पेट्राेल-डीजल में एथेनाॅल ब्लेंडिग की महत्वाकांक्षी याेजना

    12-Jul-2025
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भारत का सतत आर्थिक विकास ऊर्जा के इस्तेमाल में वृद्धि के बगैर संभव नहीं है. अगले दाे दशकाें तक ऊर्जा इस्तेमाल की वृद्धि दर कमाेबेश वही रहेगी, जाे हमारी आर्थिक वृद्धि दर की रहेगी. हमें घर-परिवाराें, फैक्ट्रियाें और कार्यालयाें के लिए अधिक बिजली की, ताे परिवहन क्षेत्र में अधिक ऊर्जा की जरूरत है. देश में बिजली का तीन-चाैथाई उत्पादन काेयले से हाेता है, जबकि शेष उत्पादन साैर, पवन, जल, परमाणु और बायाेमास जैसे नवीकरणीय या अक्षत ऊर्जा स्राेताें से हाेता है. कुल बिजली उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 50 फीसदी के आस-पास पहुंच चुकी है. भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा काेयला भंडार है, इसके बावजूद बिजली उत्पादन के लिए काेयले का आयात करना पड़ता है, जिसके लिए देश काे सालाना 20 अरब डाॅलर या उससे अधिक खर्च करना पड़ता है.
 
कच्चे तेल के इस्तेमाल के लिए भी हम आयात पर निर्भर हैं. कुल इस्तेमाल हाेने वाले कच्चे तेल का 90 प्रतिशत आयात किया जाता है. पिछले साल हमारा कच्चा तेल आयात 24.2 कराेड़ टन रहा. इसके लिए हमें 125 से 150 अरब डाॅलर खर्च करने पड़े. कच्चे तेल के बढ़े हुए दामाें के कारण हमारे विदेशी मुद्रा भंडार पर भी बाेझ बढ़ता है. हालांकि अच्छी बात यह है कि देश से पेट्राेल और डीजल का निर्यात कच्चे तेल के आयात की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है. पिछले साल पेट्राेल और डीजल का कुल निर्यात न सिर्फ 6.5 कराेड़ टन रहा, बल्कि इसमें मुनाफा भी ज्यादा मिला. अगले कुछ वर्षाें में घरेलू स्तर पर कच्चे तेल शाेधन की क्षमता 20 फीसदी बढ़कर 31 कराेड़ टन हाे जायेगी. तेल शाेधन की इस क्षमता में विस्तार घरेलू जरूरत में हाे रही वृद्धि से तेजी है.
 
यानी देश से पेट्राेल, डीजल का ज्यादा निर्यात हाेगा और आय बढ़ेगी. ब्राउनफील्ड (पहले से स्थापित उद्याेगाें) के विस्तार और नयी रिफाइनरियाें के निर्माण से कच्चे तेल के शाेधन की क्षमता बढ़ी है. चूंकि पश्चिमी दुनिया में रिफाइनरियां बंद हाे रही हैं, ऐसे में भारत के लिए इस क्षेत्र में अवसर बढ़ रहे हैं. पश्चिमी महाराष्ट्र में प्रस्तावित एक नयी रिफाइनरी उत्पादन, राेजगार तथा निर्यात काे और गति देगी. उस सुखद भविष्य की कल्पना करें, जब भारत की रिफाइनरी क्षमता का 25 प्रतिशत इस्तेमाल निर्यात के लिए हाेगा. इससे विदेशी मुद्रा के देश से बाहर जाने में कमी आयेगी. हालांकि यह भी सच है कि दुनिया जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से पीछा छुड़ाने की काेशिश में है.आयात पर खर्च घटाने तथा कार्बन फुटप्रिंट में कमी लाने के लिए भारत पेट्राेल और डीजल में एथेनाॅल ब्लेंडिंग या मिश्रण की महत्वाकांक्षी याेजना पर काम कर रहा है.
 
एथेनाॅल गन्ने या म्नका, चावल आदि अनाज से तैयार किया जाता है. वर्ष 2013 से देश में शुरू हुए एथेनाॅल ब्लेंडिंग की याेजना में काफी प्रगति हुई है. तब एथेनाॅल लेंडिंग की दर 1.5 फीसदी थी, जबकि इस साल 20 प्रतिशत का लक्ष्य पूरा हाे चुका है. जहां तक मात्रा का सवाल है, ताे यह सालाना 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. एथेनाॅल उत्पादन की यह दर देश में पेट्राेल और डीजल की खपत में वृद्धि की दर से अधिक है. एथेनाॅल ब्लेंडिंग प्राेग्राम (ईबीपी) काे सरकारी सब्सिडी का लाभ मिलता है. इथेनाॅल उत्पादकाें काे कच्चा माल खरीदने के लिए सब्सिडी दी जाती है और उन्हें जीएसटी भी कम देना पड़ता है.
 
उनके लिए इंटरेस्ट सबवेंशन जैसी याेजना है, जिसके तहत एक निश्चित अवधि तक उन्हें ब्याज नहीं चुकाना पड़ता. उन्हें कर्ज भी कम ब्याज दर पर मुहैया कराये जाते हैं. एथेनाॅल उत्पादन तकनीक में भारत दुनिया का सिरमाैर बन चुका है. इबीपी टारगेट का मतलब है कि तेल विपणन कंपनियाें के लिए एक निश्चित लक्ष्य तक एथेनाॅल की खरीद अनिवार्य है. फिलहाल देश में एथेनाॅल उत्पादन की स्थापित क्षमता 1,810 कराेड़ लीटर है, जिनमें से 858 कराेड़ लीटर म्नका और चावल से, 816 कराेड़ लीटर गन्ने या शीरे से और 136 कराेड़ लीटर गन्ना और अनाज से तैयार किया जाता है.
 
एथेनाॅल ब्लेडिंग प्राेग्राम (ईबीपी) के चार महत्वाकांक्षी लक्ष्य हैं- कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम करना, विदेशी मुद्रा खर्च करने में कमी लाना, कार्बन उत्सर्जन में कमी करना, और कृषि उत्पादन में वृद्धि करना. एथेनाॅल ब्लेंडिंग के 20 फीसदी का लक्ष्य पूरा कर चुकने के बाद एबीपी इन चार लक्ष्याें की पूर्ति में कहां तक पहुंचा है, इसे आंकना भी आवश्यक है. पीआईबी (पत्र सूचना कार्यालय) के मुताबिक, 2024 तक कुल दस साल में कच्चे तेल के आयात में 1.8 कराेड़ टन की कमी आयी, जाे उस अवधि में कुल कच्चे तेल आयात का 0.8 प्रतिशत है. इस दाैरान विदेशी मुद्रा के माेर्चे पर करीब 10 अरब डाॅलर की बचत हुई. हालांकि धनराशि की यह बचत इस दाैरान खर्च की गई कुल विदेशी मुद्रा के 0.5 प्रतिशत से भी कम है. - अजित रानाड