भविष्य में इंडिगाे संकट से क्या हम सबक सीखेंग?

    15-Dec-2025
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बड़ी कंपनियां सिर्फ मुनाफे के लिए ही नहीं, बल्कि काराेबार काे निरंतर जारी रखने के लिए भी चलाई जाती हैं. ऐसे में, जब राष्ट्रीय वायुमार्ग पर दबदबा रखने वाली काेई विमानन कंपनी सिस्टम में खराबी का शिकार बनती है, ताे उसके परिचालन संबंधी पहलुओं से आगे जाकर भी सवाल पूछे जाने चाहिए, खासकर बाेर्ड की जवाबदेही काे लेकर प्रश्न पूछे ही जाने चाहिए.यह सच है कि बाेर्ड किसी काराेबार के दिन-प्रतिदिन के क्रिया-कलाप में हस्तक्षेप नहीं करते, लेकिन इंडिगाे के मामले में बाेर्ड की भूमिका जांच से परे नहीं है.विमानन कंपनियाें काे नए सुरक्षा नियमाें के बारे में काफी पहले बता दिया गया था. कुशल कर्मचारियाें की कमी का असर साफ था. साॅफ्टवेयर में बदलाव भी पहले से तय थे. शादी के माैसम की गहमागहमी का अंदाजा भी लगाया जा सकता था. ये काेई अचानक आ गई चुनाैतियां नहीं थीं, बल्कि परिचित दबाव थे, जाे हर बार इसी समय आते ही हैं.
 
बाेर्ड ऐसी चुनाैतियाें काे देखने और उनसे निपटने लिए ही हाेते हैं. उनका काम सिर्फ कमाई या विस्तार याेजना की समीक्षा करना भी नहीं है.उनका काम यह देखना भी है कि क्या कंपनी प्रबंधन ने परिचालन संबंधी याेग्यता और संकट के समय तैयार रहने के लिए अतिरिक्त क्षमता तैयार की है या नहीं? इंडिगाे का ताजा संकट कई बुनियादी सवाल खड़े करता है. क्या स्टाफ के बारे में जांच तब की गई, जब यह साफ हाे गया कि सुरक्षा के नियम कड़े हाेंगे? क्या बड़े पैमाने पर प्राैद्याेगिकी काे शामिल करने से पहले अचानक बढ़ने वाले उपराेक्त दबावाें का आकलन किया गया था? क्या संचार प्रणाली पर पड़ने वाले दबाव पर गाैर किया गया था? क्या कंपनी के डायरेक्टर काे परिचालन में हाेने वाली द्निकताें के संकेत लगातार मिले थे? अगर मिले, ताे क्या उन्हाेंने प्रबंधन काे आपात माेड में डाला? उड़ानाें के बाधित हाेने के सबसे बुरे दाैर में यात्रियाें के साथ एयरलाइन का बुरा व्यवहार निगरानी की कमजाेरी काे दिखाता है.
 
इंडिगाे के तंत्र ने विमान परिचालन के बारे में जाे वस्तुस्थिति बताई, वह हवाईअड्डा प्राधिकरण के आंकड़ाें से सर्वथा भिन्न थी.
बात-बात की सूचना देने के इस अत्याधुनिक जमाने में सूचनाओं में ईमानदारी बहुत जरूरी हाेती है. बाेर्ड अगर इसे सिर्फ एक ब्रांडिंग डिटेल मानता है, ताे वह इसकी अर्थव्यवस्था और प्रतिष्ठा पर पड़ने वाले असर से नावाकिफ है. एयरलाइन की इन गहरी खामियाें का सबसे बड़ा नुकसान समूह की अग्रिम पंक्ति में तैनात कर्मचारियाें काे उठाना पड़ा. ये कर्मचारी उन फैसलाें और नाकामियाें के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने लगे, जाे उन्हाेंने नहीं लिए या जिनकाे उन्हाेंने डिजाइन ही नहीं किया था.बाेर्ड इसलिए हाेते हैं कि बड़ी समस्याओं काे वे ऊपर ही निपटा दें. माना जा रहा है कि इस पूरी घटना पर नजर रखने वाले बड़े निवेशक और विश्लेषक प्रबंधकाें से बहुत सारे सख्त सवाल पूछेंगे, लेकिन ये ऐसे सवाल हैं, जाे बाेर्ड काे खुद ही बहुत पहले पूछने चाहिए थे.
 
क्या बदले हुए ड्यूटी-टाइम नियमाें से पहले ‘नाॅमिनेशन एंड रेमुनरेशन कमेटी’ ने कंपनी के कार्यबल की समीक्षा की थी? क्या इस कार्यबल काे बाेर्ड के सामने उपलब्ध मानव संसाधन के बजाय परिचालन संबंधित जाेखिम के ताैर पर पेश किया गया था? क्या बाेर्ड के स्तर से परिचालन काे प्रभावित करने वाले प्रक्रियागत साॅफ्टवेयर की जांच की गई थी? किसी नाकाम स्थिति या अति व्यस्ततम परिस्थितियाें काे झेलने में ग्राहक सूचना प्रणाली के सक्षम हाेने की क्या जांच की गई थी? और क्या बाेर्ड ने विमानाें में बढ़ाेतरी की तरह ही व्यावसायिक निरंतरता का भी उसी गंभीरता से मूल्यांकन किया? या क्या जाेखिम काे इस साेच के आधार पर अनाैपचारिक तरीके से नजरअंदाज कर दिया गया था कि प्रमाेटर का असर, नियामक गतिविधि और राजनीतिक वरदहस्त विमानन कंपनी काे आसानी से चलाता रहेगा? भारत में काॅरपाेरेट जांच-पड़ताल अक्सर सीईओ के ऑफिस तक सीमित रहती है. ऐसी ढांचागत प्रणाली में प्रबंधन के पास शायद ही अहम रणनीतिक शक्ति हाेती है, स्वतंत्र निदेशकाें की ताे बात वैसे ही कम सुनी जाती है.
 
बाेर्ड सक्रिय ताे हाे सकते हैं, लेकिन जाेखिम कम करने की येाजना बनाने, परिचालन संबंधी गतिविधियाें पर सवाल उठाने और सत्ता के अति-केंद्रीकरण काे राेकने में उनकी भूमिका सीमित हाेती है. पुराने और सक्रिय बाजाराें में इस तरह की नाकामियाें की जांच आम ताैर पर बाेर्ड स्तर पर लगातार हाेती रहती है, लेकिन भारत में एक बार व्यवस्था सुधरी नहीं कि ध्यान भटक जाता है. इसके प्रभाव बुरे पड़ते हैं. यहां बाधाओं से संस्थागत सबक लेने के बजाय उसे एक घटना भर मान लिया जाता है और प्रशासनिक कमजाेरियां जस की तस बनी रह जाती हैं. क्षेत्रगत एकाग्रता से जिम्मेदारी बढ़ती है. किसी भी महत्वपूर्ण क्षेत्र में अधिक बाजार हिस्सेदारी रखने वाले व्यवसाय काे एक सामान्य कंपनी से भिन्न भूमिका निभानी चाहिए. निरंतरता, पारदर्शिता और जाेखिम नियंत्रण उसकी सार्वजनिक जिम्मेदारी हाेती है. इंडिगाे में जाे हुआ, उसके व्यवस्थित परिणाम सामने आने चाहिए. बाेर्ड काे चाहिए कि वह जिस गंभीरता से विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, उसी गंभीरता से व्यवस्था काे पुन: पटरी पर लाने के बारे में भी आकलन करे, केवल माफी मांगना काफी नहीं है. -श्रीनाथ श्रीधरन