विपक्ष कितना भी प्रदर्शन करे, सरकार अपना काम करती रहेगी

    30-Dec-2025
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प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी ने भारतीय संसद की बजाय इथियाेपियाई संसद काे चुना, विपक्ष के नेता राहुल गांधी म्यूनिख में एक फैंसी
बाइक चलाते हुए देखे गए, जबकि उन्हें लाेकसभा में बने रहकर राष्ट्र काे दरपेश अनेकानेक महत्वपूर्ण मुद्दाें पर बहस करनी चाहिए थी, वहीं विदेश मंत्री एस. जयशंकर राज्यसभा की बजाय इजरायल में थे.गत सप्ताह, शीतकालीन सत्र में सदन से तीन प्रमुख नेताओं के नदारद रहने पर, आप हैरान हाेंगे : क्या यह संसद की प्रासंगिकता का प्रश्न नहीं है? यह एक अल्पकालीन सत्र था, हालिया इतिहास के सबसे छाेटे सत्राें में से एक. लेकिन इसमें लाए गए महत्वपूर्ण कानूनाें की काेई कमी नहीं थी, इनमें सबसे अहम है, प्रति परिवार, प्रतिवर्ष 125 दिनाें के काम के लिए मजदूरी से संबंधित ‘जी-राम-जी कानून’, जिसकाे सत्र समाप्त हाेने से एक दिन पहले पारित किया गया.
चूंकि सत्तापक्ष के पास हमेशा से संख्या बल रहा है, इसलिए इसमें काेई संदेह नहीं था कि ‘जी-राम-जी’ मनरेगा की जगह ले लेगा, भले ही कांग्रेस ने संसद के बाहर लगी गांधी की प्रतिमा के सामने कितने भी विराेध प्रदर्शन किए हाें.विपक्ष ने भी यह पूछा कि कानून का नाम क्याें बदला जा रहा है. क्याें महात्मा गांधी के संक्षिप्त नाम के पहले दाे अक्षर एमजी काे राम से बदला जा रहा है, जबकि सरकार वर्णमाला के किसी भी अन्य शब्द काे चुन सकती थी. कृषि मंत्री शिवराज सिंह चाैहान, जिन्हाेंने कानून काे पेश करने के काम की अगुवाई, अन्यथा बढ़िया ढंग से की, उनके पास काेई उचित जवाब नहीं था. संसद में गांधी के आदर्श ‘राम राज्य’, स्वयं भगवान राम के प्रति उनकी निष्ठा के बारे में भाषणाें की गूंज सुनाई दी- लेकिन इस बात का काेई असल कारण नहीं बताया गया कि मनरेगा में बदलाव क्याें किया गया, न ताे बाताें में और न ही कार्यरूप में.
दिलचस्प बात यह है कि ‘जी-राम-जी’ का एक पिछला स्वरूप भी था, जिसका जीवनकाल 24 घंटे का था. इसे ‘पूज्य बापू ग्रामीण राेज़गार याेजना’ का नाम दिया गया था, जाे कि अंग्रेजी में लिखे मूल नामकरण, ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण राेज़गार गारंटी अधिनियम’ का नज़दीकी हिंदी अनुवाद था. साफ है, भाजपा ने महात्मा गांधी, या पूज्य बापू काे प्रतीकात्मक रूप से राम के नाम से बदलने का फैसला किया.क्याें? वह हम नहीं जानते. कुछ लाेग कहेंगे, आखिर नाम में क्या रखा है? कुछ लाेगाें का जवाब हाेगा, सब कुछ है. कि बापू की मृत्यु के लगभग 78 साल बाद, उनका नाम मिटाने की काेशिश है, जिसकी अहमियत काे शायद, हम समझ भी न पाएं. गांधी मां-बेटी की जाेड़ी ने नारे लगाए और सदन के बाहर मार्च किया, लेकिन कुछ हद तक यह सब आधा-अधूरा था. इस बीच, ‘गांधी परिवार’ के उत्तराधिकारी म्यूनिख में बीएमडब्ल्यू की साझेदारी में बन रही टीवीएस-450 सीसी माेटरसाइकल चलाते दिखे.
हालांकि, पार्टी के कहे मुताबिक, वे वहां इंडियन ओवरसीज़ कांग्रेस के नेताओं से ‘पार्टी की विचारधारा काे विस्तार देने की रणनीतियाें’ पर चर्चा करने के वास्ते गए हैं. सवाल यह बना हुआ है कि किस देश में.कुछ ही महीने पहले, राहुल ने बिहार चुनाव में कांटे की लड़ाई लड़ने की बजाय, ‘पार्टी का विस्तार’ करने के लिए दक्षिण अमेरिका जाने का फैसला किया था. ऐसा लगता हकि इस हफ्ते उनके पदचिन्ह जर्मनी में ही बने रहेंगे. अवश्य ही, जिस किस्म की दिखावेबाजी आजकल विपक्ष कर रहा है, वह आत्मघाती जैसा है. निश्चित ताैर पर, अगर यह सब थाेड़ा और समय तक चलता रहा, ताे जल्द ही कांग्रेस पार्टी काे पुनः एकजुट रखना न केवल असंभव हाेगा, बल्कि घातक भी हाेगा.
हम जानते हैं कि प्रधानमंत्री संसद की गहमागहमी में इसलिए माैजूद नहीं थे क्याेंकि ओमान के साथ मुक्त व्यापार समझाैता हस्ताक्षराें के लिए तैयार थायूके के बाद दूसरी संधि लेकिन यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि इथियाेपिया और जाॅर्डन के दाैरे इंतजार क्याें नहीं कर सकते थे. जाॅर्डन नरेश हुसैन दाे साल पहले ही भारत की यात्रा पर आए थे; वापसी दाैरा किसी और वक्त भी रखा जा सकता था. जहां तक इथियाेपिया की बात है, जिस संसद भवन में माेदी काे बाेलने के लिए आमंत्रित किया गया था, भले ही वह चीनियाें ने न बनाया हाे, लेकिन पास के अदीस अबाबा में अफ्रीकी संघ का मुख्यालय उन्हाेंने ही बनाया है. दरअसल, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने अफ्रीका भर में 15 मुल्काें के संसद भवन बनाए हैं, लाेकतंत्र के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इतनी है.
बहरहाल, गत सप्ताह माेदी काे इथियाेपिया और ओमान के सर्वाेच्च नागरिक सम्मान मिले ये उनके 28वें और 29वें अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार हैं. इस बीच, जब राहुल जर्मनी में छुट्टियां मना रहे थे ताे एक कांग्रेस ने बिना साेचे-समझे सदन के बीचाें-बीच आकर हंगामा किया. लेकिन यह तृणमूल कांग्रेस है, न कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जिसने गुरुवार की रात काे दिल्ली की तीखी ठंड में ‘जी-राम-जी’ पारित हाेने के विराेध में संसद की सीढ़ियाें पर रात्रि के अधिकांश समय धरना दिया. संसद की प्रासंगिकता का प्रश्न छाेड़ भी दें, ताे कांग्रेस की अप्रासंगिकता और उसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य से उसका अवसान हाेते जाना शायद इस हफ्ते की सबसे महत्वपूर्ण घटना है. यह हमारी आंखाें के सामने घटित हाे रहा है और इस अंतःस्राव काे थामने वाला काेई नहीं है. -ज्याेति मल्हाेत्रा