खड़कवासला, 6 जून (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क) भविष्य में आनेवाली चूनौतियों के मद्देनजर, क्लाइमेट चेंज, ग्लेशियर द्वारा हो रहे परिणाम, कोस्टल रिजरवॉयर, नदी सुधार के बारे में संशोधन पर कार्य केंद्रीय जल एवं विद्युत अनुसंधान केंद्र (सीडब्लूपीआरएस) द्वारा शुरू किया है और सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों पर डैम जरूर बनाए जाएंगे, अभी लगभग पचास छोटे-बड़े डैम यानि बांधों का निर्माण कार्य उन तीन नदियों पर चल रहा है, जिनमें से कुछ का निर्माण पूरा हो चुका है और कुछ का निर्माण कार्य प्रगति पर है, सीडब्लूपीआरएस की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण है, यह जानकारी सीडब्लूपीआरएस के निदेशक डॉ. प्रभात चंद्रा ने शुक्रवार को दोपहर दो बजे आयोजित पत्रकार वार्ता में दी. सीडब्लूपीआरएस के निदेशक प्रभात चंद्रा ने कहा कि, सिंधु,झेलम और चिनाब नदियों पर डैम के निर्माण प्रोजेक्ट का काम अभी चल रहा है. इस बीच भारत में 5000 डैम हैं, इन में कुछ सौ साल पुराने हैं. उनकी सक्षमता और सुरक्षितता बढाने के उद्देश्य से भी सीडब्लूपीआरएस मेें काम चल रहा हैं. अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, सिंगापुर में भी बनाए गए डैम की प्रोजेक्ट रिपोर्ट सीडब्लूपीआरएस ने बनाई है. इस संस्था द्वारा डैम सेफ्टी रिव्यु भी लिया जाता है.तटीय जलाशय के लिए कल्पसार परियोजना पर भी काम चल रहा है. यह परियोजना तकरिबन 1,30,000 करोड की है. नदियों के पानी की गुणवत्ता की देखभाल के लिए भी हमने लक्ष्य केंद्रित किया है. मुला-मुठा नदियों की पानी की गुणवत्ता को लेकर पायलट प्रोजेक्ट बनाया गया है. डैम रिहॅबिलिटेशन सेंटर की यूनिट द्वारा भी सीडब्लूपीआरएस काम कर रहा हैं. इस बीच सीडब्लूपीआरएस ने राइटस् आर्गेनाइजेशन, आईआईटी मद्रास, सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के साथ जॉइंट रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए एमओयू किए हैं.यह जानकारी भी सीडब्लूपीआरएस के निदेशक डॉ. प्रभात चंद्रा ने दी. केंद्रीय जल एवं विद्युत अनुसंधान केंद्र, जल संसाधन एवं विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत एक प्रमुख जल अनुसंधान संस्थान है और यह 1916 से मुख्य रूप से जल संसाधन, विद्युत और तटीय क्षेत्रों में बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान के माध्यम से राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सेवाएं प्रदान कर देश की सेवा कर रहा है. डॉ. चंद्रा ने कहा कि इस केंद्र की सभी राष्ट्रीय स्तर की परियोजनाओं में मजबूत उपस्थिति है तथा यह पड़ोसी देशों में भी कई परियोजनाओं में सेवाएं दे रहा है. अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान में डैम बनाने के लिए सीडब्लूपीआरएस का योगदान रहा हैं. हाल ही में वधावन बंदरगाह के साथसाथ नवी मुंबई हवाई अड्डे के विकास में भी योगदान दिया है और सबसे बड़े तटीय जलाशय के लिए कल्पसर परियोजना पर भी काम चल रहा है. इसमें बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए परियोजनाओं में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल) जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करना भी शामिल है. सीडब्लूपीआरएम में 5 वर्ल्ड क्लास लैब बनाई गयी हैं.