. संपर्क : पल्लवी योगेश शाह - पल्लवीज किचन
पता : 8 कमलप्रभा अपार्टमेंट, आदिनाथ सोसायटी, सातारा रोड, पुणे - 411037.
मोबाइल नंबर - 9881245245
मेरे कुकिंग क्लासेस से पिछले 10 वर्षों में अब तक 2000 से अधिक बच्चे खाना बनाना सीख चुके हैं. इसमें बच्चे सिर्फ पुणे से नहीं बल्कि नागपुर, मुंबई, सोलापुर, कोल्हापुर, कर्नाटक और गुजरात से भी आए हैं. इसके अलावा मुझे बताते हुए गर्व महसूस होता है कि पेरिस, अमेरिका और दुबई से भी बच्चे मेरी क्लासेस में खाना बनाना सीखने आए हैं. साथ ही मेरे कोर्स के कुछ विषय धुले के खाद्य प्रबंधन पाठ्यक्रम में भी शामिल किए गए हैं. यदि बच्चे खाना पकाने की कला में कुशल हो जाएं, तो उन्हें विदेश में खाने की समस्या से निपटने में आसानी होगी और वे खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से बेहतर महसूस करेंगे. खाना बनाना एक जशरी जीवन-कौशल है, यह जानकारी शहर की प्रसिद्ध कुकिंग क्लासेस ‘पल्लवीज किचन’ की संचालक पल्लवी योगेश शाह ने दै. ‘आज का आनंद’ की वरिष्ठ पत्रकार मिलन म्हेत्रे द्वारा लिए गए साक्षात्कार में साझा कीं. पेश हैं पाठकों के लिए उनसे की गई बातचीत के विशेष अंश :
सवाल - आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है? आप अपनी शिक्षा के बारे में जानकारी दीजिए?
जबाब - मैं मूल रूप से पुणे से हूं. मेरे पिता महेंद्र कोठारी जानेमाने वकील थे और मेरी मां एक गृहिणी थीं. मैंने अपनी स्कूली शिक्षा सदाशिव पेठ स्थित रेणुका स्वरूप स्कूल से पूरी की और 11वीं और 12वीं की पढ़ाई बीएमसीसी कॉलेज से पूरी की. इसके बाद मैंने सिम्बायोसिस कॉलेज से लॉ की पढ़ाई शुरू की थी, लेकिन शादी और प्रेग्नेंसी के चलते अंतिम वर्ष पूरा नहीं कर सकी. मेरी शादी 18 साल की उम्र में ही हो गई थी और हमारी लव मैरिज है. हमारे वैवाहिक जीवन को 32 साल पूरे हो चुके हैं. शादी के बाद मैं ेशेतांबर जैन परिवार से दिगंबर जैन परिवार में आ गई. पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण मेरी पढ़ाई अधूरी रह गई. मेरे ससुरजी रमेश शाह और पति योगेश शाह पहले पल्टी नांगर (एक कृषि यंत्र) बनाने का कारखाना चलाते थे. बाद में मेरे पति ने सीएनजी किट कधवर्जन का व्यवसाय शुरू किया, जिसमें अब हमारा बेटा आकाश भी उनके साथ कार्यरत है. हमारी बेटी सिद्धी है और बहू बीना एमबीए फाइनेंस में यूनिवर्सिटी गोल्ड मेडलिस्ट है और फाइनेंस क्षेत्र में कार्यरत है.
सवाल - अपने व्यवसाय के बारे में बताइये? आपने यह व्यवसाय कब और कैसे शुरू किया? इसका विचार आपके मन में कैसे आया?
जबाब - मुझे शुरू से ही विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने और उनमें नयापन लाने का शौक रहा है. मेरी मां स्मिता कोठारी बहुत स्वादिष्ट एवं अच्छा खाना बनाती थी. जब मेरी शादी हुई तो मेरी सास लता शाह भी खाना बनाने में माहिर थीं. इन दोनों से मैंने पारंपरिक और विविध प्रकार के व्यंजन बनाना सीखा. मेरा बेटा आकाश जब 16 साल का था, तब वह यूनाइटेड नेशन गया था और वह विदेश में आना-जाना करने लगा. जैन और पूर्णतः शाकाहारी होने के कारण उसे विदेश में भोजन को लेकर काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. साथ ही वहां खाने में शाकाहारी विकल्प बहुत कम उपलब्ध थे और जो थे वो भी काफी महंगे थे. जब वह घर वापस आया तो उसने खुद कुछ व्यंजन बनाना सीखने की कोशिश की और मैं उसे सिखाने लगी. यहीं से मुझे ‘कुकिंग क्लास’ शुरू करने की प्रेरणा मिली. मैंने यह महसूस किया कि मेरे बेटे की तरह कई बच्चे जो विशेष रूप से विदेश में पढ़ाई के लिए जाते हैं और वहां जाकर खुद खाना बनाना चाहते हैं, उन्हें इस प्रकार का प्रशिक्षण बहुत उपयोगी होगा. अब मैं ऐसे विद्यार्थियों को खाना बनाना सिखाती हूं, जो विदेश जाने की तैयारी कर रहे हैं या फिर नए शिक्षार्थी हैं. मेरा उद्देश्य सिर्फ खाना बनाना सिखाना नहीं, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाना है ताकि वे कहीं भी रहें, खुद खाना बना सकें और अपने स्वाद और परंपरा से जुड़े रहें. रांका द्वारा स्थापित ‘सारस डायबिटीज सेंटर’ के माध्यम से मैं गरीबों के लिए सामाजिक कार्य कर रही थी. फिर एक दिन मेरे बेटे ने मुझसे पूछा कि मां क्या आप अब अपना कुछ शुरू करना चाहती हैं, या सामाजिक कार्य को ही आगे बढ़ाना चाहती हैं? उस समय मैंने फैसला किया कि अब मैं खुद का कुछ शुरू करना चाहती हू्ं. ऐसे 2015 से मेरे कुकिंग में नए सफर की शुरुआत हुई. मैं जानती थी कि मैं अच्छा खाना बनाती हूं, इसलिए मैंने कुकिंग क्लास शुरू करने के लिए सोचा. लेकिन उस समय मेरे मन में यह सवाल उठा कि मेरे पास कौन आएगा? शुरूआत में मैंने आइसक्रीम और इटैलियन खाना सिखाना शुरू किया और मैं यह देखकर खुश और हैरान भी हुई कि मेरी दोनों बैच फुल थीं और मेरी दोनों बैच में 15-15 बच्चे थे. यहीं से मेरा आत्मवेिशास और बढ़ा और मैंने क्लासेस लेना शुरू किया.
सवाल - यह क्लासेस कितने दिन और कितने घंटे और विशेष किस वर्ग के लिए होती हैं? इनकी फीस क्या होती है? आपकी क्लासेस किस एज ग्रुप के लिए मददगार साबित होती हैं?
जबाब - मेरी कुकिंग क्लासेस चार दिन की होती हैं और क्लास की फीस 8000 रुपये है. यह सामान्य क्लासेस नहीं होतीं, बल्कि यह बच्चों को खाना पकाने के पीछे छिपे विज्ञान, गणित और कला की अवधारणाओं से परिचित कराती हैं. जब बच्चे खाना पकाने के पीछे के वैज्ञानिक और रचनात्मक पहलुओं को समझते हैं, तो वे किसी भी व्यंजन को आसानी से बना सकते हैं. आमतौर पर लड़के रसोई में रुचि नहीं लेते, लेकिन यहां आने के बाद सिर्फ चार दिनों में वे न केवल स्वादिष्ट भोजन बनाना सीख जाते हैं, बल्कि उनमें खाना पकाने को लेकर गहरी रुचि भी विकसित हो जाती है. हमारी क्लासेस में आनेवाले बच्चों में लगभग 90 प्रतिशत तक लड़के आते हैं. लेकिन क्लासेस में 15 साल के ऊपर किसी भी उम्र के व्यक्ति आ सकते हैं, जिनकी खाना बनाने में रूचि हो.
सवाल - आप एक दिन में कितने बैचेज लेती हैं और एक बैच में कितने बच्चे होते हैं?
जबाब - एक बैच में आमतौर पर 4 से 8 लोग होते हैं और एक क्लास तीन घंटे की होती है. इस क्लास के लिए बहुत तैयारी करनी होती है और फिर सब कुछ पैक भी करना होता है. जून और जुलाई के महीनों में जब बच्चे ज्यादा बाहर जाते हैं, तो इस क्लास में बच्चों की संख्या बढ़ जाती है. कभी- कभी जब बच्चों को वीजा मिल जाता है, तो माता-पिता बच्चों के खाने-पीने का ध्यान रखते हुए उन्हें इस क्लास में भेजते हैं, जिससे बैच में संख्या 12 तक भी हो जाती है.
सवाल : क्लासेस में आपके पास कहां-कहां से लोग आते हैं? आप यह क्लासेस पुणे में ही लेती हैं या शहर से बाहर भी जाती हैं?
जबाब - मेरी कुकिंग क्लासेस से अब तक 2000 से अधिक बच्चे खाना बनाना सीख चुके हैं. इसमें बच्चे सिर्फ पुणे से नहीं, बल्कि नागपुर, मुंबई, सोलापुर, कोल्हापुर, कर्नाटक और गुजरात से भी आए हैं. इसके अलावा मुझे बताते हुए गर्व महसूस होता है कि पेरिस, अमेरिका और दुबई से भी बच्चे मेरी क्लासेस में खाना बनाना सीखने आए हैं. साथ ही मेरे कोर्स के कुछ विषय धुले के खाद्य प्रबंधन पाठ्यक्रम में भी शामिल किए गए हैं. हालांकि मैं अपनी क्लासेस केवल पुणे में ही लेती हूं क्योंकि इसका यहीं इतना अच्छा रिस्पांस है कि मुझे बाहर जाकर क्लासेस लेने की आवश्यकता नहीं पड़ी. साथ ही मैं पुणे में इस प्रकार की क्लासेस देनेवाली एकमात्र महिला हू्ं. इस तरह से मेरी कुकिंग क्लास ने न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत लोकप्रियता हासिल की है.
सवाल : कुकिंग क्लासेस में क्या आप वेज और नॉन-वेज दोनों प्रकार के पदार्थ बनाना सिखाती हैं? अगर सिर्फ वेज तो कौन-से पदार्थ आसानी से बनाए जा सकते हैं, जिनमें समय भी कम लगता और यंगस्टर्स को बनाना भी आसान लगे?
जबाब - मेरी कुकिंग क्लासेस में केवल शाकाहारी व्यंजन सिखाए जाते हैं, लेकिन जो लोग मांसाहारी हैं उन्हें ग्रेवी बनाना सिखाया जाता है. यह क्लास उन लोगों के लिए भी उपयोगी है जो रसोई के कामों में बिलकुल नए हैं. यहां उन्हें गैस का उपयोग करना, चाय बनाना और रोजमर्रा का खाना पकाना सिखाया जाता है. पहले दिन नाश्ते और स्नैक्स पर ध्यान दिया जाता है. दूसरे दिन मुख्य भोजन बनाना सिखाया जाता है. तीसरे दिन ग्रेवी के साथ सब्जियों के प्रयोग, इटालियन व्यंजन और सैंडविच जैसे आइटम शामिल होते हैं. चौथे दिन पाव भाजी, चाइनीज डिशेज और मिठाई जैसे श्रीखंड और गाजर का हलवा सिखाए जाते हैं. इसके अलावा पनीर और दही बनाने का भी प्रशिक्षण दिया जाता है.
सवाल : आपकी क्लासेस में क्या लड़के-लड़कियां दोनों आते हैं? ज्यादा लड़के होते हैं या लड़कियां? अमूमन तौर पर लड़कों ने कभी अपने घर पर खाना बनाया नहीं होता, तो उन्हें सीखने में कैसी दिक्कतें आती हैं?
जबाब - मेरी कुकिंग क्लास में अब एक दिलचस्प बदलाव देखने को मिल रहा है. पहले इसमें अयादातर वही लड़के आते थे जो विदेश जाने की तैयारी में थे जिससे वहां जाकर खुद के लिए खाना बना सकें, इसलिए कुकिंग सीखना उनके लिए जशरी था. लेकिन हाल ही में विवाहित लड़कियां या विवाह योग्य लड़कियां भी बड़ी संख्या में क्लास में आने लगी हैं. अक्सर उनके माता-पिता उन्हें इसीलिए भेजते हैं क्योंकि ससुराल में उनसे यह उम्मीद की जाती है कि नई बहू कुछ अच्छा पका सके. कोरोना के बाद हालात और सोच में काफी बदलाव आया है. उस समय जब बाहर कुछ भी उपलब्ध नहीं था, तब लोगों को समझ आया कि खाना बनाना एक जशरी जीवन-कौशल है. अब तो हालात यह है कि न केवल कामकाजी महिलाएं, बल्कि उनके पति भी कुकिंग सीखने आ रहे हैं. यह देखकर खुशी होती है कि लोग इसे एक जिरमेदारी नहीं, बल्कि एक जशरी और रचनात्मक कला के रूप में अपनाने लगे हैं. सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां से कुकिंग सीखकर कई युवाओं को विदेशों में भी नौकरी के अवसर मिलते हैं, जिससे उनका आत्मवेिशास और भविष्य दोनों संवरते हैं.
सवाल : क्लासेस के माध्यम से आप विद्यार्थियों और अभिभावकों को क्या संदेश देना चाहेंगी?
जबाब - माता-पिता को अपने बच्चों को विदेश भेजने से पहले उनकी शिक्षा, उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य और भविष्य की संभावनाओं के बारे में गहरा सोच-विचार करना चाहिए. विदेश में बच्चों के लिए वहां के रीति-रिवाज, खानपान और संस्कृति से सामंजस्य बैठाना आसान नहीं होता. वहां उन्हें अपने देश जैसा वातावरण, खाना और घर का आराम नहीं मिलता. इस प्रकार की कठिनाइयों से निपटने के लिए उन्हें आत्मनिर्भर और समझदार होना बहुत जरूरी है. यदि वे खाना पकाने की कला में कुशल हो जाएं, तो उन्हें विदेश में खाने की समस्या से निपटने में आसानी होगी और वे खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से बेहतर महसूस करेंगे. इस तरह माता-पिता को बच्चों की तैयारी और उनकी दूरदृष्टि को समझते हुए उनका मार्गदर्शन करना चाहिए, ताकि वे विदेश में सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं बल्कि जीवन के अन्य पहलुओं में भी सफलता पा सकें. साक्षात्कार से निकली कुछ महत्वपूर्ण बातें वैज्ञानिक पहलुओं को समझने से किसी भी व्यंजन को आसानी से बना सकते हैं. कोरोना के बाद लोगों की सोच में बदलाव आया है. अब तो लड़कों में भी खाना बनाने की रूचि होने लगी है. कुकिंग सीखकर कई युवाओं को विदेशों में भी नौकरी के अवसर मिलते हैं