पर्यावरणविद साेनम वांगचुक काे टाइम मैगजीन ने वर्ष 2025 के शीर्ष 100 क्लाइमेट लीडर्स की सूची में शामिल किया है. वांगचुक बीते एक दशक से प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा कृत्रिम ग्लेशियर बनाने में निरंतर नई काेशिशें कर रहे. मैगजीन ने लिखा कि वांगचुक एक इंजीनियर, शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता हैं.मालूम हाे अभी वांगचुक गिरफ्तार चल रहे हैं. ट ाइम मैगजीन के अनुसार साेनम वांगचुक ने साल 2013 के आखिर में 11,500 फीट की ऊंचाई पर आइस स्तूप प्राेजेक्ट की शुरुआत की. इसके जरिए लद्दाख के किसानाें काे अप्रैल और मई के महीने में फसलाें की बुआई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराना था. फरवरी 2014 के अंत तक उन्हाेंने सफलतापूर्वक दाे मंजिला आइस स्तूप का प्राेटाेटाइप बना लिया. इसमें लगभग डेढ़ लाख लीटर पानी स्टाेर किया जा सकता था.
मालूम हाे कि आइस स्तूप एक कृत्रिम ग्लेशियर है जाे पानी काे सर्दियाें में स्टाेर करके गर्मियाें में धीरे-धीरे पिघलाता है. ताकि खेती और बागवानी के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हाे सके. वांगचुक की इस तकनीक काे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. ये तकनीक लद्दाख ही नहीं बल्कि हिमालय और आल्प्स के क्षेत्राें में भी पहुंचाया. वांगचुक ने 2016 में हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स लद्दाख की स्थापना की. ये यूनिवर्सिटी हिमालयी क्षेत्राें के युवाओं काे शिक्षा, संस्कृति और पर्यावरण जैसी चुनाैतियाें से निपटने के लिए ट्रेनिंग देती है. इस यूनिवर्सिटी के प्राेग्राम छात्राें काे स्थानीय समस्याओं जैसे- ग्लेशियर पिघलना, कम बारिश के समाधान सिखाते हैं.