शिवाजीनगर, 29 मई (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
आर्थोपेडिक उपचार में प्रगति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पुणे के सुप्रसिद्ध संचेती अस्पताल के बोन बैंक का उपयोग अब ट्रॉमा और कुछ हड्डी विकारों वाले रोगियों के उपचार में किया जा रहा है. यह जानकारी गुरुवार (30 मई) को अस्पताल में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी गई. इस अवसर पर संचेती अस्पताल के संस्थापक डॉ. के. एच. संचेती, अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉ. पराग संचेती, ट्रॉमा विभाग के प्रमुख डॉ. चेतन प्रधान, बोन बैंक के प्रमुख और स्पाइन सर्जन डॉ. प्रमोद भिलारे, ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. अभिनव भुते और डॉ. साहिल संघवी मौजूद थे. इस अवधारणा के बारे में अधिक जानकारी देते हुए डॉ. प्रमोद भिलारे ने कहा कि बोन बैंक का कार्य ब्लड बैंक के समान है. इसमें डोनर से कुछ सर्जरी के दौरान बेकार हो जाने वाली हड्डियों के हिस्से प्राप्त कर उन्हें स्टोर किया जाता है. इसके लिए सबसे पहले डोनर की सख्त मापदंडों के अनुसार जांच की जाती है. उन्होंने बताया कि फिलहाल संचेती अस्पताल के बोन बैंक में प्राप्त हड्डियों को माइनस 86 डिग्री के कम तापमान पर करीब 6 महीने तक स्टोर किया जाता है. खासकर कूल्हे के गठिया, एवैस्कुलर नेक्रोसिस, नेक ऑफ फीमर फ्रैक्चर (जांघ की लंबी हड्डी का फ्रैक्चर) के मामलों में कूल्हे या घुटने के जोड़ों की सर्जरी कराने वाले आमतौर पर डोनर बन सकते हैं. डॉ. साहिल संघवी ने बताया कि निकाली गई ये हड्डियां या उनके हिस्से कई पुनर्निर्माण प्रक्रियाओं के लिए उपयोगी हो सकते हैं. खास तौर पर ट्रॉमा से होने वाले हड्डी विकारों में या हड्डियों से ट्यूमर निकालने की सर्जरी में. इससे डोनर में जटिलताओं की संभावना भी कम होती है और अच्छे परिणाम देखने को मिलते हैं. डॉ. चेतन प्रधान ने बताया कि यह बोन बैंक वेिशस्तरीय है और इससे अब तक 100 से ज्यादा मरीज लाभान्वित हो चुके हैं. फिलहाल यह बोन बैंक संचेती अस्पताल के मरीजों के लिए उपलब्ध है. जब पूरा सिस्टम ब्लड बैंक की तरह सुचारू हो जाएगा, तो हम इस सेवा को अन्य अस्पतालों में भी उपलब्ध कराने पर विचार करेंगे.
डॉक्टरों ने बताया कि ...
संचेती अस्पताल के बोन बैंक का पंजीकरण 10 जुलाई 2024 को मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 के तहत किया गया था. अब तक जीवित दानकर्ताओं द्वारा दान की गई 100 हड्डियों को फ्रीज किया जा चुका है और इनका उपयोग जरूरतमंद मरीजों के लिए किया जा रहा है. फिलहाल यह उन मरीजों से प्राप्त किया जा रहा है, जिन्होंने कूल्हे और घुटने के आसपास बोन ग्राफ्टिंग सर्जरी करवाई है. कभी-कभी ऐसी सर्जरी में इन हड्डियों को हटाना पड़ता है. दानकर्ता की पात्रता निर्धारित करने के लिए बोन बायोप्सी जैसे विभिन्न परीक्षण किए जाते हैं और प्रक्रियाओं के अनुसार दानकर्ता से सहमति ली जाती है. हड्डियों की गुणवत्ता और किसी भी संक्रमण की अनुपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए ये विभिन्न परीक्षण किए जाते हैं. दानकर्ता के योग्य होने पर इन हड्डियों को निकालकर फ्रीज कर दिया जाता है.