शिवाजीनगर, 10 जून (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क) ऑनलाइन एप्स से मिल रही प्रतिस्पर्धा के कारण पारंपरिक किराना दुकानें संकट में हैं. कई परिवार इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि ऑनलाइन खरीदारी करें या नजदीकी किराना दुकान पर जाएं. हालांकि इससे एक ओर किराना दुकान मालिकों के मुनाफे का गणित बिगड़ा है, वहीं कुछ दुकानदारोंने जीवित रहने के लिए बदलाव स्वीकार कर लिए हैं. चूंकि कारोबार का आकार छोटा है, इसलिए इसमें बहुत बड़े बदलाव नहीं किए जा सकते. इससे प्रतिस्पर्धा भी सीमित हो जाती है. ऐसे में किराना दुकानों के सामने अस्तित्व का सवाल खड़ा हो गया है. बड़े शहरों में ऐसी व्यवस्था काम करने लगी है जिससे 10 मिनट में कोई भी सामान आपके घर तक पहुंचा दिया जाता है. इनका काम ऐप के जरिए होता है. ग्राहकों के लिए यह बहुत बड़ी सुविधा है. हालांकि, इससे गली-मोहल्लों और सोसायटी के गेट पर स्थित पारंपरिक छोटे किराना स्टोर्स के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया है. जब से कुछ ऐसे ऐप बने हैं जो तुरंत होम डिलीवरी देते हैं, तब से पारंपरिक किराना स्टोर्स के ग्राहक कम हो रहे हैं. दूसरी तरफ, उन स्टोर्स का टर्नओवर कम हो रहा है. कम आय के कारण ये दुकानदार बड़े सुधार नहीं कर सकते, ऐप बनाकर व्यापार नहीं कर सकते, कामगारों की संख्या नहीं बढ़ा सकते, ऐसी समस्याओं और संकटों की श्रृंखला का सामना किराना स्टोर मालिकों को करना पड़ रहा है. कुछ दुकानदारों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में हमारे कारोबार में 30 से 35 प्रतिशत तक की गिरावट आई है. खास तौर पर ऑनलाइन एप्स ने हमारे कारोबार पर एक तरह से हमला किया है. हम ऑनलाइन एप्स की तरह ग्राहकों को सुविधाएं, कीमतें, तुरंत होम डिलीवरी और ऑफर नहीं दे सकते. हम छोटे दुकानदार तेजी से बढ़ रहे जैप्टो, ब्लिंकिट, स्विगी, इंस्टामार्ट जैसे एप्स से मुकाबला नहीं कर सकते. किराना दुकान मालिकों का कहना है पहले छात्र, मजदूर वर्ग, गृहणियां हमारी दुकान पर किराना सामान खरीदने आती थीं. अब वे ऑनलाइन ऐसा सामान मंगवाते हैं. हम किराना सामान के साथ सब्जी या फल नहीं रखते. नतीजा, किराना सामान खरीदने आने वाले ग्राहकों की संख्या में कमी आई है. कुल मिलाकर दुकान में रिटेल सामान की मात्र 10 प्रतिशत बिक्री होती है. किराना दुकानें पहले से ही कम मुनाफा कमाती हैं. वह मुनाफा और भी कम हो गया है. हम जो मुनाफा कमाते हैं और ऐप पर बिकने वाले सामान पर मिलने वाले मार्जिन में भी भारी अंतर होता है. कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारी खरीद कीमत उस कीमत से अधिक होती है जिस पर कंपनियां सामान बेच रही होती हैं. नतीजा, हमारे पास आने वाले ग्राहकों की संख्या में कमी आ रही है.
दुकानदारों का ग्राहकों के साथ पीढ़ीगत रिश्ता कुछ ग्राहक पारंपरिक किराना दुकानों पर जाने का फैसला इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें इसकी आदत होती है. कई दुकानदारों का अपने ग्राहकों के साथ पीढ़ीगत रिश्ता होता है. उनकी स्थानीय पहचान, रिश्ते, आपसी वेिशास और एक-दूसरे के साथ भावनात्मक जुड़ाव ही इन किराना दुकानदारों का असली आधार है. हालांकि, प्रतिस्पर्धा को देखते हुए यह सवाल है कि यह कब तक चलेगा. क्योंकि, नई पीढ़ी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़ रही है. यह संभावना काफी कम है कि वह पीढ़ी दशकों तक उसी पारंपरिक किराना दुकानों पर जाएगी.
रिटेल व्यापारियों को कुछ बदलाव अपनाने चाहिए
भारत में ऑनलाइन रिटेल कंपनिया जैसे अमेजॉन, स्विगी, ब्लिंकिट, जोमेटो और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनी के बढ़ते प्रभाव से बचने और प्रतिस्पर्धा करने के लिए स्थानीय रिटेल व्यापारियों को कुछ बदलाव अपनाने चाहिए. उन्हें डिजिटल उपस्थिति बनानी होगी. जैसे गूगल माई बिजनेस पर दुकान को लिस्ट करना होगा. साथ ही सोशल मिडिया प्लेटफॉर्म पर दुकान और प्रोडक्ट्स का प्रमोशन करना पड़ेगा. एक सिंपल वाट्सएप पर कैटलॉग बनाएं ताकि ग्राहक ऑनलाइन ऑर्डर कर सकें. जिसमे रोज कोई न कोई नया प्रोडक्ट एवं ऑफर का ऐलान करें. लोकल डिलीवरी सर्विस देनी होगी. आसपास के क्षेत्र में 10-15 मिनिट के अंदर डिलीवरी की सुविधा देंगे तो ग्राहक टिके रहेंगे. ऐसी सर्विस देने के लिए कुछ लोकल लोगों को साथ में लेकर या खुद की डिलीवरी टीम के साथ काम करें. ग्राहक को यह बताएं कि आपके यहां तेज और भरोसेमंद डिलीवरी है. जहां और जितनी हो सके वहां, कीमत और ऑफर्स में ग्राहकों को ख़ुश रखने के बारे में सोचना चाहिये. समय-समय पर कंपनी से प्रमोशन लेकर ग्राहक को डिस्काउंट्स, कूपन ऐसी ऑफर्स दें. बाय वन गेट वन या फिर फेस्टिव सेल जैसे ऑफर छोटे स्तर पर भी काफी असर डाल सकते हैं. ग्राहकों से व्यक्तिगत संबंध बनाने से भी काफी फायदा होगा. जिसमें, पुराने ग्राहकों को नाम से जानें, उनके खास दिनों (जैसे जन्मदिन) पर मैसेज भेजें. लॉयल्टी कार्ड/पॉइंट सिस्टम लागू करें ताकि ग्राहक बार-बार आएं. अगर ग्राहक पुराना है और आप उसे जानते हो तो उसका खाता खोले और महीने में एक साथ चालम तारीख को पैसे जमा करवाएं. लोकल विशेषता पर ध्यान दें. यदि आपके पास लोकल/घरेलू प्रोडक्ट्स हैं तो उन्हें हाइलाइट करें. जो वस्तुएं ऑनलाइन मार्केटिंगवाले संभवता कम बेचते हैं, ऐसे प्रोडक्ट पर जादा ध्यान दें और ग्राहकों से जुड़े रहें सेवा में गुणवत्ता और भरोसेमंदी बनाए रखें. खराब प्रोडक्ट पर तुरंत एक्सचेंज या रिफंड देना भी संभव है. ग्राहक की शिकायत का तुरंत समाधान करें. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ऐसीही सुविधाओं के बल पर टिके हैं. चडचए स्कीम और डिजिटल इंडिया का लाभ उठाना चाहिए. भारत सरकार की ई-कॉमर्स नीति और एमएसएमई योजनाओं, मुद्रा लोन का फायदा लें.
- विकास मुंदडा, पुणे जिला अध्यक्ष, कैट
विभिन्न योजनाएं शुरू करना और कानून में बदलाव जरूरी
वर्तमान परिस्थिति में ई-कॉमर्स/क्विक कॉमर्स/ ऑनलाइन कंपनियों की गलत व्यापारिक नीतियों का स्थानीय दुकानदारों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है. पुणे शहर के आसपास के उपनगरों में करीब 25 हजार किराना/ग्रॉसरी/फूड मॉल/सुपरमार्केट/डिपार्टमेंटल स्टोर हैं. उनके व्यापार पर निश्चित रूप से इसका असर पड़ रहा है. व्यापार में करीब 10% की कमी और अन्य खर्चों में बढ़ोतरी के कारण कुछ दुकानें बंद हो रही हैं. हम अपने संगठन के माध्यम से स्थानीय व्यापार को बनाए रखने, व्यापार को बढ़ाने और ग्राहक हमारे पास कैसे आएंगे, इसके लिए विभिन्न गतिविधियों और कार्यक्रमों को लागू कर रहे हैं. इनमें लकी ड्रा योजना/ऑनलाइन व्यापार शिक्षा/होम डिलीवरी/एक साथ सामान खरीदना/ग्राहकों के लिए विभिन्न योजनाएं शामिल हैं. साथ ही स्थानीय भारतीय (स्वदेशी) वस्तुओं को प्राथमिकता देकर जागरूकता पैदा की जा रही है. स्वदेशी जागरण मंच, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत, ग्राहक राजा संगठन, हिंदू जनजागरण समिति और सनातन संस्था भी इस कार्य में सहयोग करती नजर आ रही हैं. हम संगठन के माध्यम से ऑनलाइन व्यापार कैसे करें, सेवा कैसे प्रदान करें, कम समय में होम डिलीवरी कैसे करें, डिजिटल मार्केटिंग, शेयरिंग व्यापार, आउटसोर्स व्यापार, नेटवर्किंग व्यापार पर मार्गदर्शन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. राष्ट्रीय संगठन कैट के माध्यम से इस संबंध में केंद्र सरकार के साथ नियमित चर्चा चल रही है. इसके साथ ही स्थानीय विनिर्माण उद्यमियों और रिटेल विक्रेताओं को बनाए रखने के लिए सरकार को पहल करना बहुत जरूरी है. इसके लिए एक अलग तंत्र शुरू किया जाना चाहिए. व्यापारियों और व्यापार के अस्तित्व के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू करना और कानून में कुछ बदलाव करना बेहद जरूरी है. देश में बहुत सारा रोजगार छोटे व्यवसायों पर निर्भर करता है. अगर यही स्थिति जारी रही तो बेरोजगारी बढ़ेगी. अकेले पुणे शहर में अन्य सभी प्रकार के छोटे और बड़े व्यापारियों की संख्या को देखते हुए, लगभग 4 से 5 लाख परिवार उन पर निर्भर हैं. इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है.
- सचिन निवंगुणे, संस्थापक अध्यक्ष, पुणे जिला रिटेल व्यापारी संघ, (9763082353)
ई-कॉमर्स वाली अनियंत्रित नीतियों में सुधार आवश्यक
विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए जो आज डिजिटलाइजेशन की होड़ मची हुई है, उसमें छोटे रिटेल व्यापारियों की नींव लगभग डगमगा रही है. इसका एकमात्र कारण है ऑनलाइन, ई-कॉमर्स व्यापार में सक्रिय 4 से 5 कंपनियां. जिस भारत देश की अर्थव्यवस्था को 1947 में आजादी के बाद खड़े करने में रिटेल छोटे व्यापारियों ने अपना खून-पसीना बहाया और कड़े परिश्रम से भारत की आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी के रूप में काम किया, आज वह रिटेल व्यापारी भयंकर स्थिति में फंस चुका है. इसका एक ही कारण है, सरकार की ई-कॉमर्स वाली अनियंत्रित नीतियां. एक ओर सरकार लोगों को विकसित भारत का सपना दिखा रही है और दूसरी और चार से पांच देश के बड़े व्यापारी अपनी हुकूमत कायम करने के लिए छोटे रिटेल व्यापारियों को एक प्रकार से त्रासदी में डाल रहे हैं. रोजमर्रा की चीजें घाटे में बेचकर भारत के रिटेल व्यापार को खत्म करने की साजिश बुनी जा रही है. यह साफ-साफ दिख रहा है कि सरकार नहीं चाहती कि इन कंपनियों पर वह कोई नियंत्रण करें. जिस महाकाय गती से ई-कॉमर्स भारत मैं बढ़ता जा रहा है उसे देखकर तो ऐसे ही लगता है कि आने वाले 5-10 साल में छोटे व्यापारी पूरी तरह से विलुप्त हो जाएंगे. समय रहते अगर इसमें इसमें सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो करोड़ों की संख्या में परिवार बर्बादी की ओर धकेल दिए जाएंगे. आपको अगर हमारे विरुद्ध में व्यापार करना है तो नीतिमत्ता और तत्वों पर कीजिए. बड़ी कंपनियों की मंशा हमेशा नजर आ रही है कि यह छोटे व्यापारियों को समाप्त कर कर अकेले ही भारत की रिटेल चेन पर कब्जा करना चाहते हैं. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि आज विदेश में जैसे बड़े-बड़े देश अमेरिका, रूस, स्विट्जरलैंड में यही स्थिति है. वहां पर गिनी-चुनी कंपनियां ही राज करती है और व्यापार करती है. भारत एक बड़ी आबादी का देश है. जिसमें रिटेल व्यापारी का बहुत बड़ा महत्व है. समय रहते अगर रिटेल व्यापारियों के लिए कुछ नहीं किया गया, तो आने वाले कुछ सालों में छोटे रिटर्न व्यापारी इस देश की अर्थव्यवस्था से विलुप्त हो जाएंगे.
- सुनील गेहलोत, बालाजी ट्रेडिंग कंपनी. कोथरूड.(7387297905)