पुणे, 20 अप्रैल (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क) पुणे में जनवरी महीने में हुए गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के प्रकोप का कारण मुर्गियां हो सकती हैं ऐसा राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) की प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया गया है. इस विषय पर अनुसंधान जारी है और जल्द ही अंतिम निष्कर्ष सामने आएगा, यह जानकारी एनआईवी के निदेशक डॉ. नवीन कुमार ने रविवार को दी. पुणे में 9 जनवरी से जीबीएस के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी गई थी. सिंहगढ़ रोड स्थित नांदेड गांव क्षेत्र में इसका प्रकोप अधिक देखा गया. पूरे पुणे में जीबीएस के कुल 202 मरीज मिले, जिनमें से 46 पुणे मनपा क्षेत्र के, 95 नवविस्तारित क्षेत्रों के, 34 पिंपरी-चिंचवड़ क्षेत्र के और 40 पुणे ग्रामीण क्षेत्र के थे. जीबीएस के कारण अब तक 12 लोगों की मृत्यु हो चुकी है.
हालांकि 18 फरवरी के बाद से नए मामले सामने नहीं आए हैं, जिससे मनपा ने जीबीएस का प्रकोप समाप्त मान लिया है. लेकिन इसका सटीक कारण स्वास्थ्य विभाग ने अब तक सार्वजनिक नहीं किया है. इस संदर्भ में डॉ. नवीन कुमार ने कहा कि जीबीएस लगभग 8 से 9 प्रकार के संक्रमणों के कारण हो सकता है, और लगभग 50% मामलों में इसका कारण स्पष्ट नहीं होता. इसलिए हमने जीबीएस के प्रकोप के दौरान संभावित सभी जीवाणुओं और विषाणुओं की जांच की. हमने लगभग 26 प्रकार के रोगजनकों की जांच की और हमारे पास 300 से अधिक नमूने परीक्षण के लिए आए.
इस जांच में मुख्य रूप से नोरोवायरस और कैम्पायलोबैक्टर जेजुनी पाए गएत्र चूंकि नोरोवायरस जीबीएस का कारण नहीं बनता, इसलिए हमारा ध्यान कैम्पायलोबैक्टर जेजुनी संक्रमण पर केंद्रित हुआ. इस संक्रमण का स्रोत पता लगाने के लिए पानी के नमूनों की जांच की गई्. जांच में कुछ मरीजों के घरों के नल के पानी में यह बैक्टीरिया पाया गया. यह पानी खड़कवासला डैम से आपूर्ति किया जा रहा था. चूंकि डैम के पास पोल्ट्री फार्म स्थित हैं, इसलिए वहाँ की मुर्गियों की बीट के नमूने लिए गए. उनमें से 50% नमूनों में कैम्पायलोबैक्टर जेजुनी पाया गया. इस आधार पर यह प्राथमिक निष्कर्ष निकला कि जीबीएस का प्रकोप मुर्गियों के कारण हुआ.
मनपा की क्लोरीनेशन प्रक्रिया पर उठे सवाल
खड़कवासला डैम का पानी नांदेड गाँव की कुओं में छोड़ा जा रहा था, जहाँ पुणे मनपा द्वारा क्लोरीनेशन (रासायनिक तरीके से पानी को कीटाणुरहित करना) किया जा रहा था. इस प्रक्रिया पर डॉ. कुमार ने सवाल उठाए्. उन्होंने कहा कि या तो यह प्रक्रिया सही तरीके से नहीं की गई, या उसमें कोई त्रुटि रही, जिससे पानी का पर्याप्त कीटाणुशोधन नहीं हो सका.