जिंदगी भी ऐसे ही बदल रही है प्रतिपल. और तुम तैयार उत्तरले कर उसके पास जाते हाे. तुम अगर जिंदगी में चूक रहे हाे, ताे तुम्हारे तैयार उत्तराें के कारण चूक रहे हाे.परमात्मा का अगर द्वार बंद है, ताे तुम्हारे ज्ञान के कारण बंद है. तुम अपने ज्ञान काे हटाओ और तुम उसे पाओगे वह सामने खड़ा है लेकिन तुम चाहते हाे, धनुष-बाण लेकर खड़े हाे. क्याेंकि हम ताे रामचंद्र जी का उत्तर पकड़े बैठे हैं.कि मुंह पर बांसुरी बजाओ रख कर. क्याेंकि हम ताे कृष्ण के भक्त हैं.तुम हाेओ भक्त! जिंदगी न कृष्ण काे मानती है, न राम काे, न बुद्ध काे. ये सब जिंदगी में पैदा हुए हैं. जिंदगी इनके किसी के ढांचे काे नहीं मानती. वह राेज बदलती जाती है. जिंदगी पुररुक्त नहीं हाेती. कृष्ण एक बार; दुबारा नहीं हाेते. जिंदगी बासी नहीं हाेती. जिंदगी राेज नये काे पैदा करती है. अब वे दुबारा माेर-मुकुट बांध कर खड़े न हाेंगे और तुम माेर-मुकुट वाले कृष्ण की प्रतीक्षा कर रहे हाे.
तुम थकाेगे, मराेगे, मिटाेगे. वे कृष्ण अब आयेंगे नहीं. वह बात चूक गई. अब हाे सकता है वे टाई वगैरह बांध कर खड़े हाें. तुम चूक जाओगे. तुम कहाेगे, ‘टाई और कृष्ण? कभी नहीं’ लेकिन क्या अड़चन है? माेर-मुकुट बांध सकते हाे, टाई नहीं? माेर-मुकुट कुछ बेहतर है टाई से? लेकिन माेर - मुकुट परंपरागत उत्तर है? समझ में आता है.एक गांव में मैं गया था, वहां दंगा हाे गया. क्याेंकि कालेज के लड़के एक नाटक खेल रहे थे. नाटक एक मजाक था, लेकिन लाेग मूढ़ हैं और मजाक काे भी नहीं समझ पाते. मूढ़ का लक्षण ही यही है कि वह मजाक काे बिलकुल ही नहीं समझ पाते. नाटक था माॅडर्न रामलीला. मजाक ही था, एक व्यंग था. लेकिन झगड़ा हाे गया. क्याेंकि रामचंद्र जी टाई वगैरह बांधे, पैंट-काेट पहने खड़े थे नाटक में और सीता जी सिगरेट पी रही थीं.
झगड़ा हाे गया. वहीं दंगा-फसाद हाे गया. वहीं कुर्सियां ताेड़ डाली गईं. मंच पर लाेग चढ़ गये, उन्हाेंने कहा कि अपमान हाे गया.
बड़ी हैरानी की बात है! शास्त्राें में लिखा है कि विष्णु स्वर्ग में बैठे तांबूल चर्वण करते रहते हैं. वह चलेगा. पान खायें, चलेगा. माेर-मुकुट बांधें, चलेगा. क्याेंकि वह उत्तर हमारा सुना हुआ है. इतनी बार दाेहराया गया, कि हम भूल ही गये - जरा माेर-मुकुट बांध कर चाैखट्टे पर खड़े हाे जाओ कैसा पता चलता है! लाेग समझेंगे, पागल हाे गये. जिंदगी राेज बदल जाती है.और तुम्हारे उत्तर कभी नहीं बदलते. तुम जिंदगी से राेज चूक जाते हाे. तुम्हारा कहीं मेल ही नहीं हाेता. अगर परमात्मा तुम्हें नहीं मिल रहा है, ताे तुम्हारे बंधे हुए उत्तराें की वजह से. और जब भी तुम्हें काेई नया उत्तर दिया जायेगा, तुम सुनाेगे नहीं. क्याेंकि तुम इतने पुराने से भरे हाे.