हाल ही में केंद्र सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक काराें के विनिर्माण काे प्राेत्साहित करने वाली नयी नीति पेश की है, जिसे लेकर व्यापक उत्सुकता है. यह नीति हालांकि 15 प्रतिशत की रियायती टैरिफ दर पर इलेक्ट्रिक काराें के आयात की भी अनुमति देती है, लेकिन आयातित काराें की कुल संख्या पर 8000 काराें की सीमा है, जिसके बाद आयात शुल्क 115 प्रतिशत तक जा सकता है. इस नीति में 35,000 डाॅलर से अधिक कीमत वाली किसी भी आयातित इलेक्ट्रिक कार पर शुल्क में कटाैती की पेशकश की गयी है, बशर्ते निर्माता तीन साल के भीतर स्थानीय संयंत्र स्थापित करने के लिए कम से कम 42,500 कराेड़ रुपये या लगभग 50 कराेड़ डाॅलर का निवेश करे. पंद्रह प्रतिशत की यह रियायती ड्यूटी 35,000 डाॅलर से कम कीमत वाली काराें पर लागू नहीं हाेगी. कुल सीमा शुल्क राहत 6,484 कराेड़ रुपये तक सीमित हाेने का अनुमान है.
नयी ईवी नीति के तहत उद्यमियाें द्वारा आवेदन जमा करने के लिए जल्द ही एक पाेर्टल चालू किया जायेगा, जाे चार महीने तक खुला रहेगा. हालांकि इसमें वही कंपनियां आवेदन कर सकेंगी, वाहन विनिर्माण में जिनका कम से कम 10,000 कराेड़ की बिक्री का रिकाॅर्ड है और जाे अचल संपत्ति निवेश में न्यूनतम 3,000 कराेड़ रखती हैं. इस याेजना के तहत भारतीय और विदेशी, दाेनाें तरह की कंपनियां आवेदन कर सकेंगी. सरकार के अनुसार, यह नयी ईवी नीति ‘मेक इन इंडिया’ पहल का समर्थन करेगी और ऑटाेमाेबाइल विनिर्माण में भारत की वैश्विक स्थिति काे मजबूत बनाने में मदद करेगी. ईवी नीति की घाेषणा करते हुए सरकार ने यह भी संकेत दिया है कि अमेरिकी ऑटाेमाेबाइल कंपनी टेस्ला भारत में अपनी काराें का विनिर्माण करने में रुचि नहीं रखती.
दरअसल पिछले काफी समय से इस पर बहस चल रही थी कि अमेरिकी कंपनी टेस्ला भारत में इलेक्ट्रिक काराें का निर्माण करेगी भी या नहीं. टेस्ला दरअसल अपनी काराें पर भारत में आयात शुल्क में कमी के लिए पैरवी कर रही थी. उसका तर्क यह था कि चूंकि वह अपनी इलेक्ट्रिक काराें काे भारतीय बाजाराें में फिलहाल परखना चाहती है, इसलिए उसके द्वारा आयात शुल्क में छूट पर विचार किया जाना चाहिए. जबकि अमेरिकी कंपनी के इस ढुलमुल रवैये से भारत में विनिर्माण सुविधाएं शुरू करने के उसके वास्तविक इरादे पर संदेह पैदा हाे रहा था.सच बात ताे यह है कि अमेरिकी कंपनी टेस्ला और चीनी कंपनी बीवाईडी आदि हमारी सरकार की ईवी नीति के प्रति बहुत ठंडा रुख अपनाये हुए है.
चीन की कंपनी बीवाईडी का भारत में निवेश के प्रति ठंडा रुख इसलिए भी है, क्याेंकि हमारी सरकार सुरक्षा कारणाें से चीनी कंपनियाें काे भारत में प्रवेश देने की इच्छुक नहीं है. माैजूदा स्थिति काे देखते हुए, जब पाकिस्तान से संघर्ष की पृष्ठभूमि में चीनी उत्पादाें के बहिष्कार की देश में मांग उठ रही है, बीवाईडी जैसी कंपनियाें का सतर्क रुख स्वाभाविक है. हालांकि विशेषज्ञाें का मानना है कि कुछ बड़ी वैश्विक कंपनियां भारत में इलेक्ट्रिक कार उत्पादन हेतु निवेश कर सकती हैं. लेकिन चूंकि उन कंपनियाें की इलेक्ट्रिक कारें भारत में अपना खास बाजार अभी तक नहीं बना पायीं, ऐसे में सवाल यह है कि वे टाटा और महिंद्रा जैसी बड़ी ऑटाेमाेबाइल कंपनियाें के सामने कैसे टिक पायेंगी?
विदेशी कंपनियाें की अनिच्छा का एक और कारण यह है कि टाटा और महिंद्रा जैसी घरेलू कंपनियां विदेशी प्रतिस्पर्धियाें की तुलना में बहुत कम लागत पर इलेक्ट्रिक वाहन बना रही हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय निर्माता नाै लाख से 20 लाख रुपये प्रति यूनिट के बीच इलेक्ट्रिक कार बेचने में सक्षम हैं, जबकि टेस्ला 35 से 80 लाख रुपये की कीमत पर कार बेच रही है. देश में लग्जरी काराें का बाजार बहुत छाेटा है. इसलिए इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर उत्पादन की ज्यादा गुंजाइश नहीं है.इलेक्ट्रिक वाहनाें के प्रयाेग से वायु प्रदूषण काे बड़ी हद तक कम किया जा सकता है, क्याेंकि इनके उपयाेग से ग्रीनहाउस गैसाें का उत्सर्जन लगभग न के बराबर हाेता है.
कई बार यह भी कहा जाता है कि जिस बिजली का उपयाेग इलेक्ट्रिक वाहनाें की बैटरी चार्ज करने के लिए किया जाता है, यदि वह काेयले या गैस से बनती है ताे पराेक्ष रूप से इलेक्ट्रिक वाहन कुछ हद तक और भी ग्रीनहाउस गैसाें का उत्सर्जन करते हैं. ईवी वाहनाें के निर्माण के समय भी जरूर कुछ हद तक प्रदूषण फैलता है, पर यदि इनके कुल जीवन काे देखा जाये, ताे पेट्राेल, डीजल, गैस आदि से चलने वाले वाहनाें के मुकाबले इलेक्ट्रिक वाहनाें में कहीं कम ग्रीनहाउस गैसाें का उत्सर्जन हाेता है. इसीलिए घनी आबादी वाले शहराें में, जहां वाहनाें से आने वाला धुंआ बड़ी मात्रा में हवा काे प्रदूषित करता है, तब इलेक्ट्रिक वाहनाें का उपयाेग शहराें काे अधिक स्वस्थ और रहने याेग्य बनाने में सहायक हाे सकता है.
साथ ही, ईवी के उत्पादन के साथ यदि नवीकरणीय स्राेताें से भी बिजली का उत्पादन हाे, स्मार्ट ग्रिड का विकास हाे और स्वच्छ बैटरी उत्पादन और उनकी री-साइकलिंग की भी व्यवस्था भलीभांति की जाये, ताे शहराें, और खासकर दिल्ली जैसे महानगराें की हवा ठीक करने में इनका बड़ा याेगदान हाे सकता है. इसके साथ-साथ यह भी जरूरी है कि इलेक्ट्रिक वाहनाें के निर्माण में देश आत्मनिर्भर बने.मीडिया रिपाेर्टाें के अनुसार, भारत में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) बाजार 2021 में 1.45 अरब डाॅलर और 2022 में 3.21 अरब डाॅलर था.
-अश्विनी महाजन