पुणे, 24 मई (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
वर्तमान समय में यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या आज की युवा पीढ़ी शादी से कतराती है? इस विषय पर विभिन्न विशेषज्ञों और आम जनता के विचार विभिन्न हैं. कुछ मानते हैं कि आज के युवा आर्थिक, मानसिक और सामाजिक कारणों से विवाह को प्राथमिकता नहीं देते, तो कुछ का कहना है कि यह केवल एक सामाजिक बदलाव और व्यक्तिगत निर्णय है. महंगाई, कैरियर की दौड़, विदेशी संस्कृतियों का प्रभाव, मानसिक और भावनात्मक तैयारियों की कमी, तथा बदलती सोच जैसे कई कारण मिलकर आज के विवाह के स्वरूप और समय को प्रभावित कर रहे हैं. इस विषय पर दै.आज का आनंद के लिए प्रो. रेणु अग्रवाल ने समाज के गणमान्यों से बातचीत की. उनसे बातचीत के प्रमुख अंश- प्रो. रेणु अग्रवाल (मो. 8830670849)
विवाह बेहद ही व्यक्तिगत निर्णय होता है
आज की पीढ़ी शादी नहीं करना चाहती या रिश्ते निभा नहीं सकती एक सरलीकृत और अधूरी धारणा है. विवाह एक बेहद व्यक्तिगत निर्णय है, जो हर व्यक्ति अपनी परिस्थितियों और प्राथमिकताओं के आधार पर लेता है. पहले भी कई लोग देर से विवाह करते थे, लेकिन आज समाज में एक स्पष्ट बदलाव देखा जा रहा है और इसकी नींव पुरानी पीढ़ी ने ही रखी थी, जब उन्होंने यह तय किया कि पहले उनके बच्चे आत्मनिर्भर बनें, फिर परिवार बसाएं आज का युवा, चाहे वह लड़की हो या लड़का, पहले खुद को स्थापित करना चाहता है. आज की महंगाई और जीवनशैली में दोनों जीवनसाथियों का आर्थिक रूप से सक्षम होना आवश्यक है. ऐसे में करियर को प्राथमिकता मिलना स्वाभाविक है और इससे विवाह थोड़ी देर से होता है.
- मानस योगेन्द्र अग्रवाल, टेक्सस, अमेरिका
विवाह समय पर हो तभी जीवन में संतुलन होता है
बचपन से ही हम सब पर विदेशी संस्कृति का प्रभाव रहा है. इस कारण अच्छी हो या बुरी विदेश की हर बात हमें आकर्षक लगती है. इसके कई दुष्परिणाम हमारे समाज में देखे जा सकते हैं, जिनमें से एक यह भी है कि आज हमारे देश के अनेक युवक विवाह के बंधन में बंधना ही नहीं चाहते. उन्हें लगता है कि शादी उनके करियर में बाधा बन सकती है, जबकि यह सोच पूरी तरह सही नहीं है. हमारे जीवन में हर कार्य का एक उचित समय होता है. विवाह भी समय पर हो, तभी जीवन में संतुलन बना रहता है. सही उम्र में विवाह न हो तो उम्र बढ़ने के साथ कई समस्याएं सामने आने लगती हैं.
- मदन गोयल, पिंपरी
मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार होना जरूरी
आजकल शादियां देर से हो रही हैं, यह एक सच्चाई है. इसका मुख्य कारण यह है कि आज के युवा पहले खुद को स्थापित करना चाहते हैं. शिक्षा पूरी करना, एक स्थिर करियर बनाना और आत्मनिर्भर बनना उनकी प्राथमिकता है. वे विवाह को एक जिरमेदारी मानते हैं, जिसे निभाने के लिए भावनात्मक और मानसिक रूप से तैयार होना आवश्यक है. साथ ही अब जीवनसाथी का चयन जल्दबाजी में नहीं किया जाता. लोग समान सोच, भावनात्मक मेल और आपसी समझ को प्राथमिकता देने लगे हैं. यही कारण है कि आज की शादियां पहले की तरह सामाजिक दबाव में नहीं, बल्कि समझदारी और विचार के साथ हो रही हैं.
- डॉ. प्रदीपकुमार अग्रवाल, वाकड़
युवा पीढ़ी अधिक प्रैक्टिकल और आत्मकेंद्रित
आज की युवा पीढ़ी अधिक प्रैक्टिकल और आत्मकेंद्रित होती जा रही है. वे केवल अपने जीवन और स्वतंत्रता की ही चिंता करते हैं. रिश्तों का महत्व उनके लिए धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. अयादातर युवा आज सिर्फ अपने कैरियर पर फोकस करते हैं, जिससे विवाह जैसे सामाजिक बंधनों से वे दूर रहना चाहते हैं. उन्हें लगता है कि हमारी संस्कृति और परंपराएं उन पर कोई बोझ हैं, कोई दबाव हैं, जबकि सच्चाई यह है कि यही परंपराएँ हमारे समाज को जोड़कर रखती हैं. आज फ्रीडम के नाम पर जब चाहे किसी रिश्ते में बंध जाना और जब चाहे बाहर निकल जाना एक चलन बनता जा रहा है. लेकिन यह हमारी हिंदू संस्कृति नहीं है. -किमया जयेश प्यारमवार, नागपुर
कैरियर के चक्कर में शादी की उम्र निकल जाती है
आज के युवाओं में विवाह को लेकर हिचकिचाहट बढ़ती जा रही है. इसका एक कारण यह है कि पढ़ाई और कैरियर की दौड़ में उनकी उम्र निकल जाती है. जब वे अच्छी नौकरी पाकर दूसरे शहर या विदेश चले जाते हैं, तो विवाह की प्राथमिकता और भी पीछे छूट जाती है. लड़कियां भी देर से शादी करना चाहती हैं, क्योंकि वे पढ़- लिखकर जीवन से अधिक अपेक्षाएं पाल लेती हैं. उनके माता-पिता उन्हें यह समझा नहीं पाते कि जब उन्होंने विवाह किया था, तब उनके पास भी बहुत कुछ नहीं था. उन्होंने भी 25- 30 वर्षों की मेहनत से सब अर्जित किया. सही विवाह-योग्य उम्र लगभग 25 वर्ष तक होती है इस समय यदि सही निर्णय न लिया जाए तो आगे चलकर अनेक परेशानियां शुरू हो सकती हैं.हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों, चाहे वे बेटे हों या बेटियां उनको पारिवारिक जिम्मेदारियों का महत्व समझाएं.
- सुषमा सुरेंद्र गुप्ता, एनआईबीएम रोड, पुणे
बच्चों को स्वतंत्रता का सही अर्थ समझाएं
यदि हमारे युवा इस बात को समझें कि स्वतंत्र सोच रखना और अपने मूल्यों को बनाए रखना एक साथ संभव है, तो जीवन कहीं अधिक संतुलित और सार्थक बन सकता है. आधुनिक सोच होना कोई दोष नहीं, लेकिन हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भूल जाना निश्चित ही चिंता का विषय है. हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों को स्वतंत्रता का सही अर्थ समझाएं जहां आत्मनिर्भरता हो, पर साथ ही रिश्तों की अहमियत और मूल्यों की समझ भी बनी रहे.
- निधि विशाल अग्रवाल, निगड़ी
कुंटुंब व्यवस्था बनाए रखने विवाह संस्कार अनिवार्य
कुटुंब व्यवस्था को बनाए रखने के लिए हमें अपने जीवन के विवाह संस्कार को कभी नहीं भूलना चाहिए. लेकिन बदलते समय के साथ समाज और जीवनशैली में तेजी से बदलाव आ रहे हैं. पति-पत्नी का रिश्ता अब पहले की तरह सहज और पारंपरिक न रहकर, अधिक प्रैक्टिकल हो गया है. आज दोनों पक्षों की अपेक्षाएं, सोच-विचार, मूल्य और आदतें अलग-अलग होती हैं. अगर परिवार में आर्थिक तंगी हो तो यह रिश्ता और भी कई कसौटियों से गुजरता है. ऐसे में अगर पति-पत्नी एक-दूसरे को भावनात्मक सहारा दें, तो जीवन आनंददायक हो सकता है. लेकिन व्यस्त दिनचर्या, भागदौड़ भरा जीवन और आपसी संवाद की कमी के कारण, चाह कर भी लोग एक-दूसरे को पर्याप्त समय नहीं दे पाते और यही दूरी रिश्तों को कमजोर कर देती है.
-मीना अशोक अग्रवाल, निगड़ी