पुणे, 19 मई (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
पुणे मनपा के आगामी चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में अंदरूनी चर्चा तेज हो गई है. खबर है कि पार्टी इस बार 30 से 35 पूर्व नगरसेवकों को टिकट न देकर नए और निष्ठावान कार्यकर्ताओं को मौका देने पर विचार कर रही है. हालांकि राज्य स्तर पर महायुति (भाजपा, शिवसेना शिंदे गुट, और अजित पवार गुट) के तहत चुनाव लड़ने का निर्णय हुआ है, लेकिन पुणे में भाजपा के भीतर यह मांग जोर पकड़ रही है कि पार्टी को स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ना चाहिए. स्वतंत्र चुनाव की रणनीति पर जोर राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि पुणे में भाजपा और उपमुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) दोनों ही पार्टियां स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनाव कराने का आदेश जारी होने के बाद सभी दलों की गतिविधियां तेज हो गई हैं. पूर्व मनपा में भाजपा के पास 100 नगरसेवक थे, जिनमें शिवसेना से आए 5 नगरसेवक भी शामिल थे. वहीं, एनसीपी के 42 में से 35 नगरसेवक अब अजित पवार के गुट में ह्ैं. यदि महायुति के तहत चुनाव लड़ा गया, तो भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए मौके सीमित रहेंगे, इसीलिए कार्यकर्ताओं में स्वतंत्र लड़ाई की मांग उठ रही है.
लोकसभा की जीत के बाद कार्यकर्ताओं का आत्मवेिशास बढ़ा
हाल ही में भाजपा ने पुणे की सभी 6 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की है, जिससे कार्यकर्ताओं में उत्साह और आत्मवेिशास दोनों बढ़ा है. पिछली मनपा चुनाव (2017) में भाजपा ने 99 सीटें जीती थीं, जिनमें कई उम्मीदवार दूसरे दलों से आए थे. अब पार्टी के पुराने कार्यकर्ता टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां भाजपा का प्रभाव मजबूत है. एक-एक प्रभाग में 8 से 10 कार्यकर्ता चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, जिससे टिकट बंटवारे के समय भाजपा को आंतरिक संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में यह मांग जोर पकड़ रही है कि निष्ठावान कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता दी जाए. कोथरुड और एरंडवणे में टिकट चयन होगा चुनौतीपूर्ण कोथरुड विधानसभा क्षेत्र में टिकट वितरण खासा चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि चंद्रकांत पाटिल, मुरलीधर मोहोल और मेधा कुलकर्णी तीनों का इस क्षेत्र में प्रभाव है. यहां अधिकतर नगरसेवक भाजपा के हैं, ऐसे में नए कार्यकर्ताओं को मौका देने के लिए पुराने नगरसेवकों को हटाना पड़ेगा.
90 नए चेहरों को मिल सकती है
टिकट सूत्रों के मुताबिक, पार्टी कम से कम 90 नए चेहरों को टिकट देने की योजना बना रही है. इनमें वे पूर्व नगरसेवक शामिल नहीं होंगे जो उच्च पदों पर पहुंच चुके हैं या निष्क्रिय माने जा रहे ह्ैं. साथ ही जिन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हुई है, उन्हें भी टिकट से वंचित किया जा सकता है. अगर भाजपा स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ती है, तो यह नए कार्यकर्ताओं के लिए एक सुनहरा अवसर बन सकता है. बाकी बची सीटें पुराने नगरसेवकों और सहयोगी दलों को दी जा सकती हैं फिलहाल पार्टी में इस रणनीति पर चर्चा जोरों पर है, और अंतिम निर्णय केंद्रीय नेतृत्व द्वारा लिया जाएगा.