पुणे, 3 दिसंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क) कट्स इंटरनेशनल द्वारा जारी एक नीति-पत्र ने भारत के सेकेंडरी एल्युमीनियम क्षेत्र के सामने खड़ी एक गंभीर चुनौती को रेखांकित किया हैबढ़ती इनपुट लागतें. रिपोर्ट के अनुसार, यह समस्या देश की विनिर्माण महत्वाकांक्षाओं को प्रभावित कर सकती है, जबकि घरेलू एल्युमीनियम की मांग 53 लाख टन से बढ़कर 2030 तक 83 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है. अध्ययन में बताया गया है कि मौजूदा आयात शुल्क संरचना अनजाने में एमएसएमई को नुकसान पहुँचा रही हैवही उद्यम जो देश की विनिर्माण मूल्य श्रृंखला की रीढ़ हैं और विकसित भारत 2047 के लक्ष्य के लिए आवश्यक हैं. एल्युमिनियम सेकेंडरी मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन के नवेंदू के. भारद्वाज ने कहा कि प्राथमिक एल्युमीनियम पर शुल्क में कटौती डाउनस्ट्रीम निर्माताओं को विकास पहलों के लिए आवश्यक एल्यूमिनियम की बढ़ती मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम बनाएगी. एल्यूमिनियम मूल्य-वर्धित उत्पाद निर्माण, अवसंरचना, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में प्रमुख घटक ह्ैं. वरिष्ठ अधिकारी नवेंदू ने कहा महाराष्ट्र इस चुनौती के केंद्र में है. नागपुर, चंद्रपुर, रायगढ़ और पुणे राज्य के प्रमुख स्मेल्टिंग, रिफाइनिंग और डाउनस्ट्रीम संचालन वाले क्षेत्र हैं. बड़े औद्योगिक संयंत्रों के साथसाथ, महाराष्ट्र में ढलाई, फैब्रिकेशन, एक्सट्रूजन और कंपोनेंट निर्माण से जुड़े हजारों एमएसएमई संचालित होते हैं, जो एक एकीकृत एल्यूमिनियम मूल्य शृंखला तैयार करते हैं. यह श्रृंखला रोजगार सृजित करती है, नवाचार को बढ़ावा देती है और राज्य के विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करती है.