बैंकों का निजीकरण आर्थिक विकास के लिए घातक

महाबैंक कर्मियों के नौवें अधिवेशन के उद्घाटन कार्यक्रम में एआईबीईए के महासचिव कॉ. सी. एच. वेंकटचलम ने कहा

    29-Dec-2025
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शिवाजीनगर, 28 दिसंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)

 देश के आर्थिक विकास में बैंकिंग क्षेत्र का योगदान बहुत बड़ा है. सरकारी बैंकों में आम जनता का पैसा सुरक्षित है. हालांकि, केंद्र सरकार विदेशी पूंजीपतियों के लिए रास्ते खोलकर बैंकों के निजीकरण की नीति लागू करना चाहती है. ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉयज एसोसिएशन के महासचिव कॉमरेड सी. एच. वेंकटचलम ने विचार व्यक्त किया कि यह कदम आर्थिक विकास के लिए घातक है और हमें निजीकरण के खिलाफ लड़ाई को तेज करना होगा. ‌‘एआईबीईए' से संबद्ध ऑल इंडिया बैंक ऑफ महाराष्ट्र एम्प्लॉयज फेडरेशन के दो दिवसीय नौवें अखिल भारतीय अधिवेशन का उद्घाटन शनिवार (27 दिसंबर) को हुआ. बीएमसीसी रोड स्थित दादासाहेब दरोड़े सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार और मनीलाइफ फाउंडेशन की संस्थापिका पद्मश्री सुचेता दलाल को कॉमरेड सुरेश धोपेेशरकर स्मृति पुरस्कार प्रदान किया गया. इस अवसर पर बैंक ऑफ महाराष्ट्र के निधु सक्सेना, बैंक ऑफ इंडिया के वी. सी. जोशी, बैंक ऑफ महाराष्ट्र के कॉ. कृष्णा बरूरकर, एआईबीईएफ के उपाध्यक्ष कॉ. एन. शंकर, संयुक्त महासचिव कॉ. ललिता जोशी और संयोजक शैलेश टिलेकर सहित अन्य गणमान्य उपस्थित थे. इस अधिवेशन में देशभर से 600 से अधिक बैंक कर्मचारी शामिल हुए. पुरस्कार स्वीकार करते हुए सुचेता दलाल ने कहा कि कॉमरेड सुरेश धोपेेशरकर के नाम पर पुरस्कार मिलना गर्व की बात है. ग्राहकों के मुद्दों पर संगठित होकर आवाज उठाने से नीतिगत बदलाव संभव होते हैं, यह 2017 में बैंक सेवा शुल्क वृद्धि के खिलाफ हुए ट्वीट मोर्चे से सिद्ध हो चुका है. सोशल मीडिया के दबाव के कारण ही रिजर्व बैंक ने सेवा शुल्क वृद्धि पर नियंत्रण लगाया. निधु सक्सेना, वी. सी. जोशी, कृष्णा बरूरकर, ललिता जोशी और एन. शंकर ने भी अपने विचार व्यक्त किए. प्रास्ताविक भाषण में देविदास तुलजापुरकर ने कर्मचारियों की मांगों और बैंकों के निजीकरण के संबंध में संगठन की भूमिका स्पष्ट की. चंद्रेश पटेल ने स्वागत भाषण दिया, श्रुतिका मोहोड ने संचालन किया और स्वयं प्रकाश तिवारी ने आभार व्यक्त किया.  
 
ग्राहकों के हितों की रक्षा करना जरूरी

कॉ. सी. एच. वेंकटचलम ने कहा केंद्र सरकार को सार्वजनिक बैंकों और आम ग्राहकों के हितों की रक्षा करने वाली नीति लानी चाहिए. ग्रामीण इलाकों तक जाल बिछाने वाले सरकारी बैंकों को निजीकरण से बचाना है. इसके साथ ही बेहतर ग्राहक सेवा के लिए बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की भर्ती, आर्थिक नीति, श्रम कानून और अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) प्रणाली के खिलाफ हमें संघर्ष करना है.