प्राइवेट से्नटर के उच्च शिक्षा संस्थानाें की जवाबदेही तय

    05-Dec-2025
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कभी-कभी काेई साधारण घटना मील का पत्थर बनकर युगांतरकारी बदलावाें काे जन्म देती है. एक निजी विश्वविद्यालय की छात्रा काे अपने नाम-परिवर्तन काे विश्वविद्यालय के रिकाॅर्ड में दर्ज करवाने काे लेकर जाे तकलीफें झेलनी पड़ीं, उसे लेकर सर्वाेच्च न्यायालय ने न केवल दाेषी विश्वविद्यालय पर सख्त कार्रवाई की, बल्कि देश के सभी 603 निजी विश्वविद्यालयाें के अब तक के कामकाज और उनके वित्तीय प्रबंधन की जांच के आदेश भी दिए हैं.इससे जुड़े कई सवाल अहम हैं. ्नया सुप्रीम काेर्ट की यह सख्ती हमारी उच्च शिक्षा काे उसकी माैजूदा चिंताजनक स्थिति से उबार पाएगी? ्नया यह सख्ती राष्ट्रीय शिक्षा नति, 2020 द्वारा सुझाए गए नियमन माॅडल काे कूड़ेदान में डाल देगी, जिसमें हल्के नियमन और चुस्त प्रबंधन काे अपनाने का सुझाव दिया गया है?
 
संसद के शीतकालीन सत्र में उच्च शिक्षा के सबसे महत्वपूर्ण विषय प्रभावशाली नियमन काे लेकर भारतीय उच्च शिक्षा आयाेग (एचईसीआई) के गठन पर जिस बिल काे पेश किया जाना है, ्नया उस पर हाेने वाली बहस में माैजूदा नियामक संस्थाओं के क्रियाकलापाें पर प्रश्नचिन्ह लगाए जाएंगे? सुप्रीम काेर्ट की इस कार्रवाई से यह बहस भी उठेगी कि शिक्षा काे व्यवसाय नहीं बनाया जा सकता. शिक्षण संस्थानाें काे हमारे संविधान ने ‘नाॅट फाेर प्राॅफिट’ (गैर-लाभकारी) गतिविधि बताया है, जिसे सिर्फ ट्रस्ट और साेसायटी ए्नट के अंतर्गत ही स्थापित किया जा सकता है. सुप्रीम काेर्ट ने केंद्र व राज्य सरकाराें से यह जानकारी भी मांगी है कि ्नया निजी विश्वविद्यालय सिर्फ ‘रीजनेबल सरप्लस’ (जरूरत से थाेड़ा सा ज्यादा) कमाती हैं और ्नया ये रकम इनके व्य्नितगत हिताें के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं?
 
आजादी के बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयाेग (यूजीसी) 1956 में और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) 1987 में कानूनी ताैर पर नियामक अंग बनाए गए थे. सुप्रीम काेर्ट ने केंद्र और राज्य सरकाराें से जांच करके यह बताने काे कहा है कि ये विश्वविद्यालय कब व कैसे अस्तित्व में आए और इनकाे ्नया-्नया सुविधाएं सरकाराें से मिलीं? इन विश्वविद्यालयाें के संस्थापक साेसायटियाें व ट्रस्टाें की जांच भी की जाएगी और उनके सदस्याें की नियु्नित की प्रक्रिया भी देखी जाएगा.सुप्रीम काेर्ट में एक छात्रा अपनी समस्या लेकर गई थी, जाे बहुत मामूली प्रकृति की थी. उसने चूंकि अपना नाम बदला था, इसलिए वह विश्वविद्यालय के रिकाॅर्ड में भी उसे बदलवाना चाहती थी. मगर उसकी इस मांग पर संबंधित विश्वविद्यालय ने करीब एक साल तक टालमटाेल वाला रवैया अपनाए रखा.
 
नतीजतन, वह न्याय मांगने अदालत की शरण में पहुंच गई. इसके बाद सुप्रीम काेर्ट ने उस विश्वविद्यालय से जवाब मांगा, साथ ही यूजीसी से भी पूछा कि उसने इन विश्वविद्यालयाें काे रेगुलेट करने के जाे भी नियम और कानून बनाए हाें, उनका ्नया वास्तव में पालन हाे रहा है? सुप्रीम काेर्ट के इस हालिया निर्णय में यूजीसी से तीन प्रमुख मुद्दाें पर पूछा गया है कि विद्यार्थियाें के प्रवेश, शिक्षकाें व कर्मचारियाें की नियु्नित व उच्च प्रबंधन में ये विश्वविद्यालय कितनी पारदर्शिता बरत रहे हैं? आमताैर पर सभी विश्वविद्यालय में कभी-कभी विद्यार्थियाें, अभिभावकाें और शिक्षकाें काे शिकायताें का सामना करना पड़ता है. निजी ही नहीं, सरकारी विश्वविद्यालय भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं. यूं ताे यूजीसी ने हर विश्वविद्यालय में शिकायत निवारण की प्रक्रिया लागू की है और वहां ‘ओम्बुड्समैन’ भी नियु्नत किया गया है, लेकिन असलियत में यही देखा गया है कि यह सारी व्यवस्था सिर्फ खानापूर्ति साबित हाेती है.
 
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या यह समस्या सिर्फ निजी विश्वविद्यालयाें में है? ्नया सरकारी विश्वविद्यालयाें में विद्यार्थियाें काे परेशानी नहीं झेलनी पड़ती? ्नया हमारे विश्वविद्यालय नाैकरशाही, लालफीताशाही, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और अकर्मण्यता से ग्रस्त नहीं हैं? सुप्रीम काेर्ट के माननीय न्यायाधीशाें ने एक छात्रा के साथ हुए गलत व्यवहार का संज्ञान लेकर समूचे निजी उच्च शिक्षा तंत्र काे जवाबदेह बनाने की बात कही है. बेहतर हाेता कि यह पारदर्शिता, जबावदेही और संवेदनशीलता उच्च शिक्षा के हरेक संस्थान से मांगी जाती. ्नया सभी स्कूलाें काे भी इसकी परिधि में शामिल नहीं किया जा सकता था? अच्छी शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सेवा भारत काे वर्ष 2047 तक एक विकसित देश बनाने की बुनियादी शर्ते हैं.पिछले 75 वर्षाें में शिक्षा का संख्यात्मक रूप से विस्तार हुआ है. ‘सबकाे शिक्षा’ काफी हद तक वास्तविकता बन गई है, किंतु आज सिर्फ डिग्री हासिल करना काफी नहीं है.
 
सवाल यह है कि ्नया हम अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा सबकाे दे पा रहे हैं? सर्वाेच्च न्यायालय ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए सिर्फ निजी विश्वविद्यालयाें काे ही जवाबदेह क्यों बनाया है? ्नया सरकारी विश्वविद्यालयाें में सब जगह अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा बच्चाें काे दी जा रही है? ब्रिटिश माॅडल पर भारत में उच्च शिक्षा का प्रारंभ 1856 के आसपास हुआ था. आज राज्याें के सरकारी विश्वविद्यालय संबद्ध काॅलेजाें के बाेझ से दबे जा रहे हैं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में संबद्ध काॅलेजाें काे 2035 तक डिग्री देने वाली संस्था बनाने की बात कही गई है. ्नया उस दिशा में हम काेई प्रगति कर पा रहे हैं? यह ठीक है कि निजी विश्वविद्यालय अपनी पूंजी लगाकर बेहतर बुनियादी ढांचा खड़ा कर लेते हैं, जबकि इसके विपरीत सरकारी विश्वविद्यालय सिर्फ शिक्षकाें और कर्मचारियाें काे वेतन देने लायक अनुदान ही जुटा पाते हैं.किसी विश्वविद्यालय के भवन, ्नलासरूम, प्रयाेगशाला, हाेस्टल और पुस्तकालय में जाकर देखिए, उनकी दयनीय दशा का पता आसानी से चल जाएगा. -हरिवंश चतुर्वेदी