तलाक के बाद भी मिल सकता है संरक्षण

महिलाओं के निवास अधिकार के बारे में एड. बीएस धापटे की महत्वपूर्ण राय

    23-Nov-2025
Total Views |
 
bgdb
 
पुणे, 22 नवंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क):

 घरेलू हिंसा से संरक्षण कानून में महिलाओं के निवास अधिकार को विशेष महत्त्व दिया गया है. विवाह संबंधों से उत्पन्न साझा घर में रहने का अधिकार, सुरक्षा आदेश, तथा shared household की परिभाषा इन सभी विषयों पर सर्वोच्च न्यायालय ने महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान किया है. कई बार महिलाओं को घर से बेदखल करने, संपत्ति पर अधिकार न होने जैसे बहाने बनाकर मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना देने का प्रयत्न किया जाता है. परंतु कानून के विशेष प्रावधान धारा 17 और 19 महिलाओं को मजबूत संरक्षण प्रदान करते हैं.इस बारे में एड. बी.एस.धापटे ने दै.आज का आनंद से बातचीत की. प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के मुख्य अंश-   एड. भालचंद्र धापटे मोबाइल-9850166213 
 
प्रश्न: DV Act की धारा 17 के तहत ‌‘निवास का अधिकार' क्या है?
उत्तर: -
धारा 17 महिला को उसके वैवाहिक संबंधों से उत्पन्न shared household में रहने का कानूनी और मौलिक अधिकार प्रदान करती है. इस अधिकार के लिए उसके नाम पर संपत्ति होना, आर्थिक अधिकार होना या पति की अनुमति आवश्यक नहीं है. विवाह के बाद जिस घर में वह रही हो या रहने का अधिकार रखती हो, वही shared household माना जाता है, और पति या ससुराल वालों द्वारा उसे जबरन घर से निकालने पर कानून सख्त प्रतिबंध लगाता है. सर्वोच्च न्यायालय ने Prabha Tyagi vs Kamlesh Devi मामले में स्पष्ट किया है कि इस अधिकार के लिए महिला का उस घर में वास्तविक रूप से रहना आवश्यक नहीं है; उसका अधिकार विवाह संबंध से ही उत्पन्न होता है. इसलिए धारा 17 महिलाओं को वैवाहिक अत्याचार से बचाने और उन्हें घर से बेदखल होने से रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच है.

प्रश्न: धारा 19 के तहत न्यायालय Residence Order कैसे देता है और उसका उद्देश्य क्या है?
 उत्तर: -
धारा 19 न्यायालय को व्यापक अधिकार देती है कि घरेलू हिंसा सिद्ध होने पर महिला की सुरक्षा के लिए विशेष निवास संबंधी आदेश जारी करे. इस आदेश के अंतर्गत न्यायालय पति को घर खाली करने का निर्देश दे सकता है, महिला को स्वतंत्र कमरा या पूरे घर का उपयोग दे सकता है, उसे परेशान करने वाले लोगों को घर में प्रवेश से रोक सकता है, अथवा पति को किराये का अलग आवास उपलब्ध कराने का आदेश भी दे सकता है. इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य महिला को सुरक्षित वातावरण में रहने का अधिकार व्यावहारिक रूप से उपलब्ध कराना और हिंसा करने वाले व्यक्तियों से उसे दूर रखना है.

प्रश्न: सर्वोच्च न्यायालय ने Shared Household की अवधारणा पर क्या महत्वपूर्ण स्पष्टता दी है?
उत्तर: -
सर्वोच्च न्यायालय ने shared household की अवधारणा को बहुत व्यापक रूप में परिभाषित किया है. Satish Chander Ahuja vs Sneha Ahuja और झीरलहर Tyagi vs Kamlesh Devi जैसे मामलों में न्यायालय ने कहा है कि shared household केवल वही नहीं है जो पति के नाम पर हो, बल्कि वह स्थान भी है जहां पति-पत्नी ने वैवाहिक सहजीवन या संबंध स्थापित किया हो. भले ही महिला ने वहां कुछ समय वास्तविक रूप से न रहा हो, फिर भी उसका कानूनी अधिकार बना रहता है. न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि घर ससुराल पक्ष की मालिकी का हो, तब भी पत्नी का निवास अधिकार वहां मान्य हो सकता है, जब तक वह अधिकार वैवाहिक संबंध से उत्पन्न होता है. यह व्याख्या महिलाओं की आवास सुरक्षा को और अधिक मजबूत आधार देती है.

प्रश्न: इन अधिकारों का लाभ लेते समय महिलाओं को कौन-सी कठिनाइयाँ आती हैं और कानून उन्हें कैसे दूर करता है?
उत्तर: -
व्यवहार में कई महिलाओं को घर से निकाल देना, हिंसा का भय, संपत्ति पर अधिकार न होने का भ्रम, न्यायालयीन प्रक्रिया का डर तथा आर्थिक निर्भरता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कई बार पति या ससुराल वाले यह दावा करते हैं कि यह हमारा घर है, तुम्हें रहने का अधिकार नहीं. लेकिन ऊत लीं की धारा 17 और 19 ऐसे परिस्थितियों में महिला को तुरंत कानूनी सुरक्षा उपलब्ध कराती हैं. संरक्षण अधिकारी, स्थानीय पुलिस और न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले अंतरिम आदेशों के माध्यम से महिला को सुरक्षित आवास, चिकित्सकीय सहायता, परामर्श और त्वरित कानूनी हस्तक्षेप उपलब्ध होता है. इसलिए कानून केवल आवास ही नहीं देता, बल्कि महिला को गरिमापूर्ण जीवन जीने का आत्मवेिशास भी प्रदान करता है.

प्रश्न: क्या निवास का अधिकार तलाक के बाद भी लागू रहता है?
उत्तर: -
निवास का अधिकार domestic relationship की अवधारणा पर आधारित है. कुछ उच्च न्यायालयों ने कहा है कि विवाह विधिसम्मत रूप से समाप्त होने के बाद domestic relationship भी समाप्त हो जाती है, और इस कारण धारा 17 और 19 के अधिकार तकनीकी रूप से लागू नहीं रहते. हालांकि हर मामले की परिस्थितियाँ भिन्न हो सकती हैं. यदि महिला पर लंबे समय तक हिंसा हुई हो, वह आर्थिक रूप से आश्रित हो या उसके पास सुरक्षित निवास न हो, तो न्यायालय उसकी सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए उसे उचित अवधि के लिए निवास संरक्षण दे सकता है. इसलिए तलाक के बाद यह अधिकार तकनीकी रूप से सीमित हो सकता है, लेकिन न्यायालय महिला के मानवाधिकारों की रक्षा हेतु न्याय संगत हस्तक्षेप कर सकता है.