गुरजिएफ के एक शिष्य ‘बैनेट’ ने एक अनूठा संस्मरण लिखा है. बैनेट गुरजिएफ का सबसे लंबे समय तक शिष्य रहा. पश्चिम से जाे सबसे पहले गुरजिएफ के पास पहुंचा वाे बैनेट था. और अन्त तक जाे गुरजिएफ के साथ लगा रहा वाे भी बैनेट था. काेई पैंतालीस साल का संबन्ध था.बैनेट ने लिखा है कि गुरजिएफ के साथ काम करते हुए, एक दिन गुरजिएफ ने उसे कहा था वाे गडढे खाेदता रहे, ताे दिनभर गडढे खाेदता रहा. वाे इतना थक गया था...! वाे गुरजिएफ की एक प्रक्रिया थी ः थका देना, इतना थका देना, कि हाथ हिलाने की भी स्थिति न रह जाये. क्याेंकि गुरजिएफ कहता था कि जब तुम इतने थक जाते हाे कि हाथ हिलाने की भी स्थिति नहीं रह जाती तभी तुम्हारा परम शक्ति से संबंध जुड़ता है. जब तक तुममें शक्ति हाेती है तब तक परम शक्ति तुममे प्रवाहित नहीं हाेती. ताे उसे थका दिया था. वाे दिनभर से थक गया था. तीन रात से साेया भी न था. वाे गिरा-गिरा हाे रहा था. खाेद रहा था, लेकिन अब उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अगली बार कुदाली उठा सकेगा कि नहीं. कुदाली उठाये-उठाये झपकी खा रहा था.
तब गुरजिएफ आया और उसने कहा कि यह क्या कर रहे हाे? इतने जल्दी नहीं, अभी ताे जंगल जाना है और कुछ लकड़िया काटके लानी हैंताे गुरजिएफ की शर्ताें में एक शर्त थी कि वाे जाे कहे, करना ही हाेगा क्याेंकि उसी माध्यम से वाे साेयी हुई चेतना काे जगा सकता है. ताे बैनेट की बिलकुल इच्छा नहीं थी.जाने का ताे सवाल ही नहीं था. जंगल अपने कमरे तक कैसे लाैटेगा- यह चिन्ता थी. कहीं बीच में गिरके साे ताे नहीं जायेगा. लेकिन जब गुरजिएफ ने कहा ताे गया. जंगल गया, लकड़ियां काटीं. जब वाे लकड़ियां काट रहा था, तब अचानक घटना घटी. अचानक उसे लगा सारी सुस्ती खाे गयी और एक बड़ी ऊर्जा का जैसे बांध टूट गया! यहां बिलकुल खाली हाे गया था शक्ति से; जगह, स्थान निर्मित हाे गया था. भीतर जहां ऊर्जा भरी है, वहां से टूट पड़ी.वहीं गडढे की तरफ . गडढा बन गया था थकान के कारण.
ऊर्जा बही और सारा शरीर, राेआं-राेआं ऐसी शक्ति से भर गया जैसा कभी न हुआ था. उसने कभी ऐसी शक्ति जानी ही न थी. उस क्षण उसे लगा, इस समय मैं जाे चाहूं वाे हाे सकता है. इतनी शक्ति थी! ताे उसने साेचा, क्या चाहूं? जिन्दगीभर साेचा था आनन्द... ताे उसने कहा, मैं आनन्दित हाेना चाहता हूं. ऐसा भाव करना था कि वाे एकदम आनन्दित हाे गया. उसे भराेसा ही न आया कि आदमी के बस में है क्या आनन्दित हाेना! चाहते ताे सभी हैं-हाेता काैन है! उसने साेचा कि आनन्दित हाे जाऊं.... यह ताे र्सिफ खेल कर रहा था शक्ति काे देखकर. इतनी शक्ति नाच रही थी. चाराें तरफ, राेआं-राेआं ऐसा भरा-पूरा था कि उसकाे लगा इस क्षण में ताे अगर मैं जाे भी चाहूंगा हाे जायेगा ताे क्या चाहूं! ‘आनन्दित’! ऐसा साेचना था, यह शब्द का उठना था-आनन्द-कि उसकी पुलक-पुलक नाच उठी.
उसे बस भराेसा न आया. उसने कहा काेई धाेखा ताे नहीं खा रहा हूं, काेई सपना ताे नहीं देख रहा हूं, काेई मजाक ताे नहीं की जा रही है मेरे साथ. ताे उसने साेचा कि उलटा करके देख लूं ः दुखी हाे जाऊ! ऐसा साेचना था कि ‘दुखी हाे जाऊं’ कि एकदम गिर पड़ा! चाराें तरफ जैसे अंधेरा छा गया! जैसे अचानक सूरज डूब गया! जैसे सब तरफ दुखी-ही-दुख और दुख की तरंगें उठने लगीं! वाे घबराया कि यह ताे मैं नरक में गिरने लगा. यह हाे क्या रहा है! उसने कहा, मैं शांत हाे जाऊं, वाे तत्क्षण शांत हाे गया.उसने सब मनाेभाव उठाके देखे. ताे एक-एक पर प्रयाेग करके देखा-क्राेध, घृणा, प्रेम-और जाे भाव उसने उठाया वही भाव परिपूर्ण रूप से प्रगट हुआ.वाे भागा हुआ आया.
उसने गुरजिएफ काे कहा कि चकित हाे गया हूं. उसने कहा, अब चकित हाेने की जरूरत नहीं चुपचाप साे जा! अब जाे हुआ है इसे चुपचाप संभाल के रख और याद रखना, कभी भूलना मत कि अगर आदमी ठीक स्थिति में हाे ताे जाे चाहता है, वही हाे जाता है.गैर-ठीक स्थिति में तुम चाहते रहाे, चाहते रहाे, कुछ भी नहीं हाेता. ठीक स्थिति में जब भीतर के तार मिलते हैं ताे साधन और साध्य की दूरी खाे जाती है. इसकाे ही हिन्दुओं ने कल्पवृक्ष की अवस्था कहा है.कल्पवृक्ष स्वर्ग में लगा काेई वृक्ष नहीं है. कल्पवृक्ष तुम्हारे भीतर की एक चैतन्य अवस्था है. बैनेट के उल्लेख से तुम समझ सकते हाे कल्पवृक्ष, क्या अर्थ हाेगा. कल्पवृक्ष का अर्थ हाेगा कि जहां साधन और साध्य का ासला न रहा जहां दाेनाें के बीच काेई दूरी न रही.