पुणे, 29 अप्रैल (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क) लोकतंत्र के चार स्तंभ विधायिका, न्यायपालिका, प्रशासन और पत्रकारिता की एकजुटता देश ने कभी अनुभव नहीं की थी. लेकिन आज ये सभी ‘वारकरी' (आस्था में लीन अनुयायी) बन चुके हैं. सभी की प्रवृत्ति मतभेद से बचने की हो गई है. ‘वन नेशन, वन इंटरेस्ट' की सोच के चलते हम एक आदर्श भारत बनाने के प्रयास में मतभेद और संवाद की गुंजाइश खो बैठे हैं, ऐसा विचार वरिष्ठ पत्रकार राजू परुलेकर ने सोमवार को व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि आज का भारत अखंड है, लेकिन वह और अधिक अखंड नहीं रहेगा होगा. बल्कि हम ही इस अखंड भारत को टुकड़ों में बांट रहे हैं वे पत्रकार वरुणराज भिडे मित्र परिवार द्वारा आयोजित वरुणराज भिडे स्मृति पुरस्कार समारोह में बोल रहे थे. इस अवसर पर लोकमत के सहयोगी संपादक यदु जोशी (मुंबई) को वरुणराज भिडे स्मृति पुरस्कार, जबकि महाराष्ट्र टाइम्स के विशेष प्रतिनिधि प्रशांत आहेर, एबीपी माझा के मिकी घई (पुणे) और लोकसत्ता के दिगंबर शिंदे (सांगली) को आश्वासक पत्रकारिता पुरस्कार परुलेकर और सांसद डॉ. अमोल कोल्हे के हाथों प्रदान किए गए. कार्यक्रम में वरिष्ठ नेता उल्हास पवार और अंकुश काकड़े प्रमुख रूप से उपस्थित थे. पत्रकारिता डिप्लोमा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले आनंद पवार को यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान, विभागीय कार्यालय की ओर से सम्मानित किया गया. राजू परुलेकर ने कहा कि आज के दौर में हर किसी के लिए अपना कर्तव्य निभाना कठिन हो गया है. समाज का मनोविज्ञान जटिल होते हुए भी दूषित हो गया है. एक-दूसरे का सम्मान करने की परंपरा समाप्त हो गई है और भाषा की शालीनता भी गिरी है. पहले मतभेद के लिए जगह थी, अब तो लोग या तो मित्र होते हैं या शत्रु. हम सभी धर्मों के लोग एक समाज और देश के नागरिक हैं. एक-दूसरे के बिना रहने की कल्पना करेंगे तो सब कुछ बिखर जाएगा. किसी के नापसंद होने पर भी हम उसे समाज से अलग नहीं कर सकते. पंडित नेहरु और बाबासाहेब ने हिंदू पाकिस्तान नहीं बनने दिया उन्होंने कहा कि पंडित नेहरू और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने भारत को हिंदू पाकिस्तान बनने नहीं दिया. मोहम्मद अली जिन्ना धार्मिक आधार पर देश चाहते थे, लेकिन महात्मा गांधी को ऐसा भारत स्वीकार नहीं था. आज भारत को हिंदू पाकिस्तान बनने से रोकने की जिम्मेदारी पत्रकारों, कलाकारों और विचारशील लोगों की है. उन्होंने आगे कहा कि या तो दाएं या बाएं जाकर जीया जा सकता है, लेकिन यदि हम मध्य मार्ग पर चलें तो भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है. मीडिया अब सिर्फ प्रतिक्रियाएं लेने तक सीमित हो गई है. विपक्ष की राजनीति करना मुश्किल हो गया है. यदि संसद का प्रसारण बंद हो जाए तो कितने सांसद वास्तव में बोलेंगे, यह प्रश्न है. विपक्ष के लिए मीडिया ही आवाज होती है, लेकिन क्या आज खबर के पीछे की खबर को रखने की स्वतंत्रता बची है? इस दौरान सांसद अमोल कोल्हे ने भी कहा कि पहलगाम हमले के बाद मरने से पहले धर्म और जाति पूछी जाती है जैसे व्हाट्सऐप स्टेटस से देश में बढ़ रहे कटुता और ध्रुवीकरण की झलक मिलती है. कार्यक्रम में यदु जोशी, प्रशांत आहेर, मिकी घई और दिगंबर शिंदे ने भी अपने विचार रखे. अंकुश काकड़े के रोचक संचालन ने माहौल को जीवंत बना दिया. सतीश देसाई, शैलेश गुजर और सूर्यकांत पाठक ने अतिथियों का परिचय कराया, जबकि चयन समिति की ओर से मुकुंद संगोराम ने मनोगत व्यक्त किया. वरिष्ठ पत्रकार जयराम देसाई का सम्मान किया. कार्यक्रम के अंत में प्रकाश भोंडे ने आभार व्यक्त किया.