अजित सतरा साधु-साध्विओं के लिए आयुर्वेदिक दवाएं बनाते हैं

कपड़ों के जूतों से लेकर कमंडल तक बनाते हैं

    10-Dec-2025
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इस वर्ष का चतुर्मास पूर्ण हो चुका है और गुरू भगवंतों का विहार चालू हो गया है. अभी तो ठंड़ी के दिन है, लेकिन फिर भी दोपहर को या सुबह 9 बजे के बाद ही कड़ी धूप का सामना करना पड़ता है. जैन साधु-साध्वी जहां भी जाते हैं पैदल जाते हैं. इस अवसर पर ठंड़ी के साथ उन्हें रास्ते में चलते समय गड़्‌‍ढे या कांटे पांव में चुभते हैं, इसलिए जैन साधु-साध्वी सभी कपड़े के जूते पहनते हैं. उसे मोजे कहा जाता है. गुजरात में कच्छ-भुज के रापर तहसील में सुवई गांव के अजित सतरा इन्हें बनाकर महाराज साहब के पास भेजते हैं. अजित सतरा ठाणे में रहते हैं और वहां से वे गुरुदेव को उनके विहारों के साथ-साथ अन्य अवसरों के लिए सामान बनाकर पहुंचाते हैं. इसके साथ ही भक्तों से मिले ऑर्डर के अनुसार भी सामान पहुंचाते है. बेशक वे यह काम अब भी कर रहे हैं; लेकिन उन्होंने अपना कारोबार गुजरात के सुवई गांव में शिफ्ट कर दिया है, क्योंकि ठाणे में किराए पर जगह लेकर यह बिजनेस वे नहीं कर सकते थे. कच्छ के कई जैन अब महाराष्ट्र या देश के दूसरे शहरों में बस गए हैं; लेकिन गांव में उनके घर अभी भी खाली हैं. इसलिए, उनके लिए यहां यह बिजनेस करना पैसे के हिसाब से आसान था. मुंबई में किराए की जगह के लिए जो पैसे उन्हें देने पड़ते हैं, उनका इस्तेमाल गुरुदेव के लिए सामान बनाने के लिए पूंजी के तौर पर किया जाता है. यानी धार्मिक लाभ और बिजनेस भी. सुवई में अजित सतरा जैन साधुसाध्वि यों के लिए ऑर्डर के हिसाब से मोजे, कपड़े जूते, दस्ताने, शॉल, कानपट्टी, पात्रा, जशरी दवाइयां वगैरह बनाते हैं और उन्हें साधु-साध्वियों तक पहुंचाते हैं. उनका सामान उपधानताप, चारिपालित संघ, नव्वाणुजात्रा में आसानी से मिल जाता है. अजित सतरा खुद कपड़े के मोजे, कानपट्टी और शॉल बनाते हैं. साधुसाध्वि यों के लिए जशरी मोजे पांव के साईज अनुसार 5 से 15 साइज में बनाए जाते हैं. मात्र, इसके लिए पहले से बुकिंग करानी पड़ती है. बुकिंग के बाद, ऑर्डर किया गया सामान आमतौर पर 15 दिनों के अंदर मिल जाता है. इन मोजों, कानपट्टी, टोपी या शॉल को बनाने के लिए जशरी कपड़ा अहमदाबाद, दिल्ली, लुधियाना और पानीपत से लाया जाता है. इसके साथ ही, गर्म थर्मल भी बनाए जाते हैं. मोजों या चप्पलों की कीमत लगभग 350 से 600 रुपये होती है. जैन साधु-साध्वियां अपने हाथों में लकड़ी का पात्रा (कमंडल) लेकर चलते हैं. यह लकड़ी राजस्थान से मंगवाई जाती है और फिर यह बर्तन बनाया जाता है. इसके साथ ही मसाज ऑयल, मच्छर भगाने वाला तेल, एसिडिटी की दवां, हैंड सैनिटाइजर, स्ट्रांग पेन बाम, और सर्दी, खांसी जैसी कुछ बीमारियों के इलाज के लिए लगभग 50 आयुर्वेदिक दवाएं भी यहां से सप्लाई की जाती हैं. अजीत सतरा कहते हैं कि चूंकि ये चीजें गांव में बनती हैं. इस व्यवसाय में उन्हें हर साल 3 लाख रुपये तक की बचत होती है और वे इस पैसे को चैरिटी में खर्च करते हैं. अजित सतरा, ठाणे (मो. 9321936247 / 9316144510)