पुणे, 12 जुलाई (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
आज की महिलाएं सिर्फ घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं हैं, वे समाज, परिवार और अर्थव्यवस्था के हर मोर्चे पर सक्रिय हैं. चाहे वह ऑफिस की जिम्मेदारियां हों या घर की देखभाल, महिलाएं दोनों में संतुलन बना रही हैं. लेकिन इस आत्मनिर्भरता की राह इतनी आसान नहीं है. पुरुषप्रधान सोच, दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ, और सामाजिक अपेक्षाएं ये सभी उन्हें रोज एक नई परीक्षा में डालते हैं. इस विषय पर दै. आज का आनंद के लिए प्रो.रेणु अग्रवाल ने समाज के विभिन्न वर्गों से बातचीत की तो विभिन्न वर्गों से आई आवाजें यह दर्शाती हैं कि महिलाएं सिर्फ अधिकार नहीं मांग रहीं, वे अपने अस्तित्व को दृढ़ता से जी रही हैं. वे यह नहीं कह रहीं कि उन्हें ऊपर रखा जाए वे सिर्फ बराबरी चाहती हैं, और उसके लिए डटकर खड़ी हैं. प्रस्तुत हैं उनकी बातचीत के प्रमुख अंश- प्रो. रेणु अग्रवाल (मो. 8830670849)
आत्मनिर्भर महिला ही सशक्त समाज की नींव कामकाजी महिलाएं
केवल परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत नहीं करतीं, बल्कि पूरे समाज को आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण की दिशा में ले जाती हैं. जब महिलाएं काम करती हैं, तो वे अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और मूल्य देने में भी सक्षम होती हैं. हालांकि, समाज को यह समझना चाहिए कि नौकरी करने वाली महिला को घर की जिम्मेदारियां भी निभानी होती हैं, और इसलिए उन्हें सहयोग व सराहना की जशरत है. कामकाजी महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना और लचीले कार्य-प्रणाली का निर्माण, समाज को अधिक प्रगतिशील बना सकता है.
-डॉ. गाडेकर बुद्धलजी पांडुरंग, राजर्षि शाहू महाविद्यालय, लातूर
शादी से पहले और बाद दोनों ही चरणों में नौकरी जरूरी
आज की महिला पढ़ी-लिखी है, सक्षम है और आत्मनिर्भर बनने की पूरी क्षमता रखती है. यदि उसे शादी के पहले और बाद में नौकरी करने की स्वतंत्रता दी जाए, तो वह न केवल अपना अस्तित्व बनाए रखती है बल्कि पूरे परिवार की सोच को भी ऊपर उठाती है. महिला के लिए कैरियर सिर्फ पैसा कमाने का माध्यम नहीं, बल्कि उसकी पहचान और आत्मसम्मान का जरिया है. अगर मातृत्व के कारण कुछ समय का विराम भी लेना पड़े, तो समाज और परिवार को उसे वापस लौटने के लिए प्रेरित करना चाहिए.
-डॉ. संध्या सोनकांबले, वी.एन.नाईक कॉलेज, नासिक
दोहरी भूमिका में भी दिखा रही हैं असाधारण संतुलन महिलाएं
आज घर और ऑफिस दोनों की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं, लेकिन उन्हें यह दोहरी भूमिका निभाते हुए अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है. समाज अभी भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को कमतर आंकता है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है. इसके बावजूद महिलाएं साहस के साथ आगे बढ़ रही हैं, हर चुनौती को स्वीकार कर रही हैं और सफलता की मिसाल बन रही हैं. उन्हें न केवल अवसर देने चाहिए, बल्कि उनकी मेहनत की सराहना भी की जानी चाहिए.
-निकिता जयदीप, औंध रोड
कैरियर और शादी एक-दूसरे के विरोधी नहीं
हर महिला की परिस्थितियां अलग होती हैं, इसलिए यह निर्णय भी उसी का होना चाहिए कि वह शादी के बाद काम करना चाहती है या नहीं. कैरियर को छोड़ना या उसे जारी रखना महिला का निजी चयन है. समाज को उसे हर विकल्प के लिए सहयोग देना चाहिए. परिवार, जीवन साथी और समाज के सहयोग से महिलाएं दोनों क्षेत्रों परिवार और कैरियर में संतुलन बना सकती हैं और खुशहाल जीवन जी सकती हैं.
-प्रतीक्षा घुले, भोसरी
महिलाओं को अवसर दो, समाज प्रगति करेगा इतिहास
यह स्पष्ट करता है कि जिस समाज ने महिलाओं को दबाया, वह स्वयं पीछे रह गया. महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का मौका देकर ही हम एक विकसित और समावेशी समाज की कल्पना कर सकते हैं. हालांकि आज भी कई महिलाओं को असमानता, शोषण और कार्यस्थल पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है. इन बाधाओं को दूर करना सामाजिक जिम्मेदारी है. जब एक महिला शिक्षित होती है, तो वह पूरे परिवार को शिक्षित बनाती है यही सामाजिक परिवर्तन की असली जड़ है.
- उमा राजेश अग्रवाल, एम्पायर इस्टेट, पिंपरी
मातृत्व और नौकरी दोनों में संतुलन जरूरी
मां बनना एक सुंदर अनुभव है, लेकिन यह महिलाओं के लिए चुनौतियों से भरा भी हो सकता है, खासकर तब जब वे कामकाजी हों. शरीर में होने वाले बदलावों, थकान और मानसिक तनाव के बावजूद वे ऑफिस और घर दोनों संभालती हैं, इसलिए परिवार का भावनात्मक और व्यवहारिक सहयोग अत्यंत आवश्यक है. साथ ही, कार्यस्थलों पर मातृत्व को समझते हुए सुविधाएं प्रदान करना एक जिम्मेदार व्यवस्था की पहचान होगी.
-प्राची चनशेट्टी, धानोरी, पुणे