इतिहास के कुछ सबसे ज्यादा दुखी और गुस्सैल लाेगाें की संलिप्तता वाले खूनी खेल के बाद, अब गाजा में मामला खत्म हाेने वाला है. गाजा में शांति का दिन भले ही नाजुक हाे और नफरत के बचे हुए हिस्से माफ करने लायक न हाें. फिर भी, लड़ाई के मैदान की जगह जली हुई धरती ने ले ली है, जाे फिर से नया भविष्य बनाने के लिए जूझ रही है. पराजित लाेगाें ने शायद नफरत की राजनीति इसलिए नहीं छाेड़ी है, क्योंकि धर्मग्रंथाें के हिसाब से बदला लेने की भावना हमास काे ताकत देती रहती है. अब फिलिस्तीन का संघर्ष भी हमारे समय में ऐसे जिहाद से जुड़ गया है, जाे इंसाफ पाने की गलत और खतरनाक काेशिश जैसा दिखता है. गाजा में युद्ध खत्म हाेने की कहानी इंकार और बंचना की यादाें से लिखी गई है.उधर यूक्रेन भी उम्मीद और डर के बीच झूल रहा है, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डाेनाल्ड ट्रंप के 28 सूत्रीय प्रस्ताव की वजह से संघर्ष विराम हाेने की उम्मीद बनती दिख नहीं रही है.
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इस प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है, लेकिन यूक्रेन और उसके यूराेपीय साझेदार ‘गरिमा के साथ शांति’ पाने के लिए एक वैकल्पिक प्रस्ताव तैयार करने में जुटे हुए हैं.असल में, जिस देश पर हमला किया गया, उसके अथक लड़ाकाें काे जाे चीज संघर्ष विराम की शर्तें मानने से राेकती है, वह है हमलावर का इरादा. शांति याेजना के मसाैदे में जिसे विजेता माना जाता है. उसे बातचीत में ज्यादा ताकत मिलती है.यूक्रेन के मामले में वाशिंगटन में साैदे करने वाला स्वभाव से ही ताकत की कद्र करने वाला है. न कि काेई भावुक व्य्नित, जाे उस छाेटे और कमजाेर आदमी के साथ खड़ा हाे. जाे अब भी अपने देश का बचाव कर रहा है. जिसे पहले ही बहुत ज्यादा नुकसान हाे चुका है. रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की साेच में, शांति के फाॅर्मूले में बुरी तरह से बर्बाद यूक्रेन का आत्मसमर्पण और अपमान भी शामिल है.
जिस रूसी जाल काे राष्ट्रपति ट्रंप ने चुपचाप मंजूरी दे दी, उसमें कीव नहीं फंसा, यह इस बात का सबूत है कि एक तबाह छाेटे-से देश का अपनी शर्ताें पर जीने का प्नका इरादा कितना मजबूत है. अब जाे बात मायने रखती है, वह शांति याेजना की प्रकृति नहीं है, बल्कि बात करने की इच्छा है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन शायद साेवियत तरीकाें से खाेए हुए साम्राज्य काे वापस पाने के अभियान पर हाें लेकिन ऐसा वह साम्यवाद के बिना करना चाहते हैं, जिसकी जगह अब शिकायताें से भरे राष्ट्रवाद ने ले ली है. पुतिन के लिए, यूक्रेन एक झूठ है, जाे एक रूसी साम्राज्य की मंदी के बाद पैदा हुआ था, जाे एक तरह से हमास के हितैषियाें का इजरायल काे झूठ के रूप में देखना था, जिसे औपनिवेशिक साजिश से वैध ठहराया गया था.
राष्ट्रीय कंजर्वेटिव्स की अलग साेच और ट्रंप के अंतरराष्ट्रीयतावाद के मेल में, रूस की शिकायत (चाहे उसे अच्छा महसूस करने के लिए दुश्मन की कितनी भी जमीन की जरूरत हाे) यूक्रेन के पीड़ित हाेने से ज्यादा सच्ची है. दाेनाें पक्षाें काे अब यह एहसास हाे गया है कि उनके भविष्य के बारे में बातचीत काे और टाला नहीं जा सकता और ट्रंप ने यूक्रेन जैसी जगहाें पर असर डालने में अमेरिकी ताकत की सीमाओं काे मान लियाहै, जहां राष्ट्रवाद का मकसद डर काे बढ़ावा देना नहीं है.नाकामियाें के बावजूद शांति अब एक साझा लक्ष्य है.समापन ही वर्ष 2025 का अंतिम फैसला है. काेई भी देश हमेशा युद्ध नहीं झेल सकता और इजरायल जैसे देश के लिए जिंदा रहने का मतलब है हमेशा सजग रहना.
जब किसी देश काे उसके हाेने के अधिकार से वंचित किया जाता है, ताे बचाव उसके अस्तित्व का अधिकार बन जाता है. यहूदी डायस्पाेरा के अलावा, इजरायल और यूक्रेन उन लाेगाें काे चुनाैती देने की इच्छा से एकजुट हैं, जाे साेचते हैं कि नरसंहार का गुस्सा ही इतिहास की उन गल्तियाें काे ठीक करने का एकमात्र तरीका है, जिन्हें वे अब भी गलती मानते हैं. देर से हुआ यह एहसास कि ऐसी गल्तियाें काे दूसरे देशाें की हिंसा से ठीक नहीं किया जा सकता, शांति का पहला संकेत है.बातचीत की मेज पर पुतिन के रूस का मतलब है कि लड़ाई के मैदान में मिली जीत का जश्न हमेशा नहीं मनाया जा सकता. ऐसा कहने के बाद, खत्म हाेने का एहसास कम हाे गया है, जैसे हमें यह याद दिलाने की जरूरत हाे कि जहां इतिहास अब भी एक विवाद है, वहां राष्ट्रीय संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय नैतिकता एक-दूसरे से जुड़े शब्द हैं.
अब भी एक देश ऐसा है, जाे अपने-ऊपर मंडराते दुश्मन की कल्पना के बिना खुद काे परिभाषित ही नहीं कर सकता. पाकिस्तान ने नफरत काे राष्ट्रीय स्वभाव के ताैर पर सामान्य बना दिया है, और दुनिया काे इससे काेई फर्क नहीं पड़ता. हाे सकता है कि 9/11 समेत आज के आतंक की कहानी, धार्मिक बेसब्री में पैदा हुए देश के ताैर पर पाकिस्तान के विकास की कहानी काे देखे बिना नहीं बताई जा सकती. राष्ट्रीय जरूरत के ताैर पर आतंक का संस्थानीकरण, पीड़ित के अलावा किसी दूसरे काे हैरान नहीं करता. भारत का आगे बढ़ाना पाकिस्तान की नाकामी काे और बढ़ाता है. वह भारत के खिलाफ चुपके-से जंग छेड़कर उस ऐतिहासिक नाकामी का फायदा उठाता है. -एस प्रसन्नराजन