शिवाजीनगर, 26 नवंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क) 70 प्रतिशत भारतीय खबरें पढ़ने के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर हैं. हर चार में से तीन लोग जानकारी पाने के लिए स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते हैं. इस बदलाव की वजह से इन्फ्लुएंसर और पर्सनैलिटी-ड्रिवन कंटेंट का दबदबा बढ़ गया है, जिनके पास जर्नलिअम में कोई ट्रेनिंग या अकाउंटेबिलिटी नहीं है. वरिष्ठ पत्रकार और क्वेश्चन ऑफ सिटीज की संस्थापक संपादक स्मृति कोप्पिकर ने कहा कि ऐसे लोग पब्लिक ओपिनियन बना रहे हैं. वह 9वें दिलीप पडगांवकर मेमोरियल लेक्चर में बोल रही थी. सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड यूनिवर्सिटी) और पुणे इंटरनेशनल सेंटर के साथ मिलकर मंगलवार (25 नवंबर) को यह लेक्चर आयोजित किया गया था. सिम्बायोसिस वेिश भवन ऑडिटोरियम में उनके लेक्चर का विषय था ‘चौथे पिलर को फिर से जिंदा करना, चुप आवाजों को प्लेटफॉर्म देना' डॉ. रघुनाथ माशेलकर सेशन के चेयरपर्सन के तौर पर तथा सिम्बायोसिस के फाउंडर और प्रेसिडेंट और सिम्बायोसिस इंटरनेशनल (डीम्ड यूनिवर्सिटी) के चांसलर डॉ. एस. बी. मजूमदार कार्यक्रम के चेयरपर्सन के तौर पर मौजूद थे. सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. रामकृष्णन रमन और लतिका पडगांवकर इस मौके पर मौजूद दूसरे जाने-माने लोगों में शामिल थे. अपने संबोधन में कोप्पिकर ने सोशल मीडिया के बढ़ते असर से पत्रकारिता में आए संकट पर रोशनी डाली. उन्होंने कहा कि आज, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर, सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट और ऑनलाइन क्रिएटर जो जानकारी की असलियत को वेरिफाई नहीं करते, वे अक्सर उतने ही भरोसेमंद लगते हैं. इससे पाठकों में भ्रम पैदा होता है और मीडिया पर भरोसा कम होता है. पारंपरिक न्यूजशम इस प्रोसेस, एथिकल स्क्रूटनी और पब्लिक अकाउंटेबिलिटी से बंधे होते हैं.इसके उलट, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म गलत जानकारी की जिरमेदारी से खुद को दूर रखते हैं. कोप्पिकर ने यूएस सीनेट की सुनवाई में फेसबुक के स्टैंड का जिक्र किया, जहां कंपनी ने साफ किया कि वह एक टेक प्लेटफॉर्म है, न्यूज ऑर्गनाइजेशन नहीं, जिससे वह फेक न्यूज की जिरमेदारी से बच गई. सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के मीडिया और कम्युनिकेशन फैकल्टी की डीन, डॉ. रुचि खेर जग्गी ने स्वागत भाषण दिया. पीआईसी के डायरेक्टर, मेजर जनरल (रिटायर्ड) नितिन गडकरी ने धन्यवाद दिया. लिसा पिंगले ने संचालन किया.
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को फिर से जिंदा करना होगा कोप्पिकर ने कहा, कल की जर्नलिअम उन कम्युनिटीज की है जिन्हें बाहर रखा गया है, नुकसान पहुंचाया गया है या नजरअंदाज किया गया है. लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को फिर से जिंदा करने के लिए पत्रकारिता को ‘सार्वजनिक सेवा' और ‘सार्वजनिक हित' के तौर पर फिर से सोचने की जशरत है.