जांच एजेंसियां वकीलाें काे मनमाने ढंग से सम्मन जारी नहीं कर सकती. यह टिप्पणी शुक्रवार काे सुप्रीम काेर्ट ने सुनवाई के दाैरान की. काेर्ट ने ईडी द्वारा जारी दाे सीनियर वकीलाें का सम्मन रद्द करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा- अगर समन जारी करना जरूरी रहा ताे ईडी के डायरे्नटर की अनुमति जरूरी हाेगी.बता दें कि काेर्ट ने इस मामले में 12 अगस्त काे फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम काेर्ट ने वकील-मुवक्किल गाेपनीयता काे लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिससे कानूनी पेशेवराें काे बड़ी राहत मिली है. काेर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि केंद्रीय जांच एजेंसियां जैसे ईडी, सीबीआई या पुलिस वकीलाें से उनके क्लाइंट से जुड़े काेई सवाल नहीं पूछ सकते, जब तक मामला भारतीय साक्ष्य अधिनियम के विशेष अपवादाें में न आए.यह फैसला जांच एजेंसियाें द्वारा वकीलाें काे समन जारी करने के बढ़ते मामलाें पर स्वतः संज्ञान लेते हुए आया है. काेर्ट ने कहा कि वकील-मुवक्किल के बीच की सभी बातचीत कानूनी रूप से गाेपनीय है और बिना मुवक्किल की अनुमति के वकील से सवाल करना माैलिक अधिकाराें का हनन है.
सुप्रीम काेर्ट की बेंच ने अपने फैसले में जाेर दिया कि साक्ष्य अधिनियम वकील और क्लाइंट के संवाद की पूरी तरह रक्षा करता है. काेर्ट ने कहा कि बिना मुवक्किल की स्पष्ट अनुमति के वकील से क्लाइंट से जुड़े सवाल पूछना वैधानिक प्रावधानाें का उल्लंघन हैयह गाेपनीयता क्लाइंट काे बेझिझक कानूनी सलाह लेने की स्वतंत्रता देती है, जाे न्याय व्यवस्था की नींव है. काेर्ट ने चेतावनी दी कि जांच एजेंसियां अब मनमाने ढंग से वकीलाें काे निशाना नहीं बना सकेंगी.फैसले में विशेष अपवादाें काे भी स्पष्ट किया गया.काेर्ट ने कहा कि सिर्फ दाे स्थितियाें में ही वकील से सवाल किए जा सकते हैं- पहला, अगर मुवक्किल ने वकील से किसी अवैध काम काे अंजाम देने या उसमें शामिल हाेने के लिए कहा हाे.दूसरा, अगर वकील खुद किसी अपराध या धाेखाधड़ी का प्रत्यक्षदर्शी हाे, जाे मुवक्किल ने किया हाे. इन अपवादाें के बाहर काेई छूट नहीं है. काेर्ट ने धारा 132 का हवाला देते हुए कहा कि वकीलाें काे समन तभी जारी किया जाएगा, जब मामला इन अपवादाें में आए और समन में अपवादाें का स्पष्ट उल्लेख हाे.