाेडिया, लाओस और म्यांमार - की ताे माैजूदगी थी ही, भारत, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे संवाद साझेदाराें की भी उपस्थिति थी. सम्मेलन की थीम ‘कने्निटविटी और रीसिलिएंस’ थी. जाे आर्थिक बेहतरी, सामुद्रिक सहयाेग और हिंद-प्रशांत में डिजिटल समावेशन की आसियान की महत्वाकांक्षा काे रेखांकित करती थी. भारत अपनी ए्नट ईस्ट पाॅलिसी के जरिये लंबे अरसे से आसियान काे अपने क्षेत्रीय विस्तार का केंद्रीय स्तंभ मानता रहा है.
 
इसी कारणकुआलालंपुर के मंच पर माेदी की अनुपस्थिति काे उनके कूटनीतिक ताैर-तरीके में आये महत्वपूर्ण बदलाव के ताैर पर देखा जा रहा है. वर्ष 2014 से आसियान-भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री माेदी की नियमित उपस्थिति रही है. शारीरिक रूप से माैजूद न हाेने पर उन्हाेंने सम्मेलन काे वर्चुअली संबाेधित किया है. उन्हाेंने इन बैठकाें और सम्मेलनाें का इस्तेमाल दक्षिण पूर्वी एशियाई देशाें के साथ भारत की आर्थिक मजबूती और रणनीतिक साझेदारी काे विस्तार देने के लिए ताे किया ही. एक अनिश्चित भूगाेल में उन्हाेंने चीन के वर्चस्ववादी रवैये और अमेरिका की अनिश्चित नीति के बीच नयी दिल्ली काे एक संतुलनकारी श्नित के रूप में पेश किया.्नवालालंपुर में माेदी की अनुपस्थिति के बारे में नई दिल्ली की तरफ से आधिकारिक बयान में कहा गया कि बिहार चुनाव और दीपावली के बाद के औपचारिक आयाेजनाें के कारण प्रधानमंत्री बहुत व्यस्त हैं.
 
पर यह कारण बहुत आश्वस्त नहीं करता. प्रधानमंत्री माेदी की अनुपस्थिति का बड़ा कारण यह रहा किकुआलालंपुर में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की माैजूदगी थी. इस साल की शुरुआत में वाशिंगटन में माेदी और ट्रंप की संक्षिप्त मुलाकात हुई थी. उस अवसर पर न ताे काेई साझा बयान जारी हुआ था, न काेई ठाेस समझाैता हुआ था. तब से दाेनाें की आमने-सामने की मुलाकात नहीं हुई है. ट्रंप की अहंकारी टिप्पणियाें ने भारत काे लगातार परेशानी में डाला है. भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष राेकने के ट्रंप के सार्वजनिक दावे ने नई दिल्ली काे असहज किया है. ट्रंप के इस दावे का कि प्रधानमंत्री माेदी ने उनसे रूसी तेल न खरीदने का वादा किया है. भारतीय अधिकारियाें ने लगातार खंडन किया है. इससे भी दाेनाें देशाें के बीच उपजे तनाव का पता चलता है. डींग हांकने के अलावा ट्रंप की नीतियाें से भारत काे आर्थिक नुकसान पहुंचा है. अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर भारी टैरिफ लगाया है. ऊर्जा क्षेत्र पर भी इस तनातनी का असर पड़ा है.
 
रूसी कच्चे तेल पर भारत की निर्भरता भी ट्रंप की सख्त नीतियाें से प्रभावित हुई है. राेजनेफ्ट और ल्यूकाॅयल जैसी रूसी तेल कंपनियाें पर अमेरिकी प्रतिबंध से भारतीय रिफाइनरी क्षेत्र में अनिश्चितता व्याप्त हाे गई है. इससे भुगतान और बीमा के मामले में जटिलता बनी है. ट्रंप बार- बार यह कह कर की, रूस से तेल खरीदने वाले देश पराेक्ष रूप से रूसी आक्रामकता की मदद कर रहे हैं, नई दिल्ली काे ही निशाना बना रहे हैं. इस बीच दिल्ली और वाशिंगटन के बीच रिश्ताें काे सुधारने की कूटनीति का काेई नतीजा नहीं निकला है. दावाें और वास्तविकता के बीच इतना अंतर है कि दाेतरफा रिश्ताें की गहरी खाई दिखाई देती है. ऐसे तनाव भरे माहाैल मेंकुआलालंपुर में ट्रंप के साथ माेदी की माैजूदगी जाेखिम भरी हाे सकती थी. वहां ट्रंप की एक लापरवाह टिप्पणी दुनियाभर की सुर्खियां बटाेर सकती थी, दूसरी ओर, व्यापार तथा ऊर्जा के माेर्चे पर भारत ने सावधानीपूर्वक अपनी जाे स्थिति बना रखी है, वह खतरे में पड़ सकती थी.ऐसे मेंकुआलालंपुर न जाकर प्रधानमंत्री माेदी ने खुद काे एक गैरजरूरी कूटनीतिक जाेखिम से बचा लिया है.
- प्रभु चावला