बात ताे चुभेगी
लाेग आज इंटरनेट, ए्नस, फेसबुक, ल्निंडइन, वाट्सएप और इंस्टाग्राम के जरिये चाैबीसाें घंटे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. इसमें भाैगाेलिक सीमाएं या जातिगत, धार्मिक व भाषायी भेदभाव कतई आड़े नहीं आते.माना यही जाता है कि इससे दुनिया करीब आ गई है! मगर ्नया वाकई हम पहले की तुलना में भावनात्मक रूप से एक-दूसरे के नजदीक आए हैं? ्नया हम दूसराें का दर्द ज्यादा महसूस करने लगे हैं? ्नया उनकी पीड़ा से द्रवित हाेते हैं? अगर ऐसा नहीं है, ताे ्नया हम सचमुच आपस में जुड़े हुए हैं? मुझे महात्मा गांधी के प्रिय गुजराती कवि नरसिंह मेहता की यह पं्नित याद आ रही है.जाे प्रत्येक संवेदनशील व्य्नित की भावना काे जाहिर करती है. वैष्णव जन ताे तेने कहिए जे,पीड़ परायी जाणे रे...
हम टीवी स्क्रीन पर कुछ तस्वीरें लगातार देखते आ रहे हैं. गाजा में इजरायली सेना बमबारी कर रही है; फिलिस्तीनी शवाें काे उठाने के लिए दाैड़ रहे हैं, जमींदाेज इमारताें के मलबे से लाशें निकाल रहे हैं, उनकाे सफेद चादराें से ढक रहे हैं, ताबूत में डाल उनकाे कब्राें में दफना रहे हैं और आसमान की ओर हाथ उठाकर अपने रब से इस मुसीबत के फाैरन खत्म हाेने की दुआ मांग रहे हैं. मगर उनकी दुआओं का असर नहीं हाे रहा और मलबे से कब्र तक का सफर मुसलसल जारी है! जिंदा बच गए मां-बाप और बीवियाें की चीख-पुकारें दर्शकाें काे नहीं झकझाेर पातीं. सभ्य दुनिया के नेताओं काे ताे बिल्कुल भी नहीं! जब भी यहां राहत और खाद्य सामग्रियाें से भरे ट्रक आते हैं, तमाम मर्द-औरताें और बच्चाें की बदहवास भीड़ उसकी तरफ दाैड़ पड़ती है.
अपने-अपने खाली कटाेरे में एक -दाे राेटी या मुठ्ठी भर अनाज पाने के लिए वे एक-दूसरे से जूझते हैं. जब हफ्ताें तक इन ट्रकाें काे यहां आने से राेक दिया जाता है, ताे खाली कटाेरे लिए हाथ बेबसी में शिथिल पड़ने लगते हैं. कई लाेग अपनी दयनीय नियति काे प्राप्त करते हैं और लगातार भूख से लड़ने के बाद आखिरकार दम ताेड दे रहे हैं. डेढ़ साल से इन दृश्याें काे देखते-देखते हम चेतना-शून्य हाे गए हैं. हमें कुछ महसूस ही नहीं हाेता. हमारी आत्मा हमें नहीं झकझाेरती. हम बस टीवी चैनल बदल देते हैं.महात्मा गांधी, जिन्हाेंने जीवन भर अहिंसा की महत्ता समझाई, आखिरकार अपने ही देशवासी की गाेलियाें के शिकार हुए थे. उनकी हत्या के बाद भी अहिंसा और सविनय अवज्ञा के उनके संदेशाें ने अमेरिका में डाॅ मार्टिन लूथर किंग जूनियर व दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला जैसे लाेगाें काे प्रेरित किया.
महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत का अंत सुनिश्चित किया, जबकि तब कहा जाता था कि ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी अस्त नहीं हाेता. गांधीजी के जीवन और उनके दर्शन ने अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदाेलन काे गति दी और दक्षिण अफ्रीका में श्वेताें के रंगभेद शासन काे खत्म करने में मदद पहुंचाई.गांधीजी ने अपने जीवन में दाे सिद्धांताें पर खासा जाेर दिया था.महान लक्ष्य महान साधनाें से ही प्राप्त किए जाने चाहिए! और, यदि आपकी आंखाें के सामने हिंसा हाे रही है और आपके पास विराेध करने की क्षमता व प्रतिराेध के साधन हैं, फिर भी आप कुछ नहीं कर रहे, ताे आप भी उस हिंसा के लिए उतने ही दाेषी हैं, जितना हिंसा करने वाला.हमास द्वारा 7 अ्नटूबर, 2023 काे इजरायल पर किया गया हमला और बेकसूर इजरायलियाें काे मारना व बंधक बनाकर ले जाना निस्संदेह एक बर्बर आतंकी हमला था, जाे निंदनीय और अक्षम्य था.
इसके दाेषियाें काे न्याय के कठघरे में खड़ा करने और बंधकाें काे छुड़ाने की मंशा समझ में आती है, मगर हमास काे सजा देने के लिए पूरी गाजा-पट्टी काे बंजर बनाने, मीलाें-मील उसे मलबे के ढेर में तब्दील करने और एक अंतहीन कब्रिस्तान में बदलने की इजाजत नहीं दी जा सकती! ्नया 54,000 फिलिस्तीनियाें की हत्या काे जायज ठहराया जा सकता है, जिनमें 20,000 से अधिक बच्चे भी हैं? हमास ने जाे किया, वह गलत था. मगर इजरायल जाे कर रहा है, वह उससे हजाराें गुना बड़ी गलती है यह किसी नरसंहार से कम नहीं.्नया जान-बूझकर हजाराें नागरिकाें काे भूखा रखना सबसे घिनाैना मानवाधिकार उल्लंघन नहीं हैं?मगर दुनिया भर के नेता फिलिस्तीन मसले पर अपनी आंखाें मूंद लेते हैं, जबकि वे मानवाधिकाराें की रक्षा, राष्ट्राें की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर हमले का विराेध करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते रहते हैं.
इजरायल जाे कुछ कर रहा है, उसमें उन्हें कुछ भी गलत नहीं लग रहा. उन्हाेंने जैसे खुद काे असहाय तमाशबीन बना रखा है. अमेरिका द्वारा इजरायल काे राजनीतिक, आर्थिक व सैन्य समर्थन के साथ जाे चाहे कर सकने की छूट देना काेई रहस्य नहीं है. अमेरिकी राष्ट्रपति की नजराें में इजरायल कुछ गलत नहीं कर सकता. फिलिस्तीनियाें की जान ताे उनके लिए काेई मायने ही नहीं रखती. असल में, फिलिस्तीनी अमेरिका के चुनाव नतीजाें काे उस तरह नहीं बदल सकते. जिस तरह से इजरायल की लाॅबी कर सकती हैं.अरब नेता भी ढेर सारी सहानुभूति दिखाते हैं और फिलिस्तीनियाें की हिमायत में तमाम बयान भी जारी करते हैं, लेकिन वे असहाय गाजावासियाें पर हमले रुकवाने के लिए एकजुट हाेकर अमेरिका पर दबाव नहीं डालते. अमेरिकी राष्ट्रपति डाेनाल्ड ट्रंप की खाड़ी की हालिया यात्रा के दाैरान एक देश के नेता ने लैवेंडर रंग का कालीन बिछवाया, ताे दूसरे ने एक विमान भेंट की. उन्हाेंने 600 अरब डाॅलर के निवेश का समझाैता भी किया.
मगर गाजा में फिलिस्तीनियाें पर बमवारी राेकने और लंबे समय से अटके दाे देश के सिद्धांत काे लागू करने की समयबद्ध कार्य याेजना की सामूहिक मांग करने में वे विफल रहे.कटु सच्चाई यही है, फलस्तीनी हथियाराें से कभी इजरायल काे नहीं हरा सकते. अमेरिका और प्रमुख पश्चिमी देश, यहां तक कि अरब व खाड़ी के नेता भी उनकी जान नहीं बचा पाएंगे. इसीलिए, गांधी के मार्ग पर चलते हुए क्यों न सभी फिलिस्तीनी पुरुष, महिला व बच्चे गाजा और पश्चिमी तट से पूरी तरह निहत्थे हाेकर बाहर निकलें और इजरायलियाें से कहें कि वे उनकाे मार दें. इजरायली बमवारी में टुकड़े-टुकड़े हाेने की तुलना में अपनी भूमि और अधिकाराें के लिए गांधीवादी तरीके से शहीद हाेना उनके लिए कहीं अधिक सम्मानजनक हाेगा. मगर इस साहसी मार्ग पर चलने से पहले हमास काे बिना शर्त तमाम बंधकाें काे छाेड़ देना चाहिए.
- सुरेंद्र कुमार (पूर्व राजनयिक)