काश, यादों में जान होती, तो आवाज देकर बुला लेता...

धर्मेंद्र ने पुणे की यादें ताजा कर दी थीं, रिटायरमेंट के बाद पुणे में रहना चाहते थे

    25-Nov-2025
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पुणे, 24 नवंबर, (स्वप्निल बापट द्वारा) ‌

‘काश, यादों में जान होती, तो आवाज देकर बुला लेता..' इस शेर के साथ प्रसिद्ध अभिनेता धर्मेंद्र ने दो साल पहले पुणे में रसिकों के सामने अपनी कई यादों का खजाना खोल दिया था, जिनमें पुणे की कुछ यादें जुड़ी थीं. धर्मेंद्र ने पुणे शहर को याद करते हुए कहा था कि यह कभी खेती से घिरा एक खूबसूरत शहर था. मौका था सिम्बायोसिस कल्चरल फेस्टिवल में उनके इंटरव्यू का. दो साल पहले हुए इस कार्यक्रम में धर्मेंद्र के साथ जितेंद्र का भी साक्षात्कार हुआ था. यहां जाने-माने साक्षात्कारकर्ता सुधीर गाडगिल ने धर्मेंद्र का साक्षात्कार लिया था. धर्मेंद्र, जिनकी पर्दे पर ‌‘ही-मैन' जैसी इमेज रही, लेकिन उनके करियर में आए स्ट्रगल के बारे में सुनकर फैंस की आंखों में भी आंसू आ गए थे. वे बेहद नेक दिल इंसान हैं, ऐसा उनके फैंस हमेशा कहते हैं. धर्मेंद्र ने कहा था कि पुणे के लोगों ने मुझे हमेशा बहुत प्यार किया है. मैं रिटायर होकर पुणे आना चाहता था. लेकिन, मैं अभी रिटायर नहीं हुआ हूं, धर्मेंद्र ने उस समय घोषणा भी की थी कि वह 87 साल की उम्र में भी एक रोमांटिक फिल्म कर रहे हैं, जिसका तालियों की गड़गड़ाहट के साथ पुणे के फैंस ने जोर-शोर से स्वागत किया था. पुणे की अपनी यादों को याद करते हुए धर्मेंद्र ने कहा था, मैंने प्रभात स्टूडियो में शूटिंग की है. मैं इसे गुरुकुल समझता था. आज मुझे पुराना पुणे बहुत याद आता है. मैं 1960 के दशक में शूटिंग के लिए पुणे आया करता था. उस समय पुणे खेती से घिरा एक खूबसूरत शहर था. शूटिंग खत्म होने के बाद, मैं रानी झांसी की मूर्ति को नमन करने के लिए वहां पैदल जाता था. रिटायर होने के बाद, मैंने सोचा था कि मैं अपनी बाकी जिंदगी पुणे में बिताऊंगा, लेकिन क्या करुं, मेरा रिटायर होने का मन नहीं होता. धर्मेंद्र ने मजाकिया अंदाज में कहा था कि मैं अभी भी रोमांटिक हूं.
 
धर्मेंद्र जमीन से जुड़े हुए बहुत अच्छे इंसान थे

पंद्रह बीस साल पहले हम पुणे में मिले थे. हमने उनसे बहुत खुलकर बातें कीं. मुझे लगा कि धर्मेंद्र बहुत ही जमीन से जुड़े हुए इंसान थे. इतने बड़े आर्टिस्ट, स्टार, लेकिन फिर भी उनमें कोई घमंड नहीं था. उनकी पर्सनैलिटी बेहद अच्छी थी. वे अपनी स्कूल की यादों, उनके टीचर्स के नाम भी याद करते थे, उनके बारे में शुक्रगुजार थे. वह सबसे बहुत प्यार से बात करते थे. मिलनसार व्यक्ती थे. उनकी मौत से हमें बहुत दुख हुआ. एक बार मैं लोनावाला के पास धर्मेंद्र के फार्म हाउस पर गया था. वे कहीं बाहर थे, लेकिन, उन्होंने वहां के नौकरों को हमारे बारे में बता दिया था. भले ही धर्मेंद्र खुद वहां मौजूद न हों, उन्होंने यह नियम बना रखा था कि वह अपने घर आए मेहमानों को मेहमाननवाजी के साथ विदा करेंगे. - संत सिंह मोखा, पुणे  
 

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बचपन से ही मेरे अतिप्रिय कलाकार रहे

धर्मेन्द्र ही-मैन ग्रीक गॉड धरम पाजी मेरे बचपन से ही अतिप्रिय कलाकार रहे हैं. मैंने उनकी लगभग सभी फिल्में देखी है. जब मैं स्कूल में था तब मैंने उनकी फूल और पत्थर, दोस्त, जुगनू, आसपास, सीता और गीता, शोले, प्रतिज्ञा, गजब, अपने आदि फिल्में देखी और मैं स्कूल, कॉलेज व अपने मित्रों के सामने धरम पाजी के डायलॉग बोला करता था, उनका सबसे मशहूर डायलॉग कुत्ते में तेरा खून पी जाऊंगा आदि मैंने अनेको बार दोहराया. जब मैं वाडिया कॉलेज में अपनी पढ़ाई कर रहा था तब सभी मुझे वीरू के नाम से जानते थे और अटेंडेंस में भी मेरा नाम वीरू ही लिखा गया था. मैंने काफी बाद में अपना नाम सही करवाया. वैसे आज भी मुझे मेरे कॉलेज के दोस्त मुझे वीरू के नाम से ही जानते हैं. मैं धर्मेंद्र पाजी के बगैर फिल्म जगत की कल्पना भी नहीं कर सकता. दिन में कम से कम 10 बार उनका जिक्र होता है. कोई भी उनके सम्मोहन से बच नहीं सकता और उन्होंने सभी के दिलों पर राज किया है. धरमजी हमारे दिलों में है. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे. - बी. एस. भोगल, सीनियर एडवोकेट, हाईकोर्ट  
 
 
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