प्रश्न : मैं बहुत बेचैन हूं और मेरे पास इतनी बेचैनी है कि सारी शक्ति इस बेचैनी में ही समाप्त हाे जाती है. ताे मैं इस बेचैनी का क्या उपयाेग कर सकता हूं और इस बेचैनी का कारण क्या है?
मनुष्य का हाेना ही बेचैनी है. कम या ज्यादा, लेकिन ऐसा मनुष्य खाेजना कठिन है, जाे बेचैन न हाे. मनुष्य बेचैन हाेगा ही.नीत्शे ने कहा है कि मनुष्य ऐसे है, जैसे एक पुल, दाे किनाराें पर टिका हुआ, बीच में अधर लटका हुआ.पीछे पशु का जगत है और आगे परमात्मा का आयाम और मनुष्य बीच में लटका हुआ है. वह पशु भी नहीं है और अभी परमात्मा भी नहीं हाे गया है. पशु हाेने से थाेड़ा ऊपर उठ आया है. लेकिन उसकी जड़ें पशुता में ैली हुई हैं. और किसी भी मूर्च्छा के क्षण में वह वापस पशु हाे जाता है. और आगे विराट परमात्मा की संभावना है.उसमें से दिव्यता के ूल खिल सकते हैं.भविष्य है; वह भविष्य भी खींचता है. अतीत खींचता है, क्याेंकि अतीत में हमारा अनुभव है, हमारी जड़ें हैं.और भविष्य भी खींचता है, क्याेंकि भविष्य में हमारी संभावना और आशा है. और मनुष्य भविष्य और अतीत के बीच में एक तनाव है.काेई जानवर इतना बेचैन नहीं है, जितना मनुष्य.
पशुओं की आंखाें में झांकें; काेई बेचैनी नहीं है, काेई अशांति नहीं है. पशु अपने हाेने से राजी है. कुत्ता कुत्ता है. बिल्ली बिल्ली है. शेर शेर है. और आप किसी शेर से यह नहीं कह सकते कि तू कुछ कम शेर है या किसी कुत्ते से भी नहीं कह सकते कि तू कुछ कम कुत्ता है. लेकिन आदमी से आप कह सकते हैं कि तू कुछ कम आदमी है.सभी आदमी बराबर आदमी नहीं हैं, लेकिन सभी कुत्ते बराबर कुत्ते हैं. कुत्ता जन्म से ही कुत्ता है. आदमी जन्म से केवल एक बीज है. हाे भी सकता है, न भी हाे.आदमी काे छाेडकर सभी पशु पूरे के पूरे पैदा हाेते हैं; आदमी अधूरा है. उस अधूरे में बेचैनी है. और पूरे हाेने के दाे रास्ते हैं. या ताे आदमी वापस नीचे गिरकर पशु हाे जाए ताे थाेड़ी राहत मिलती है.
क्राेध में आपकाे जाे राहत मिलती है, हिंसा में जाे राहत मिलती है, संभाेग में जाे राहत मिलती है, शराब में जाे राहत मिलती है, वह नीचे पशु हाे जाने की राहत है. आप वापस गिरकर यह खयाल छाेड़ देते हैं कि कुछ हाेना है. आप राजी हाे जाते हैं, नीचे गिरकर. लेकिन वह राहत बहुत थाेड़ी देर ही टिक सकती है. वह राहत इसलिए थाेड़ी देर ही टिक सकती है, क्याेंकि पीछे गिरने का प्रकृति में काेई उपाय नहीं है. काेई बूढ़ा बच्चा नहीं हाे सकता वापस. थाेड़ी देर काे अपने काे भुला सकता है; बच्चाें के खिलाैनाें में भी डूब सकता है थाेड़ी देर काे, गुड्डागुड्डी का विवाह भी रचा सकता है. और थाेड़ी देर काे शायद भूल भी जाए कि मैं का हूं. लेकिन यह भूलना ही है.काेई बूढ़ा वापस बच्चा नहीं हाे सकता.और यह भूलना कितनी देर चलेगा? यह विस्मरण कितनी देर चलेगा? यह थाेड़ी देर में टूट जाएगा. असलियत ज्यादा देर तक नहीं भुलाई जा सकती. और जैसे ही यह टूटेगा, बूढ़ा वापस बूढ़ा हाे जाएगा.
आदमी पशु हाे सकता है. आप क्राेध में थाेड़ी देर मजा ले सकते हैं, लेकिन कितनी देर? और जैसे ही क्राेध के बाहर आएंगे, पश्चात्ताप शुरू हाे जाएगा. आप शराब पीककर थाेड़ी देर काे भूल सकते हैं, लेकिन कितनी देर? शराब के बाहर आएंगे और पश्चात्ताप शुरू हाे जाएगा.जितनी भी मूर्च्छा की विधियां हैं, वे पशु हाेने के मार्ग हैं. आदमी, आदमी जैसा है, वैसा रहे, ताे बेचैन है. या ताे पीछे गिरे, ताे चैन मिलता है. लेकिन चैन क्षणभर का ही हाेता है. जिनकाे हम सुख कहते हैं, वे पशुता के सुख हैं. और इसलिए सुख क्षणभंगुर हाेता है. क्याेंकि हम पशु सदा के लिए नहीं हाे सकते.पीछे लाैटने का काेई उपाय नहीं है. आगे जाने का ही एकमात्र उपाय है. और दूसरा उपाय है कि आदमी बेचैनी के बाहर हाे जाए कि वह परमात्मा के साथ अपने काे एक हाेना जान ले. उसके भीतर जाे छिपा है, वह पूरा प्रकट हाे जाए. मनुष्य अपना भविष्य बन जाए.