प्रेम का बीज ही माेक्ष का फूल बन सकता है!

    09-Dec-2025
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Osho 
 
मगर जिनके हृदय प्रेम से शून्य हैं, जिन्हाेंने प्रेम की रसधार ताेड़ दी है, और जिन्हाेंने प्रेम के सेतु जला दिए हैं, वे लाख चिल्लाते रहें माेक्ष के लिए, उन्हाेंने माेक्ष का उपाय मिटा दिया. उनकी पुकार कहीं भी पहुंचेगी नहीं. उनकी पुकार का काेई परिणाम नहीं हाेगा. उन्हाेंने बीज ही दग्ध कर दिया, जाे माेक्ष बनता है. प्रेम का बीज ही माेक्ष का ूल बनता है.मनुष्य के हृदय में प्रेम से मूल्यवान और कुछ भी नहीं है. इसलिए मेरी सारी शिक्षा, तुम्हारा प्रेम जैसे जैसे विकसित हाे, जिस जिस द्वार से विकसित हाे, जिसजिस माध्यमसे, सब माध्यम उपयाेग करना है. देह का प्रेम भी सुंदर है, लेकिन उसी पर रुक मत जाना. मन का प्रेम भी सुंदर है, लेकिन उसी पर ठहर मत जाना. आत्मा का प्रेम भी सुंदर है, लेकिन वहां भी नहीं रुकना है.पहुंचना ताे परमात्मा तक है. तभी तुम्हारी सारी जंजीरें टूटेंगी.
 
जंजीरें बिलकुल जीर्णशीर्ण हाे गई हैं.जरा झटका दे दाे कि टूट जाएं. तुम्हारे ऊपर जंजीराें का प्रभाव बहुत नहीं रह गया है; र्सिफ पुरानी आदताें के कारण तुम जंजीराें के प्रभाव में हाे. आज काैन हिंदू हिंदू है? काैन मुसलमान मुसलमान है? काैन ईसाई ईसाई है? अगर लाेग ईसाई हाे जाते हैं, ताे रविवार काे हाे जाते हैं जब चर्च जाते हैं.और अगर काेई मुसलमान हाे जाता है, ताे तब जब हिंदुओं के मंदिर जलाने हाेते हैं.और काेई हिंदू जब हिंदू हाे जाता है, ताे तब जब घृणा और वैमनस्य की लपटें जलती हैं. ये जंजीरें, ये कारागृह तुम काम में ही तब लाते हाे, जब कुछ गलत करना हाेता है. जंजीराें का ठीक उपयाेग हाे भी नहीं सकता. और कारागृहाें की काेई सम्यक परिणति हाे भी नहीं सकती.
 
ये दीवारेें तुम्हें दूसराें से अलग करती हैं. मनुष्य और मनुष्य के बीच ासला खड़ा करती हैं, भेद खड़ा करती हैं. मनुष्य काे मनुष्य का दुश्मन बनाती हैं. इनके ताेड़ने के दिन आ गए! और एक झटके में टूट जाएंगी ये, क्याेंकि ये बड़ी जीर्णशीर्ण हाे गई हैं, बहुत पुरानी हैं. इनके प्राण ताे निकल ही चुके हैं, तुम इन्हें क्याें ढाे रहे हाे यही आश्चर्य की बात है! तुम्हारी आत्मा का इनके साथ काेई संबंध भी नहीं रह गया है.हर इक जंजीर है अब पाशिकस्ता हर इक जिंदां की वीरानी के दिन हैं हर कारागृह काे बरबाद कर देने का समय आ गया है. धर्म मनुष्य काे तैयार करता रहा है इस घड़ी के लिए; वह घड़ी करीब आ गई है. महावीराें ने, बुद्धाें ने, माेहम्मदाें ने जिस घड़ी की प्रतीक्षा की थी, वह घड़ी करीब आ रही है! यह पृथ्वी अब एक हाे सकती है. सब दीवालें गिराई जा सकती हैं और सब जंजीरें ताेड़ी जा सकती हैं. जाे उनकी आकांक्षा थी, आज पूरी हाे सकती है.