मैं अभी एक छाेटे से गांव में गया. उस गांव में छाेटी सी मैंने एक दुकान देखी. वह दुकान लाेहे की कुछ कुर्सियां वगैरह बनाती है. लेकिन बाेर्ड उस पर लगा हुआ है: इंटरनेशनल स्टील काॅरपाेरेशन, अंतर्राष्ट्रीय स्टील काॅरपाेरेशन.एक गांव में, पनागर का एक कवि इकट्ठा हाे जाए, लखनादाेन का एक कवि इकट्ठा हाे जाए, कालादेही का एक कवि इकट्ठा हाे जाए, और अखिल भारतीय कवि सम्मेलन शुरू हाे जाएगा. किसी काे खयाल ही नहीं आता कि शब्द का काेई अर्थ हाेता है. शब्द का काेई प्रयाेजन हाेता है. एक अंग्रेज यात्री भारत से वापस लाैटा. और उसने अपनी डायरी में लिखा है कि भारत में शब्दाें काे काेई सीरियसली नहीं लेता है.इसलिए भारतीय शब्दाें का काेई बहुत अर्थ नहीं लेना चाहिए.मैं अभी उसकी डायरी पढ़ रहा था, मैं दंग हुआ! उसने यह उल्लेख किया है कि भारतीय शब्दाें का काेई अर्थ नहीं है. क्योंकि किन्हीं भी शब्दाें का, किसी भी तरह उपयाेग किया जाता है. काेई शब्दाें काे बहुत गंभीरता से उपयाेग नहीं करता है.
उसने लिखा है कि मैं ऋषिकेश गया और ऋषिकेश में मैंने सुना कि वहां एक याेग फाॅरेस्ट यूनिवर्सिटी है. एक याेग विश्वविद्यालय है, ताे मैंने साेचा कि हजाराें विद्यार्थी उस याेग विश्वविद्यालय में पढ़ते हाेंगे.जैसे ऑ्नसफाेर्ड में पढ़ते हैं बारह हजार विद्यार्थी. ऐसा काेई विश्वविद्यालयहाेगा, ताे मैं दर्शन करने गया. एक छाेटे से मकान पर तख्ता लगा हुआ है और लिखा हुआ है याेग फाॅरेस्ट यूनिवर्सिटी, याेग विश्वविद्यालय. भीतर जाकर मैंने पूछा? वहां काेई भी नहीं है, सिर्फ एक आदमी रहता है. और उस आदमी ने कहा कि अभी ताे काेई विद्यार्थी नहीं है, कभी-कभी काेई याेग सीखने आ जाता है. ताे यह विश्वविद्यालय कैसे हाे गया? लेकिन हमें खयाल ही नहीं आता. हम अपने अहंकार की घाेषणाएं किसी भी भांति करते चले जाते हैं. इसी तरह की ये भी घाेषणा है कि सारे जहां से अच्छा, हिन्दाेस्तां हमारा. काैन कहेगा यह? न हमारे पास अच्छे वस्त्र हैं, न हमारे पास अच्छा भाेजन है, न हमारे पास स्वस्थ शरीर है, न हमारे पास उम्र है, आयु है, न हमारे पास रहने के मकान हैं, न हमारे पास काम है, न हमारे पास उत्पादन के साधन हैं, न हमारे पास आत्मा है, न हमारे पास बुद्धि का विकास है.
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फर भी हम दुनिया में सबसे अच्छा अपने काे कहे चले जाते हैं? ये झूठ बंद हाेने चाहिए. हमें जानना चाहिए कि हम क्या हैं? और कहां हैं? माना कि असलियत बहुत दुखद है. यह भी माना कि उसे स्वीकार करने में भी मन काे पीड़ा हाेती है. लेकिन घाव काे देखना अच्छा है, बजाय ढांक लेने के. बीमारी काे पहचानना अच्छा है, बजाय भुला देने के . क्याेंकि भुलाने से और ढांक लेने से काेई घाव कभी भी समाप्त नहीं हाेता है. जानने से, पहचानने से उसका इलाज भी इस बात काे समझ लेना बहुत ही जरूरी है कि आज हमसे दीन-हीन पृथ्वी पर और काेई भी नहीं है. और इसका कारण यह नहीं है कि हमारा देश दीन-हीन हाेने काे मजबूर है. इसका कुल कारण इतना है कि देश काे दीन-हीन बनाने में, हम सारे लाेग सहयाेगी है. अन्यथा देश महान भी हाे सकता है, समृद्ध भी हाे सकता है, शक्तिशाली भी हाे सकता है.लेकिन हमें खयाल ही नहीं पैदा हाेता, इस बात का.हमें यह स्मरण ही नहीं आता. हमारी समझ ही कहीं जैसे भटक गई है हजाराें वर्ष से. और हमें पहचान में भी यह बात नहीं रह गई हैकि इस देश काे साैभाग्यशाली बनाया है ताे कविताएं करके साैभाग्यशाली नहीं बनाया जा सकता, न ऊंचे गुणगान से साैभाग्यशाली बनाया जा सकता है.