कॉम्प्रोमाइज करने से ही रिश्ते बनते और निभते हैं..!

पिछले 35 सालों से ‌‘मैचमेकिंग" का काम कर रहे समाजसेवी द्वारका जालान से एक मुलाकात

    16-Dec-2025
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पिछले कुछ सालों में शादी के लिए रिश्ते जुड़ना एक बड़ी समस्या बन गयी है. अब शादियां जल्दी नहीं होतीं और उन्हें निभाने में दिक्कतें आती हैं. इसे समाज के विकास के लिए एक बड़ा संकट माना जा रहा है. पुणे के जाने- माने उद्योगपति और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता, लायंस क्लब के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर द्वारका जालान ने इस मुद्दे पर गहराई से विचार किया है और “आज का आनंद” के पाठकों के सामने अभी जो दिक्कतें आ रही हैं, उन्हें रखा है. पेश है, वरिष्ठ प्रतिनिधि स्वप्निल बापट द्वारा उनके साथ किए गए सवाल-जवाब के संपादित अंश.  
संपर्क :
द्वारका जालान
बिल्डर, समाजसेवी, मोटिवेशनल स्पीकर
मोब. : 98220-40631
 
स्वर्ग-नर्क का निर्माण अपने ही हाथों में
 स्वर्ग-नर्क का निर्माण हम अपने हाथों से कर रहे हैं. मेरा मानना है कि कोई स्वर्ग-नर्क होता नहीं. आपके आंगन में बालगोपाल खेल रहे हैं, इससे बड़ा कोई स्वर्ग नहीं. और आपके बच्चे अगर आपके मुंह पे जवाब दे रहे हैं, तो इससे बड़ा कोई नर्क नहीं. जहां कहीं ये शादियां सफल हो गई, वो स्वर्ग है. और जहां विफल हो गई, वो नर्क है. आप अपने हाथों से सब कुछ कर रहे हो. फिर ये सफल और विफल क्यों होती है..?
 
कुछ शादियां आंक‹डों की वजह से टूटती हैं..
मेरे पास एक बंदा आया. उसको एक बायोडाटा जम गया. बोला द्वारक, ये जमता तो है, लेकिन ये लडकी वाला कितने पैसे लगाएगा..?तो मैंने उससे पूछा, तेरे कितने बच्चे हैं..? वो बोले, एकही लड़का है. मैं बोला तेरी संपत्ति कितनी है..उन्होंने जवाब दिया, 100 करोड़.मैं बोला, जिस दिन ब्याह के लड़की को घर में लाएगा 50 करोड़ तो उसके हो गए. तो कहां तू देखता है कि सामने वाला 50 लाख लगा रहा है कि 1 करोड़ लगाता है. क्या फर्क पड़ता है तेरे को मेरे यार..?उसको बात जम गई. बोले, यार लड़की अच्छी है. मुझे रिश्ता करना है.अच्छी लड़की या अच्छा लड़का देखिए. संपत्ति तो आपकी कमाई हुई काम आएगी. किसी की दी हुई संपत्ति कितने समय तक काम आनेवाली है.. पैसे के लिए रिश्ते मत छोड़िए.  
 
सवाल- आजकल मैचमेकिंग बहुत मुश्किल हो गई है. आपका क्या अनुभव है और आपको इस विषय पर बात करने का मन क्यों हुआ..?
जवाब ;
मैं लगभग 35 सालों से मैचमेकिंग का काम कर रहा हूं. अपने पैशन से या इसलिए कि मुझे इसमें खुशी मिलती है. संक्षेप में, जब वह रिश्ता मैच होता है, तो लड़की के पिता के चेहरे पर जो खुशी दिखती है, उससे मैं बहुत खुश होता हूं. मैंने यह काम शुरू किया और मुझे इसमें हाथों-हाथ सफलता मिली. बेशक, अग्रवाल कम्युनिटी से. मैंने सैकड़ों रिश्ते मैच किए हैं, इसलिए बहुत से लोग मुझे जादूगर कहते थे. लेकिन, पिछले 10-15 सालों में, मैंने देखा है कि अब तस्वीर काफी बदल रही है. खासकर पिछले 10 सालों में, मैं हर लड़के या लड़की के लिए 20-20, 25-25 बायोडेटा भेज रहा हूं, फॉलो-अप ले रहा हूँ, लेकिन शादी मैच नहीं हो रही है. और तब मैं भी कुंठित हो जाता हूं, कि मैं इतने प्रयास कर रहा हूं और रिश्ते हो क्यों नहीं रहे..? अब ब्रोकर्स मार्केट में आ गए हैं. उनके हिसाब से रिश्ते हो भी रहे हैं. क्योंकि वो उनका धंधा है. इसके लिए कुछ भला-बुरा उनको लगता भी नहीं. लेकिन अगर मेरे जैसा कोई सेवा करने वाला है, तो वो कितने दिन तक इस काम को करेगा..? मैं भी धीरे-धीरे इसमें से बाहर ही निकलने वाला हूं. लेकिन इस वक्त जो मेरे आमने-आसपास जो हो रहा है, जो हम देख रहे है कि क्यों रिश्ते नहीं हो रहे हैं, तब मैंने बहुत सा सर्वे किया, सर्च किया और बहुत से अनुभव लिए, लोगों से सुने. फिर मुझे ऐसा लगा कि अब कहीं न कहीं बात उठानी चाहिए, वरना आगे अंधकार है.

सवाल - पिछले 10-15 वर्षों में बदली हुई परिस्थिति और उसके होने वाले परिणामों के बारे में आपकी राय क्या है.. क्या यह स्थिति और गंभीर होनेवाली है..?
जवाब -
आज 30, 32, 34, 36 उम्र के मेरे पास कम से कम 200 से 250 बायोडेटा हैं. इनके अगले तीन-चार वर्षों में रिश्ते नहीं हुए तो इनकी शादियां नहीं होंगी. सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि अच्छे-अच्छे परिवारों पे फुलस्टॉप लग जाएगा. उनका नाम लेनेवाला कोई नहीं बचेगा, उनके संपत्ति का रखवाला कोई नहीं बचेगा. लड़के-लड़कियां अकेले रह जाएंगे.आज उम्र उनके साथ है, उनके मां-बाप उनके साथ हैं, इसके लिए उनको लगता हैं, वो हवा में है. लेकिन जैसे-जैसे उनके मां-बाप निकलने शुरू हो जाएंगे, उनकी उम्र ढलने लग जाएगी, तो वो अकेले रह जाएंगे. तब एक बहुत बड़ा फ्रस्ट्रेशन आएगा, अंधकार दिखेगा. हो सकता है वो आत्महत्या के लिए प्रवृत्त हों, पागल हो, मति कुंठित हो, वो अबोल हो जाए, और ये सारा इस समाज पे एक बोझ होगा. उसका निचोड समझते हुए मैंने कुछ पॉइंट्स निकाले हैं.

सवाल - आजकल लोग शादी के बारे में काफी चिंतित भी रहते हैं. उन्हें कॉम्प्रोमाइज करना पसंद नहीं होता, क्या इसके कारण शादियां नहीं हो रहीं..?
जवाब -
वैसे भी कोई भी शादी, एक कॉम्प्रोमाइज ही होता है. दो अलग-अलग परिवार, क्षेत्र, देखरेख, आचार, विचार, संस्कार, आहार भी. कई बार हर चीज का कॉम्प्रोमाइज होता है. जिसने कर लिया वो तर गया, जिसने नहीं किया वो मर गया. फिलहाल, अब लोग जो हैं, फास्ट फूड के जमाने में आ गए. वे उतावले हैं, लोगों को वेिशास नहीं आता. बड़े लोगों की सुनने के लिए कोई तैयार नहीं है. समाज की जो एक धाक थी. वो कम हो चुकी है. पहले घर का बड़ा जो था वो रिश्ता कराता था. संयुक्त परिवार होता था. रिश्ते हो जाते थे, निभ जाते थे. लेकिन अब यह संभव नहीं है. इस वक्त जो मेरे सामने-आसपास जो घटा, जो देखा कि क्यों रिश्ते नहीं हो रहे हैं, उसके कुछ मैंने पॉइंट्स निकाले हैं.

सवाल - आपको ऐसे कौन-कौन से मुद्दे लगते हैं, जिस पर समाज को गंभीरता से सोचना चाहिए..?
जवाब -
मैं देख रहा हूं कि लड़के-लड़कियों से ज्यादा उनके बाप या मां कई बार ऐसे ढूंढ रहे हैं जैसे उनको खुद शादी करनी है. वह अपनी संपत्ति का, व्यापार का ब्योंरा देते हैं. जो लड़के- लड़कियां जिनकी अपब्रिंगिंग एक अलग तरीके से हुई है, उन्होंने अपने जीवन साथी के बारे में क्या सोच रखा है, इसके बारे में वो बाप या दादा उनसे बात ही नहीं कर रहे हैं. अग्रवाल समाज में, मैं जरा स्पष्ट बात करूंगा, हमारे समाज में आंकड़े चलते हैं कि कितने का संबंध है. यह कौन तय करता है कि यह घर कितने का है..? उदाहरण के तौर पर अगर मेरा घर 5 करोड़ का है तो मैं 10 करोड़ का रिश्ता देखता हूं. और इस कारण रिश्ते जुड़ते ही नहीं हैं. यह सबसे पहला मुख्य कारण हैं. मैंने यह भी देखा है, रिश्ते हुए, लेकिन वह शादी तक नहीं पहुंचे, क्योंकि इसके बीच में हमारे मोबाइल्स आ गए. कभी लड़का अवेलेबल नहीं, कभी लड़की अवेलेबल नहीं, फिर उसका इगो बन गया. तुमने मेरा फोन अटेंड नहीं किया, तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया, तुमने मेरे Whats app का जवाब नहीं दिया, SMS का जवाब नहीं दिया, और ऐसे इगो बनने से शादियां टूटती हैं. फिर बोले, हमको कंफर्ट नहीं है, वी आर आउट ऑफ कंफर्ट जोन. अरे भाई, हम लोगों ने तो 10-20 मिनट बात करके शादी कर ली, आज शादी को 40-42 साल हो गए, तो क्या बातें करनी हैं..? और बातें शादी के बाद भी तो हो सकती हैं, पहले ही क्यों बातें करनी हैं सारी..? अज्ञान में सुख है. आराम से, धीरे-धीरे समझ लो. हर चीज में, संबंधों में भी, कई चीजें ना मालूम हों, या धीरे-धीरे मालूम हों तो ज्यादा अच्छा. क्योंकि वक्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाता है.यहां कोई कंप्लीट मैन नहीं है. किसी-ना-किसी में या हर एक में कोई-ना-कोई कमी है ही. और हम कमियों के साथ हर एक को स्वीकारते हैं. और वह जो स्वीकारना है, वही पॉजिटिव एटीट्यूड है. लेकिन, छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनता है तो कंफर्ट जोन नहीं मिल रहा और रिश्ते टूट रहे हैं.

सवाल क्या शादियों में आज भी पत्रिका का मुद्दा उतना ही जरुरी माना जाता है..?
जवाब -
लोग पत्रिका का सहारा लेते हैं. मैं किसी की भावनाओं के खिलाफ नहीं हूं. लेकिन मेरा मानना है कि 28 की उम्र के बाद पत्रिका मत मिलाइए, क्योंकि उसके बाद विवाह होने वाले ही नहीं हैं. आपको इतने कॉम्प्रोमाइज करने पड़ेंगे, जिसकी कोई हद नहीं. आप इतने पैरामीटर लगा रहे हो, गोत्र, एजुकेशन, हाइट, डील- डौल, कलर, पैसा, शहर या गांव, व्यवस्था, बोली-भाषी वगैरा वगैरा. आप इतने सारे पैरामीटर लगाते हो और उसके ऊपर पत्रिका भी डालते हो. कहां से मिलेंगे लड़के-लड़कियां, आएंगे कहां से..? फिर लोग दूसरे समाजों में जा रहे हैं और अपने समाज के बाहर शादी कर रहे हैं. उसमें भी बुराई नहीं है, मैं उसके विरुद्ध नहीं हूं, लेकिन वो भी समय रहते कर लीजिए.

 सवाल - शादी देरी से होने के अन्य भी नुकसान हैं. क्या आप इसके बारे में भी लोगों से बात करते हैं..?
जवाब -
मैं उनसे कहता हूं कि आज आप 32, 34, 35, 36, 38 के हो रहे हो और आपकी शादियां नहीं हो रही हैं. आपकी फर्टिलिटी पर सवाल आने वाला है. आपको बच्चे नहीं होंगे. विवाह संस्था में से आपका रस निकल जाएगा. धीरे-धीरे एक वायरस हमारे बच्चों में भी छोड़ दिया गया है : क्यों बच्चे पैदा करने हैं..? आप कुत्ता बिल्ली पालिये. लेकिन एक बात बताना चाहता हूं, जब आप वृद्ध हो जाएंगे, जब आप अकेले रह जाएंगे, आपके आसपास परिवार नहीं होंगे, तब आपको फ्रस्ट्रेशन आएगा. बच्चे होना यह आपके परिवार की और एक आपके परिवार को एक स्वास्थ्य और स्वर्ग मिलना इसकी एक निशानी है. इसके लिए विवाह समय पर होना भी जरूरी है क्योंकि हर शरीर की एक रिक्वायरमेंट होती है, एक ग्रोथ होती है, उसके अनुसार ही तुमको काम करने पड़ते हैं.

सवाल - शादियां और आंकडों का क्या संबंध है.. क्या इसकी वजह से शादियां टूटती हैं.. आपका अनुभव क्या है..?
जवाब -
यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है. अगर मेरी लड़की है और मुझे शादी में 5 करोड लगाने हैं, तो मैं 10 करोड का संबंध देखता हूं. जो 10 करोड वाला है उसकी नजर 15 करोड पे है. शादी हो भी गयी तो भी उनके हिसाब से यह कॉम्प्रोमाइज है. उनको तो 15 चाहिए था. ना बच्ची वहां पे सेट होती है, ना उनका ध्यान रहता है. और फिर भी मां-बाप भी बोल देते हैं कि 'नहीं जमे तो वापस आ जाना'. वो वापस आ जाती है. फिर डायवोर्स हो जाता है. अरे, जब पहली शादी ही मुश्किल से होती है तो डायवोर्सी की कहां से होगी..? उसके बाद भी शादी की बात होगी तो हर छोटी-छोटी चीज देखी जाएगी, पूछी जाएगी कि डायवोर्स क्यों हुआ? डायवोर्स होने का कारण लड़का और लड़की, इसके अलावा केवल ब्रह्मा जी को पता होता है. डायवोर्स ये सबसे बड़ा जहर है. डायवोर्स होने के बाद उनसे जुड़े हुए अनेक परिवार बिखर जाते हैं. ऐसे करोड़पति भी हैं लेकिन अब आगे रिश्ते नहीं हो रहे.


सवाल लड़कियों का ससुराल के बिजनेस में ध्यान देना, या शादी के बाद जॉब करना, ये कितने बड़े मुद्दे होते हैं..?
जवाब -
लड़कियां खूब पढ़ने लगीं, खूब कमाने लग गई. उस लड़की के लिए जब लड़का देखते हैं तो बोले, हमें तो इंडस्ट्रियलिस्ट चाहिए, बिजनेसमैन चाहिए. लेकिन शादी के बाद वो जॉब करेगी. अब बिजनेसमैन इंडस्ट्रियलिस्ट कहता है, मेरी बहू जॉब क्यों करेगी..? जब मेरे पास ही इतना बिजनेस है या इतनी इंडस्ट्री चल रही है तो वो देखे, वो भी जशरत हो तो देखे, नहीं तो घर संभाले. हमें क्यों जशरत है..? दूसरी एक बात कि लड़कियां कहती हैं कि मैं शादी के बाद नौकरी क्यों करूं..? शादी के बाद घर में सास-ससुर हैं, ननंद है और कोई देवर है, तो उनको लगता है उस घर में मैं जाती हूं तो मैं नौकरी कर रही हूं. जबकि तुम तो परिवार का घटक बन रही हो. और इसके लिए वो अब चाहती हैं कि मेरा पति और मैं हम अलग रहेंगे. और वो हो नहीं पा रहा है. उस कारण भी शादियां नहीं हो रही हैं.

सवाल आपने एज्यूकेशन और नौकरी की बात की. आजकल पैकेज की भी चर्चा होती है, इसका शादियों पर कितना प्रभाव है..?
जवाब -
अगर लड़की को 20 लाख का पैकेज है, तो लड़की का बाप लड़का ढूंढते समय यह देखता है कि 20 लाख से ज्यादा का पैकेज हो. अब ज्यादा का पैकेज होगा तो उम्र में ज्यादा तफावत आएगी. जरूरी नहीं कि वो उतना ही कमाता हो. उसका शायद 15 लाख रुपए का पैकेज हो. तो बोलेंगे, नहीं- नहीं, वो पैकेज कम है मेरी लड़की से. अरे भाई, अगर तुम लड़का और लड़की दोनों की शादी कर दो, अगर लड़की को 20 मिल रहे हैं, लड़के को 15 मिल रहे हैं, तो दोनों की मिलके 35 हो गए ना भाई..! और क्या चाहिए तुमको..? कहां इनफिरियरिटी कॉम्प्लेक्स, सुपीरियरिटी कॉम्प्लेक्स देख रहे हो तुम..? क्योंकि ऐसे ढूंढते रहोगे तो ढूंढते ही रह जाओगे. कहीं न कहीं कॉम्प्रोमाइज करना जरूरी है तब कहीं रिश्ते बनते हैं और निभते हैं.

सवाल यह समस्या सिर्फ महानगरों की नहीं, बल्कि छोटे शहरों में भी हैं. वहां क्या परिस्थिति है..?
जवाब -
टू टायर, थ्री टायर सिटीज, जो छोटे शहर हैं, उन सबको अपनी लड़कियां बड़े शहरों में देनी हैं. लेकिन उसी समय बड़े शहरों से उन छोटे शहरों में लड़कियां आने को तैयार नहीं है. मैं तो कहता हूं कि भाई, तुम लोग एक बहुत अच्छी लाइफ जी रहे हो, टू टायर, थ्री टायर सिटीज में. अब तो सारी चीजें तुम्हारे अपने छोटे शहर में भी अवेलेबल हैं. हालांकि शहरों और मेट्रो में कॉम्प्रोमाइजिंग लाईफ है. आप छोटे शहरों में रिश्ते करिए. वो निभ जाएंगे और बन भी जाएंगे और चल भी जाएंगे. लेकिन, सबको मेट्रो में ही आना है. इन चीजों से निकलिए. इसमें कुछ भी नहीं रखा है.


सवाल आपने जिक्र किया था कि आप लोगों को 25-25 या 30-30 बायोडाटा भेज रहे हैं. लेकिन शादियां नहीं हो रही. क्या ज्यादा बायोडाटा देखने की वजह से, लड़काल डकी या उनके मां-बाप कन्फ्यूज होते हैं..?
जवाब -
मैं कई बायोडेटा भेजता हूं, तो कई मां-बाप बोलते हैं कि बच्चे कन्फ्यूज हैं. अरे भाई, कन्फ्यूज तो तुमने किया है. तुमने उनको जब बड़ा किया तभी उनको इस बारे में क्लैरिटी क्यों नहीं दी..? तुम जो घर के बड़े हो उनके कारण बच्चे ज्यादा कन्फ्यूज होते है. या उनके आसपास जो दोस्त हैं, वो उन्हें कन्फ्यूज कर रहे हैं, या वो कोई भ्रांतियां पाले हुए हैं, या बहुत ज्यादा टीवी और सिनेमा देखते होंगे, जहां की सारी जो कल्पना जो दुनिया है वो काल्पनिक है, उसमें उलझे हुए हैं. इन भ्रांतियों से उन्हें बाहर निकलना होगा.

सवाल - एक ओर आप कह रहे हैं कि बड़ी संख्या में बायोडाटा भेजने के बावजूद शादियां नहीं हो रहीं और दूसरी ओर लोगों के पैरामीटर भी कम नहीं हो रहे. क्या इस विषय के बारे में आप लोगों से बात करते हैं..? उनका क्या कहना होता है..?
जवाब -
एक मेरे पास मित्र आए, उनका लड़का डिवोर्सी था. तो मैंने उसको एक रिश्ता बताया कि, यह डिवोर्सी लड़की है. उन्होंने कहा, हां, जम गया है सब. मेरे को जमता है, हम आगे बढ़ेंगे, लेकिन मैं पत्रिका मिलाऊंगा. मैं बोला, क्यों..? जब पहली बार शादी करी थी तो पत्रिका नहीं मिलाई थी क्या..? और पत्रिका मिलाई थी फिर डिवोर्स क्यों हुआ..? मैं कहता हूं कि यह सारे भुलावे में डालने के खेल हैं. आप अपनी बात पत्रिका पे डाल रहे हो. इससे जुड़ा मेरा और एक सवाल है: आप पत्रिका मैच नहीं होती, ऐसा करते हुए अच्छे- अच्छे रिश्ते छोड़ रहे हो. एक ओर पत्रिका मिल जाएगी लेकिन आपके मन मुताबिक लड़का या लड़की नहीं होगा, तब भी शादी कर लोगे क्या..? ऐसा नहीं चलता मेरे भाई..

सवाल लोग लिव इन रिलेशनशिप के बारे में भी बातें करते हैं.. वे क्या सोचते हैं.. क्या इसी कारण से भी शादियां नहीं हो पातीं..?
जवाब -
हर एक उम्र की एक रिक्वायरमेंट होती है. फर्टिलिटी, इन्फर्टिलिटी भी आती है. आपकी जो जनन प्रजनन क्षमता जो है, उसकी भी एक रिक्वायरमेंट होती है. और जब वह निकल जाती है, तब बच्चे नहीं होते. एक सर्वे किया गया जिसमें यह ध्यान में आया कि केवल 5% दादाओं को उनके पोतों की शादी देखने को मिलेगी, जो पहले 90% था. दिन-ब-दिन यह परसेंटेज रोज नीचे आ रहा है. जिंदगी तो उसके बिना भी है. लेकिन जिन्होंने भरे-पूरे परिवार एन्जॉय करते हुए देखे हैं, वो आगे-आगे देखने को नहीं मिलेंगे.

सवाल - लोगों से जब आप बात करते हैं.. तो उनकी रिएक्शन क्या होती है..?
जवाब -
अकेले में सारे लोग आकर रोते हैं, करवा दे यार, रिश्ता करवा दे यार, मैं कॉम्प्रोमाइज कर लूंगा. पर जैसे ही कोई रिश्ता बताता हूं, वह तन जाते हैं. सब दुखी हैं, बोलता कोई नहीं है. उनको केवल पैसा दिख रहा है. वह मुगालते में हैं.

सवाल इस परिस्थिति में उनके पास क्या विकल्प हैं..?
जवाब -
अभी भी जिनके बच्चे 28, 29, 30 उम्र के हैं, उनके पास बहुत ज्यादा ऑप्शन अवेलेबल नहीं हैं. आप रिश्ते करिए और काम आगे बढ़ाइए. नहीं तो आने वाला टाइम अंधकार वाला है. जिनके बच्चे 18-20 साल के हैं, वह पहले से ही उनको इसकी शिक्षा दे दें कि मैं तेरी शादी 23 या 24 में कर दूंगा या कर दूंगी.ये नहीं होता तो मुझे केवल फ्रस्ट्रेशन, अकेलापन दिखता है. आपकी आवाज को आवाज देने वाला एक साथी होना ही चाहिए, जो आपके हर सुख-दुख में, हर बीमारी में, हर चीज में आपके साथ में खड़ा रहे, ऐसा एक साथी तो होना जरूरी है.

सवाल शादी ना जुड़ने में लड़की या लड़के की मां की क्या भूमिका होती है..?
जवाब -
बहुत बड़ा इंटरफेरेंस है इन दिनों. पहले क्या होता था कि शादियां हो जाती थीं. अजनबी घरों में लड़की को अगर कुछ तकलीफ भी है तो अपनी मां को चिट्ठी लिखती थी. वह चिट्ठी पहुंचने में 10-15 दिन लगते थे. और जब तक वह जवाब भेजे, तब तक यह प्रॉब्लम खत्म हो जाती थी. अब मोबाइल्स होने से, थोड़ीसी प्रॉब्लम हो गई तो बेटी अपनी मां को फोन करती है. मां, कहती है अच्छा, घर वापस आ जा. मैं देख लूंगी.पहले मां कहती थी, तू डोली में जा रही है, अर्थी में ही आएगी.. अब तो जाते टाइम ही बोल देते हैं, नहीं जमे तो वापस आ जाना.. तो, तुम शिक्षा क्या दे रहे हो..? तुम प्यार करने की सीख ही नहीं दे रहे हो. जब उसको कोई तकलीफ हो, तब जाकर खड़े हो जाओ. पर हर चीज में..? लेट हर फाइट. कहने का मतलब बात छोटी- छोटी है, लेकिन हर छोटी-छोटी बात का इतना बड़ा बतंगड़ बन जाता है और उसके कारण रिश्ते नहीं निभते. क्योंकि जिस लड़के के घर में शादी करके लड़की गई है, उनका भी इगो है, उनका भी एक स्टैंडिंग है, वह रोज का इंटरफेरेंस सहन नहीं करेंगे. उसके कारण तकलीफें होती हैं.

सवाल इस सब में लड़के या लड़कियों का क्या कहना होता है..? वे किस प्रकार से सोचते हैं..?
जवाब -
हर एक अपने तरीके से सोचता है. वह कहीं कॉम्प्रोमाइज करने को तैयार ही नहीं है. उनको मुगालता है, एजुकेशन का, पैसे का, दिखावे का, शहर का. अब लड़कियां लड़कों को रिजेक्ट कर रही हैं. इन्हीं सारे अनुभवों के साथ मैं सभी से कहता हूं कि, छोटी छोटी बातों पर रिश्ते ना तोडिये, आठ अरब की भीड़ में