पिता: स्नेह, समर्पण, संबल और जीवन को संवारनेवाला

परिवार में पिता की मौजूदगी पर समाजजनों ने व्यक्त की अपनी-अपनी राय

    08-Jun-2025
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पुणे, 7 जून (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)

पिता एक ऐसा शब्द जो सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक पूरे अस्तित्व का प्रतीक है. समाज में पिता की भूमिका सदैव अनुशासन, कर्तव्य और संरक्षण से जुड़ी रही है. वे परिवार की नींव होते हैं बाहर की दुनिया की चुनौतियों से जूझते हुए भीतर अपने परिवार के लिए सुरक्षा, स्थिरता और प्रेम का गढ़ रचते हैं. समय बदला, समाज बदला, और बदल गई पिता की छवि भी. अब वे केवल अनुशासन देने वाले नहीं, बल्कि बच्चों के मित्र, मार्गदर्शक और जीवन साथी की जिम्मेदारियों में सहभागी भी बन गए हैं.पिता की बदलती भूमिका, उनके भावनात्मक पहलु और उनके प्रति संतान के कर्तव्य पर ‌‘दै. आज का आनंद' के लिए प्रो. रेणु अग्रवाल ने समाज के वरिष्ठ जनों से बातचीत की. प्रस्तुत हैं उनकी बातचीत के प्रमुख अंश-  

प्रो. रेणु अग्रवाल (मो. 8830670849)
 
पिता: परिवार का स्तंभ और प्रेरणास्त्रोत

पिता परिवार का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ होते हैं. वे बच्चों के लिए केवल एक पालक नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, संरक्षक और प्रेरणा के स्रोत होते हैं. बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है.वे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार, अनुशासन और जिम्मेदार नागरिक बनने की शिक्षा देते हैं. साथ ही जीवन की कठिनाइयों से जूझने की ताकद और आत्मवेिशास भी प्रदान करते हैं.पिता अपने परिवार को भावनात्मक सहारा भी देते हैं. संकट के समय उनका धैर्य और समझदारी पूरे परिवार को संभालती है. ऐसे में पिता के योगदान को समझना और उनका सम्मान करना हर सदस्य का नैतिक कर्तव्य होना चाहिए.
-डॉ. स्वाति वाघ, मोशी, पुणे
 

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बदलते दौर में पिता की भूमिका भी बदली है

आज के पिता बीते युग के पिताओं की तुलना में अधिक सक्रिय और भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं. पहले उनकी भूमिका मुख्यतः आर्थिक रूप से परिवार का पोषण करने और धार्मिक नैतिकता सिखाने तक सीमित थी. बच्चों को उनसे संवाद करने के लिए अक्सर मां की सहायता लेनी पड़ती थी.परंतु समय के साथ परिस्थितियां बदलीं महिलाओं के कार्यक्षेत्र में आने से माता-पिता दोनों की भूमिकाएं परिवर्तित हुईं. स्त्री-पुरुष समानता अब सामाजिक वास्तविकता बन चुकी है.इस बदलाव ने पारिवारिक रिश्तों में भी संतुलन और संवाद को जन्म दिया है. आज के पिता अपने बच्चों के साथ समय बिताते हैं, उनकी बात सुनते हैं और निर्णयों में भागीदारी करते हैं. यह बदलाव रिश्तों को अधिक गहराई और समझदारी देता है, हालांकि इसके साथ कुछ नई चुनौतियां भी आती हैं.
-संगीता टिंबरेवाल, हैदराबाद
 

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पिता-बेटी का असाधारण रिश्ता होता है

पिता और बेटी का संबंध एक अत्यंत कोमल और शक्तिशाली बंधन होता है. इसमें भावनाएं, सुरक्षा और समर्थन की गहराई होती है. पिता का अटूट प्रेम और वेिशास बेटी के आत्म- सम्मान और आत्मवेिशास की नींव बनता है. वे अपनी बेटियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होते हैं. बेटियों को भी चाहिए कि वे अपने जीवन में अपने माता-पिता को निराश न करें, बल्कि उनके साथ एक संवादात्मक, स्नेहपूर्ण और आदरयुक्त संबंध बनाए रखें. सिर्फ आर्थिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी अपने माता-पिता को सहयोग देना हर संतान का कर्तव्य है. ऐसा करके वे स्वयं भी भविष्य में अपने बच्चों के सामने आदर्श बन सकते हैं.
-पूजा दिनेश अग्रवाल, औंध रोड
 

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सहभागिता और संवेदनशीलता की नई छवि

दो से तीन दशक पहले तक पिता की भूमिका घर में सीमित मानी जाती थी फीस भरना, डॉक्टर के पास ले जाना, और अनुशासन लागू करना. बच्चों से उनका संवाद न्यूनतम होता था. परंतु आज के पिता इस पारंपरिक छवि को तोड़ चुके हैं. वे बच्चों की परवरिश में न केवल सहभागी हैं बल्कि भावनात्मक रूप से भी उनके साथ जुड़े हुए हैं. महिलाओं की आत्मनिर्भरता, जीवनशैली में आधुनिकता, और समाज में बदलते मूल्यों के कारण अब पिता बच्चों के विकास में सहायक और भागीदार दोनों बन गए हैं.यह बदलाव बच्चों के समग्र विकास में सकारात्मक प्रभाव डाल रहा है और परिवार को एकजुट एवं मजबूत बना रहा है.
- बबीता राजेश अग्रवाल, अग्रवाल डेरी, रविवार पेठ
 

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मित्रवत पिता, यह बदलाव का उजला पहलू

परिवार में हर सदस्य की विशेष भूमिका होती है, लेकिन पिता जैसा कोई नहीं. पिता वह होते हैं जो अपनी पूरी जीवन भर की पूंजी और समय परिवार पर हंसते-हंसते न्यौछावर कर देते हैं.पुराने समय में बच्चों को पिता से बात करने में संकोच होता था. लेकिन अब समय बदल चुका है. अब पिता अपने बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करते हैं जिससे पारिवारिक संवाद मजबूत होता है.हालाँकि, इस मित्रता में एक सम्मानजनक रेखा बनी रहनी चाहिए जिससे यह संबंध स्नेह और अनुशासन का संतुलन बनाए रखे.
- पूनम कपिल अग्रवाल, कल्याणीनगर
 
 
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पिता हमेशा मेरे ज्ञान का जरिया रहे हैं


मेरे दिल में मेरे पिता के लिए एक खास जगह है क्योंकि वह मेरे लिए हमेशा से ही ताकत और ज्ञान का जरिया रहे हैं. मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता कि उन्होंने मेरे जीवन पर क्या प्रभाव डाला है. वह मेरे लिए सब कुछ थे लेकिन अफसोस वह अब इस दुनिया में नहीं रहे. मैं भी हमेशा एक अच्छा पिता बनने की कोशिश में लगा रहता हूं. मेरा बेटा शायद दुनिया का सबसे अच्छा बेटा है क्योंकि वह हमेशा से ही मेरी बातों को समझकर उसे फॉलो करने की कोशिश में लगा रहता है. वैसे तो दुनिया के हर बच्चों के लिए पिता महत्वपूर्ण है, लेकिन कभी-कभी बच्चे यह नहीं समझ पाते कि उनके पिता ने उनके लिए क्या किया है. मैं उन सब से यही कहना चाहूंगा कि समय रहते ही पिता का महत्व समझें और उन्हें मान-सम्मान के साथ समझने की कोशिश करें.
-डॉ. विजय निकम, कात्रज, पुणे  
 
 
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