इस बार भाजपा ने फिर नवीन प्रयाेग किया

    23-Dec-2025
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दिल्ली में दिसंबर की सर्दियाें की सुबह काेहरे की चादर में लिपटी रहती है. कई बार ताे इतनी धुंध रहती है कि करीब से भी तस्वीर साफ नहीं दिखती. इसका अर्थ यह नहीं कि तस्वीर उजली और बेहतर न हाे; भराेसा इतना मजबूत नहीं हाेता. फिर जैसे-जैसे दिन चढ़ने लगता है, बहुत सी चीजें साफ हाेने लगती हैं और आपकाे नजारे साफ-साफ नजर आने लगते हैं.एक लंबे इंतजार के बाद जब अचानक दुनिया में सबसे बड़े राजनीतिक दल हाेने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी अपने नए कार्यकारी अध्यक्ष का ऐलान करती है, ताे उस दिन भी राजनीतिक कुहासा गहरा रहता है. ऐसे अचानक कभी हुआ नहीं, पहले कभी हाेता नहीं था, फिर लंबे व्नत से इंतजार हाे रहा था, चर्चाएं चल रही थीं, हर काेई अपने दिमाग के घाेड़े दाैड़ा रहा था.
 
कुछ बड़े विद्वानाें काे हमेशा की तरह यह चयन पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच उलझे समीकरणाें में फंसा हुआ दिख रहा था.ऐसे परिदृश्य में संगठन के लिए कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष के ऐलान की विज्ञप्ति जारी हाेती है राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह के दस्तखत के साथ. उसके साथ ही प्रधानमंत्री और पार्टी के सर्वाेच्च नेता नरेंद्र माेदी तीन देशाें की विदेश यात्रा पर रवाना हाे जाते हैं.मुझे याद नहीं पड़ता कि पार्टी के सर्वाेच्च पद का ऐलान पहले कभी ऐसे हुआ हाे, आमताैर पर नए अध्यक्ष का ऐलान पुराने अध्यक्ष अपने साथ नए नेता काे बुलाकर करते रहे हैं. फिर नाम भी राष्ट्रीय राजनीति के नजरिये से बिल्कुल नया-नितिन नवीन. बिहार सरकार में मंत्री. राष्ट्रीय या प्रदेश स्तर पर उन्हाेंने संगठन में काेई बड़ी जिम्मेदारी नहीं निभाई है. खैर, इन सब बाताें का मतलब नितिन नवीन की याेग्यता पर सवाल उठाना नहीं है.
 
उन्हें ताे अब अपनी याेग्यता साबित करनी है और उन लाेगाें काे मजबूती से जवाब देना है, जाे इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं. कुछ लाेगाें का कहना है कि नए अध्यक्ष का पहला इम्तिहान ताे कुछ महीनाें में हाेने वाले पांच राज्याें के विधानसभा चुनाव में ही हाे जाएगा, लेकिन यह उनके साथ ज्यादती हाेगी. इतनी जल्दी उनके इम्तिहान की जरूरत नहीं है. काेहरे से भरे दिन काे खुलने दीजिए, थाेड़ी धूप निकलने दीजिए.भारतीय जनता पार्टी में इसे पीढ़ीगत बदलाव कहा जा रहा है. 45 साल के नवीन बाबू पार्टी के साथ ही बड़े हुए हैं, यानी 1980 में जन्मी बीजेपी की उम्र के अध्यक्ष. कुछ लेाग इस पर ऐतराज कर सकते हैं कि उन्हें ‘कार्यकारी अध्यक्ष’ की जिम्मेदारी ही मिली है अभी, लेकिन मुझे वह अगले पूर्णकालिक अध्यक्ष लगते हैं, सिर्फ चुनावी औपचारिकता पूरी हाेने की देर है.
 
यह पीढ़ीगत बदलाव और दिल्ली की चकाचाैंध वाली राजनीति में बिहार से किसी आम कार्यकर्ता के रूप में आगे बढ़े नेता काे जिम्मेदारी देने का एक साहसिक फैसला माना जा सकता है, जाे हिम्मत दूसरी पार्टियां नहीं दिखा पातीं. क्षेत्रीय राजनीतिक दलाें में ताे सिर्फ परिवार ही नेतृत्व है, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी पार्टियाें ने भी ऐसी काेई पहल नहीं की, जबकि देश में करीब 21 कराेड़ नाैजवान वाेटर हैं.भाजपा में पीढ़ीगत बदलाव की हवा पिछले दिनाें राज्याें में बनाए गए मुख्यमंत्रियाें से भी महसूस हाेती है. उत्तर प्रदेश में याेगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी, गाेवा में प्रमाेद सावंत, असम में हिमंता बिस्वा सरमा, राजस्थान में भजन लाल शर्मा, मध्यप्रदेश में माेहन यादव, दिल्ली में रेखा गुप्ता जैसे नाम इस लिहाज से गिनाए जा सकते हैं. इसलिए नितिन नवीन की काबिलियत पर सवाल खड़े करना बेमानी-सा है.
 
हाे सकता है कि वह पार्टी काे किसी दूसरे स्तर पर ले जाएं, जैसे अमित शाह के कार्यकाल में भाजपा न केवल दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई, बल्कि अपने दम पर वह लाेकसभा में 303 सांसदाें वाली पार्टी भी बन गई. सन 1984 में दाे सांसदाें से साल 2019 में 303 सांसदाें की ताकत.बहरहाल, कुछ लाेग दावा कर रहे हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा पिछले छह महीने से 20 युवाओं पर काम कर रही थी, उसमें से पांच काे ‘शाॅर्टलिस्ट’ किया गया था और फिर नवीन बाबू के नमा पर मुहर लगी, क्योंकि उन्हाेंने छत्तीसगढ़ चुनाव में अच्छा काम किया था.कुछ कयासबाजाें के मुताबिक, नवीन का चयन उन लाेगाें काे करारा जवाब है, जाे बिहार में बीजेपी का काेई बड़ा नेता न हाेने की बात करते रहे हैं. इस दलील काे मानने में काेई हर्ज नहीं, लेकिन ऐसा ही था.
 
ताे फिर सरसंघचालक माेहन भागवत ने क्यों कहा कि हमें अध्यक्ष तय करना हाेता, ताे इतना समय लगता ्नया?
अगर नवीन बाबू का चयन हाे ही गया था, ताे महीने भर पहले उन्हें बिहार में मंत्री क्यों बनाया गया, कम से कम उप-मुख्यमंत्री बनाए जाते? आशंकावीर यह तक संदेह जता रहे कि पीढ़ीगत बदलाव के बहाने ्नया माैजूदा नेतृत्व अपने समकालीन ताकतवर नेताओं काे मार्गदर्शक मंडल में धकेलने की काेशिश ताे नहीं कर रहा, ताकि किसी चुनाैती का संकट नहीं रहे? वैसे भी, लाेकतंत्र का मायने चुनाव हाेता है, चयन नहीं. यह प्रक्रिया अब दूसरी पार्टियाें की तरह बीजेपी में भी लगभग बंद हाे गई है. अब सामूहिक नेतृत्व की बात दिखावे के लिए भी नहीं हाेती. एक ही ब्रह्म है. एक नेता, एक आदेश. संसदीय बाेर्ड की बैठकाें और संसदीय दल व विधायक दलाें की बैठकाें में नेता के चुनाव की औपचारिकता काे खत्म कर दिया गया है. पार्टी के पर्यवेक्षक बैठक में पर्ची खाेलकर आलाकमान के फरमान काे सुनाते हैं. कई बार ताे शायद पर्ची खाेलने वाले काे भी उसके भीतर लिखे नाम का पता नहीं हाेता. -विजय त्रिवेदी