पुणे, 21 जून (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
21वीं सदी की नारी अब केवल घर की चौखट तक सीमित नहीं रही. उसने शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय, नेतृत्व और सामाजिक चेतना हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है. यह बदलाव केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरे समाज की सोच में एक बड़ा परिवर्तन है. अब वह समय नहीं रहा जब महिलाएं सिर्फ घर की देखभाल और परिवार की जिरमेदारी तक सीमित रहती थीं. आज महिलाएं आत्मनिर्भर बनकर न केवल अपने सपनों को उड़ान दे रही हैं, बल्कि अपने परिवार, समाज और देश के विकास में भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं. आत्मनिर्भरता सिर्फ एक आर्थिक स्थिति नहीं है, यह एक मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक स्थिति भी है, जो महिलाओं को आत्मवेिशास, निर्णय लेने की शक्ति और सम्मान प्रदान करती है. इस विषय पर दै.आज का आनंद के लिए प्रो. रेणु अग्रवाल ने महिलाओं से जाना कि उनके लिए आत्मनिर्भरता का क्या अर्थ है. उनके अनुभव, संघर्ष और सोच यह सब हमें यह समझाने में मदद करता है कि आज की महिला कितनी सशक्त है और उसे सिर्फ समान अवसर नहीं, समान भागीदारी की जशरत है. प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश
- प्रो. रेणु अग्रवाल (मो. 8830670849)
आत्मनिर्भर महिला होगी परिवार का मजबूत स्तंभ
आज की महिला यदि आत्मनिर्भर है तो वह परिवार के लिए एक मजबूत स्तंभ बन सकती है. पुरुष की तरह महिला भी आर्थिक रूप से सहयोग दे सकती है. समाज अब दोनों को बराबरी का दर्जा देने लगा है. महिला जब बाहर जाकर नौकरी करती है, तो यह उसके परिवार और पति के सहयोग से ही संभव हो पाता है. भले ही समाज पुरुष प्रधान रहा हो, लेकिन अब नारी शक्ति को मान्यता मिल रही है. आज के समय में महिलाओं के लिए जॉब करना केवल विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता बन गया है. आत्मनिर्भर महिलाएं ही समाज और देश को आगे ले जा सकती हैं.
- मनीषा गोयल, पिंपले गुरव
महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हों
महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने से न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होती है, बल्कि वे अपने बच्चों के लिए प्रेरणा बनती हैं. विशेष रूप से बेटियों के लिए यह एक मजबूत उदाहरण होता है. हालांकि, इसके साथ कई चुनौतियाँ भी आती हैं जैसे समय की कमी, पारिवारिक संतुलन और रिश्तों में संभावित तनाव. फिर भी आत्मनिर्भरता से आत्मवेिशास और सामाजिक सम्मान मिलता है. शादी से पहले और बाद में भी महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र रहना चाहिए. यदि संतुलन बन सके, तो नौकरी छोड़ने की आवश्यकता नहीं है.
-पूजा अग्रवाल, धानोरी
घर का काम जीवन कौशल है !
जिस परिवार में पति-पत्नी दोनों कमाते हैं और समझदारी से जीवन जीते हैं, वहां सिर्फ खर्च ही नहीं, रिश्ते भी साझा होते हैं. लेकिन समाज में केवल महिलाओं की दोहरी भूमिका की चर्चा होती है, पुरुषों की नहीं. महिलाएं घर और बाहर दोनों जगह बखूबी काम करती हैं. जबकि पुरुषों को जब घरेलू काम करने की जिम्मेदारी दी जाती है, तो वे अक्सर इसे निभा नहीं पाते. घर के काम कोई काम नहीं बल्कि जीवन कौशल है, जिसे हर किसी को सीखना चाहिए चाहे वह बेटा हो या बेटी.
-नेहा पीयूष गोयल, धानोरी, पुणे
जॉब करनेवाली महिलाओं को समाज में ज्यादा सम्मान
मुझे लगता है कि महिलाओं को शादी से पहले और बाद में भी नौकरी करनी चाहिए क्योंकि आत्मनिर्भरता बहुत जशरी है. जॉब करने वाली महिला को समाज में अधिक सम्मान मिलता है. उसका आत्मवेिशास भी अलग स्तर का होता है. बच्चे होने के बाद भी महिलाओं को जॉब नहीं छोड़ना चाहिए. आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. जॉब करने से वे अपने और अपने परिवार के सपनों को पूरा कर सकती हैं. हालांकि पुरुष प्रधान समाज अभी भी महिलाओं की चुनौतियों को पूरी तरह नहीं समझ पाता, इसलिए महिलाओं को और ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है.
-सरिता हरीश अग्रवाल, संभाजीनगर, गरखेड़ा
नौकरी करने से जीवन शैली सुधरती है !
हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे ही महिलाओं के जॉब करने के भी दो पहलू हैं. नौकरी करने से जीवनशैली सुधरती है बच्चों की अच्छी शिक्षा, अपना फ्लैट, कार और बेहतर चिकित्सा संभव होती है. अगर परिवार का समर्थन हो, तो बच्चे होने के बाद भी महिलाओं को नौकरी छोड़ने की जशरत नहीं होती. पुरुषों पर अधिक आर्थिक बोझ पड़ने से रिश्तों में तनाव बढ़ सकता है. आज 70% पुरुष कामकाजी महिलाओं की स्थिति को समझते हैं. लेकिन आर्थिक स्वतंत्रता के साथ महिलाओं में ‘मुझे किसी की जशरत नहीं' वाला भाव भी आता है. इसलिए यदि महिला जॉब और फैमिली दोनों में संतुलन बना ले तो उसका योगदान समाज के लिए अद्वितीय होगा.
- बबीता गुप्ता, छत्रपति संभाजीनगर
महिलाओं को मिले समान अवसर, तो रच सकती हैं इतिहास
महिलाएं यदि परिवार और जीवनसाथी का सहयोग प्राप्त करें, तो वे घरपि रवार, मातृत्व और करियरतीनों जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभा सकती ह्ैं. एक शिक्षित लड़की सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे परिवार के भविष्य को उज्ज्वल बनाती है. जब कोई महिला बिजनेस या नौकरी करती है, तो वह उसकी स्वतंत्र पहचान बन जाती है. आज महिलाएं अपनी मेहनत, निष्ठा और समर्पण के बल पर समाज में निरंतर प्रगति कर रही हैं. यदि उन्हें समान अवसर, सम्मान और आगे बढ़ने का मंच दिया जाए, तो वे और अधिक ऊंचाइयों तक पहुंच सकती हैं. यह न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि समाज और देश के विकास के लिए भी अत्यंत लाभकारी है.
- पूजा हरीश अग्रवाल, बिबवेवाड़ी