पुणे/इंदौर, 14 अप्रैल (आ.प्र.) फैमिली कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि पढ़ी-लिखी और आय अर्जित करने में सक्षम महिलाओं को पति से भरणपोषण की मांग करने का अधिकार नहीं है. इस फैसले के तहत इंदौर निवासी निकुंज शाह की पत्नी की याचिका खारिज कर दी गई, जिसने कथित झूठे आरोपों के साथ गुजारा भत्ते की मांग की गयी थी. सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन (SIFF), जो पुरुषों के अधिकारों के लिए काम करने वाला NGO है, उसने इस फैसले को ‘पुरुषों के लिए न्याय की दिशा में एक मील का पत्थर' बताया. SIFF की कानूनी मदद से निकुंज शाह ने साबित किया कि उनकी पत्नी के पास एमबीए डिग्री, विदेश में कार्यानुभव और स्थिर आय का स्रोत है. निकुंज शाह की शादी 2016 में हुई थी, लेकिन 2022 में उनके बेटे के जन्म के बाद पत्नी का व्यवहार बदल गया. पत्नी ने झूठे दावों के साथ अलग रहने की मांग की और बेटे को माध्यम बनाकर दबाव बनाने लगीं. स्थिति बिगड़ने पर निकुंज ने वैवाहिक अधिकारों और बच्चे की कस्टडी के लिए केस दर्ज किया. जवाब में पत्नी ने IPC 498 , 377 और दहेज एक्ट जैसी गंभीर धाराओं में केस दर्ज कर दिया. निकुंज को इंदौर जेल जाना पड़ा, जिससे उनका करियर और परिवार दोनों प्रभावित हुए. लेकिन SIFF के सहयोग से उन्होंने IPC 377 का आरोप खारिज करवाया और CRPC 125 के तहत भरण-पोषण की याचिका को भी कोर्ट से खारिज करवा दिया.
एलुमनी कानूनों में सुधार की जशरत: SIFF की 4 प्रमुख मांगें
1. एलुमनी का निर्धारण विवाह की अवधि के आधार पर हो
2. सभी कानून लिंग-निरपेक्ष बनाए जाएं
3. झूठे मामलों को पहचानने वाले पुलिस और वकीलों को सम्मान मिले
4. कोर्ट में मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणाली की अनिवार्यता.