वाेटर लिस्ट सही नहीं ताे जनता की भावना काे ठेस पहुंचेगी

    10-Dec-2025
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पचास साल से भी अधिक समय पहले, भारतीय राजनीति के एक प्रतिष्ठित ब्रिटिश विद्वान ने व्यंग्यपूर्वक टिप्पणी की थी, ‘चुनाव उन चीजाें में से एक है, जिन्हें भारतीय बहुत अच्छे से संपन्न करते हैं.’ भारतीय लाेकतंत्र के स्थायी रूप से स्थगित या ‘निर्देशित’ हाेने की आशंका (जाे पूरी तरह से गलत नहीं थी) की पृष्ठभूमि में, चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता काे सार्वजनिक जीवन की एक उद्धारक विशेषता के रूप में देखा जाता था. लाेकतंत्र के इस प्राथमिक स्तंभ की अंतिम पुष्टि 1977 में तब हुई. जब आपातकाल की छाया के बावजूद मतदाताओं ने एक अधिनायकवादी शासन काे वाेट केजरिये सत्ता से बाहर कर दिया.चुनाव आयाेग की यह सुनिश्चित करने की क्षमता कि जनमानस की इच्छा विधायिकाओं में परिलक्षित हाे, स्वतंत्रता प्राप्ति के पिछले सात दशकाें में बार-बार परखी गई है.
 
हालांकि, मार्ग से विचलित हाेने के उदाहरण भी हैं, इनमें 1972 का पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव और 1987 के जम्मू-कश्मीर चुनाव उल्लेखनीय हैं, लेकिन, भारत का चुनावी अनुभव आमताैर पर राजनीतिक प्रणाली की वैधता बनाए रखने में सहायक रहा है. जैसा कि सर्वाधिक मत से जीत की प्रणाली में हाेता है, जाे विधायी बहुमत काे बढ़ाचढ़ाकर दिखाती है, ऐसे उदाहारण भी हैं. जब हारने वाले लाेग हैरानी में रह गए. जिनके चुनावी अभियान के अनुभव परिणाम से मेल नहीं खाते थे. 1971 में, एक पराजित पक्ष ने जाेर देकर कहा कि साेवियत-निर्मित ‘अदृश्य स्याही’ के उपयाेग ने इंदिरा गांधी काे शानदार जीत हासिल करने में मदद की. उपग्रह द्वारा ईवीएम के हेरफेर के अविश्वसनीय दावे 2009 के आम चुनाव के बाद भी सुने गए थे.जाे कभी साजिश सिद्धांतकाराें का विशेषाधिकार हुआ करता था.
 
वह अब हाशिए का मुद्दा नहीं रहा है. अपनी पार्टी के संख्या-विश्लेषकाें से प्राेत्साहित हाेकर, जिनकी भविष्यवाणियां परिणाम से भिन्न थीं, विपक्ष के नेता ने मतदाता सचियाें की सत्यता काे चुनाैती दी है. जाेरदार दावे किए गए हैं कि चुनाव आयाेग विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का उपयाेग कर अल्पसंख्यक मतदाताओं काे इस आधार पर बाहर करने पर विचार कर रहा है कि वे भारतीय नहीं भी हाे सकते हैं. यह विवाद पश्चिम बंगाल के राजनीतिक दलाें के बीच खींचतान का विषय बन चुका है और यह असम तथा अन्य पूर्वाेत्तर राज्याें में भी फैल सकता है.चूंकि, संविधान का अनुच्छेद 321 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम चुनाव आयाेग काे चुनाव के संचालन के संबंध में ‘विशेष क्षेत्राधिकार’ देता है, इसलिए चुनावी प्रक्रिया काे राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर रखा गया है. दशकाें में चुनाव आयाेग ने चुनावाें की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कई नवाचार किए हैं. सबसे महत्वपूर्ण उपायाें में आदर्श आचार संहिता शामिल है, जाे अप्रिय राजनीतिक व्यवहार पर अंकुश लगाती है और ईवीएस ने वाेटाें में हेरफेर काेकठिन बना दिया है, हालांकि यह असंभव नहीं है.
 
अब मतदान केंद्राें पर पुलिस और अर्धसैनिक बलाें की तैनाती के लिए नियम माैजूद हैं. इसके अतिर्नित, प्राैद्याेगिकी के प्रसार के साथ, चुनाव आयाेग मतदान केंद्राें में सीसीटीवी कैमराें पर जाेर दे रहा है, ताकि मर्यादा बनी रहे तथा मतदान अधिकारियाें और मतदाताओं काे डराया-धमकाया न जा सके. यह सच है इन नवाचाराें में से काेई भी पूर्णत: दाेषरहित नहीं है. मतगणना केंद्राें सहित स्थानीय स्तर पर अ्नसर बाहुबल का प्रभाव रहता है और इसके संभावित रूप से विकृत परिणाम हाे सकते हैं. मतदान अधिकारियाें द्वारा हेरफेर के अनुभवजन्य प्रमाणाें काे भी पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता. जब संसद में शीतकालीन सत्र के दाैरान चुनाव सुधाराें पर चर्चा हाेगी, ताे संभव है कि देश काे आदर्श लाेकतांत्रिक आचरण के अन्य विचलनाें के बारे में सुनने काे मिले. जिनका चुनाव आयाेग द्वारा समाधान किए जाने की आवश्यक है.
 
लाेकतांत्रिक परियाेजना में एक महत्वपूर्ण हितधारक के रूप में, ससंद काे आम जनता के लिए अपने व्यापक चुनाव अनुभव काे संकलित करने की आवश्यकता है.हालांकि, अच्छी राजनीति के बड़े लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हाेगी, यदि कार्यपालिका चुनाव आयाेग के खिलाफ आम धमकियाें, जिनमें शारीरिक नुकसान भी शामिल है, का इशारा करती है और सरकारी अधिकारियाें, जिनके शालीन आचरण पर पूरी प्रणाली निर्भर है. काे अपने सांविधानिक कर्तव्याें का पालन करने से राेकती है. पश्चिम बंगाल में चल रहे एसआईआर के दाैरान सत्तारूढ़ दल का आचरण शर्मनाक है.सटीक मतदाता सूची का अस्तित्व लाेकतंत्र की मूल शर्त है. यदि वंचित समुदायाें के सदस्य मतदान केंद्राें से दूर रहने के लिए मजबूर किए जाते हैं. ताे इसका विराेध हाेना लाजिमी है. -स्वपन दासगुप्ता