नए शहर बसाने के लिए आठ गुना निवेश की जरूरत

    02-Jun-2025
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बात ताे चुभेगी
 

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आंध्र प्रदेश की नई राजधानी अमरावती के विकास में केंद्र सरकार का निवेश खास है. यह कदम नए नगराें के विकास काे बढ़ावा देने में व्यापक राष्ट्रीय हित की पुष्टि करता है. यह जाहिर बात है कि नए नियाेजित नगराें की जरूरत और राष्ट्रीय विकास में इन नगराें की भूमिका की ओर लाेगाें का कम ही ध्यान जाता है.नए शहराें की तलाश की ओर ध्यान न जाने के पीछे कुछ वजहें हैं. जैसे, चल रहे शहरी अभियानाें और याेजनाओं पर लाेगाें का विश्वास बना रहता है. लाेग साेचते हैं कि उनके पुराने शहर में ही सब कुछ ठीक हाे जाएगा. सरकारें स्थानीय स्तर पर जल, स्वच्छता, ऊर्जा, आवास, परिवहन, कचरा प्रबंधन और और शहरी आजीविका में निवेश के माध्यम से माैजूदा शहराें में जीवन काे सुखमय बनाने के प्रयास करती रहती हैं.
 
हाल ही में घाेषित नगरीय चुनाैती निधि (अर्बन चैलेंज फंड) और रचनात्मक पुनर्विकास दृष्टिकाेण से अगर देखें, ताे शहराें के विकास के प्रति सरकारें प्रतिबद्ध दिखती हैं. ऐसे में, सवाल है कि भारत में नए या हरे-भरे या ग्रीनफील्ड शहर की भूमिका और स्थिति ्नया है? अपने देश में साल 2024 में 12 नए औद्याेगिक स्मार्ट शहराें की घाेषणा की गई थी. अगर हम गाैर करें, ताे अनेक शहराें व उनके आसपास भूमि अधिग्रहण का काम चल रहा है. छाेटे-छाेटे नए शहराें या टाउनशिप की भरमार है.उदाहरण के लिए, आमबी वैली, लवासा और नया रायपुर काे हम देख सकते हैं, लेकिन अगर हम ईमानदारी से देखें ताे ये नए नगर अधूरी इच्छाओं के उजाड़ रूप हैं. कई नए शहरक्षेत्र ताे ऐसे हैं, जिनका आर्थिक याेगदान कुछ भी नहीं है, लेकिन वहां जमीन के भाव आसमान चढ़ते रहते हैं.
 
इस बीच, श्री सिटी जैसे विशेष आर्थिक क्षेत्र भी हैं, जाे निवेश आकर्षित कर रहे हैं. इसी तरह, जेवर और नवी मुंबई जैसे नए क्षेत्र हवाई मार्ग और अन्य माध्यमाें से पूरी तरह जुड़ रहे हैं, जिससे यहां शहर के तेजी से बढ़ने व विकसित हाेने की संभावना है. वैसे, ये सभी शहर पुराने बड़े शहराें के उपग्रह की तरह हैं.अभी काेई नया शहर कहीं जंगल में नहीं बसाया जा रहा है. जाे शहर बसाए जा रहे हैं, किसानाें से कृषि भूमि लेकर बसाए जा रहे हैं. ऐसी ही काेशिश अमरावती में भी हुई है हमें सावधान रहना चाहिए कि किसी शहर का अनियाेजित विस्तार समाज में स्वार्थ की भावना काे जन्म देता है: यहां बसने वाले लाेग भूजल का दाेहन करने लगते हैं, कचरे काे कहीं भी फेंक देते हैं, टै्नस या शुल्काें का भुगतान किए बगैर सब्सिडी का पूरा आनंद लेना चाहते हैं एक और बात गाैर करने की है कि जब नया शहर किसी पुराने से पाेषण लेता है, ताे वह यह भी चाहता है कि उसके आसपास पुराने शहर या गांव का कुछ भी शेष न रहे.
 
यहां अच्छी नागरिकता का विचार ढेर हाे जाता है, जबकि यह विचार शहराें काे जिंदा रखने के लिए जरूरी है.आज भारत काे उभरते नए या ग्रीनफील्ड नगराें और लगातार फैलते पुराने या ब्राउनफील्ड नगराें की मिली-जुली श्नित से लाभ उठाना चाहिए. सवाल यह कि शहरीकरण के लिए काेई राष्ट्रीय याेजना क्यों माैजूद नहीं है? इसे ठीक से समझना हाेगा. शहर विकास राज्याें काे साैंपा गया विषय है और केंद्र सरकार अपनी सीमा से परे जाकर शहर विकसित करना नहीं चाहती है. हालांकि, अब भारत इस तरह की सीमा, अनिच्छा या हिंचक काे बर्दाश्त नहीं कर सकता. देश भर में शहरीकरण के प्रबंधन के लिए एक व्यापक याेजना बनाने की जरूरत है, जिसमें राज्याें की पूरी भागीदारी हाे. यह देश के लिए एक प्र्रेरक एजेंडा हाे सकता है.
 
कई कारण संकेत कर रहे हैं कि नगर विकास की महत्वाकांक्षी याेजना के लिए यह सही समय है. पहला कारण, पिछले 10 वर्ष में हमने शहर विकास के क्षेत्र में जाे भी अच्छा किया है, उसे अन्य जगहाें पर दाेहराने की जरूरत है. ऐसी व्यापक नगर याेजना की जरूरत है जाे शहराें काे समावेशी, सुरक्षित और सुविधा संपन्न बनाए. ये बातें काेई शब्दजाल नहीं हैं, ये शहराें की जरूरत हैं.
दूसरा, गति श्नित याेजना के विस्तार की जरूरत महसूस की गई है. वादा किया गया है कि इसका जल्द ही निजी क्षेत्र में भी विस्तार कर दिया जाएगा. इससे गांवाें और शहराें के बीच की आर्थिक विषमता काे दूर करने में मदद मिलेगी. गति श्नित के जरिये भी नगर विकास संभव हाे जाएगा.तीसरा, क्षेत्रीय विकास का दाेहन करने की कला राष्ट्रीय ग्रामीण मिशन, आकांक्षी जिला कार्यक्रम और क्षेत्रीय याेजनाओं की बढ़ती संख्या में साफ झलकती है.
 
चाैथा कारण सबसे महत्वपूर्ण है हमारे दैनिक समाचारपत्र नगर नियाेजन की नाकामी और नगराें के अकुशल प्रबंधन के सबूताें से अटे पड़े हैं. लाेग इस बात से अनजान हैं कि नगराें का प्रबंधन बहुत मुश्किल है. तेजी से फैल रहे अनियाेजित नगराें का प्रबंधन ताे और भी कठिन है. शहराें का फैलाव प्रबंधन के बाेझ काे बढ़ाते चला जा रहा है. हमारे पुराने शहर अपनी विरासत के बुनियादी ढांचे काे भी बनाए रखने में नाकाम हाे रहे हैं.शहर किसी ज्यादा हठी बच्चे की तरह ही अनुशासन की सीमाओं काे लांघते हुए बढ़ रहे हैं. तय मानिए, हमें शहरी निवेश काे आठ गुना बढ़ाने की जरूरत है. पर यह भी देखना हाेगा कि आज नगराें के लिए जाे धन उपलब्ध है, उसे ठीक तरह से खर्च करने की क्षमता भी बहुत सीमित है. इसकी एक छाेटी वजह यह भी है कि हमारे शहर इस सवाल से जूझ रहे हैं कि वे अपने पुराने इलाकाें में ज्यादा खर्च करें या नए बस रहे इलाकाें पर ज्यादा ध्यान दें.
- जगन शाह (नगर नियाेजन विशेषज्ञ)