असली कला झुकने की, झुके हुओं में ही परमात्मा झांकता है!

    16-Jul-2025
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Osho 
 
जिसकी गली में, जिसके आसपास, जिसके सान्निध्य में, स्वर्ग की तुम्हें पहली दा थाेड़ी सी झलक मिले, एक क्षण काे सही, एक क्षण काे पर्दा हटे वही सदगुरू! जिसके पास यह घटना घट जाए, वहीं झुक जाना. िफर िफक्र मत करना कि वह हिंदू है कि मुसलमान कि जैन कि ईसाई. िफर िफक्र मत करना. चूकना मत ऐसा अवसर. असली सवाल ताे झुकने की कला है; किसके पास झुके, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना झुके.ऐसी घटनाएं हैं इतिहास में कि कभी-कभी काेई व्यक्ति ऐसे व्यक्ति के पास झुक गया, जिसकाे अभी खुद भी नहीं मिला था; लेकिन उसका झुकाव इतना परिपूर्ण था कि गुरु काे नहीं मिला था, लेकिन शिष्य काे मिल गया. झुकने की वजह से मिल गया. और ऐसा भी हुआ है कि बड़े से बड़े सदगुरू के पास लाेग रहे, अपने अहंकार से भरे हुए, बुद्ध के पास रहे हैं और क्राइस्ट के पास रहे हैं और नानक के पास रहे और कबीर के पास रहे और अपनी अकड़ से भरे रहे और कुछ भी न मिला.
 
ताे कभी-कभी ऐसा भी हुआ है कि वृक्षाें के सामने झुक गए आदमी काे मिल गया है, पत्थराें के सामने झुक गये आदमी काे मिल गया हैऔर बुद्धाें के पास काेई बैठा रहा और नहीं झुका, ताे नहीं मिला. इसलिए एक बात खयाल में ले लेना: सार की बात है झुकना.गुरु ताे केवल एक निमित्त मात्र है, उसके बहाने झुक जाना. उसके बहाने झुकने में आसानी हाेगी. झुकने के लिए जाे भी बहाना मिल जाए, चूकना ही मत. समझदार का यही काम है. जहां झुकने का बहाना मिल जाए झुक जाना. और अगर तुम झुकने के लिए बहाना खाेजाे ताे अनंत बहाने हैं. किसी खिलखिलाते बच्चे काे देख कर झुक जाना, क्याेंकि सब खिलखिलाहट उसकी है. किसी खिले हुए ूल काे देख कर झुक जाना, क्याेंकि जब भी कहीं कुछ खिलता है वही खिलता है, उसके अतिरिक्त काेई है ही नहीं. सूरज के सामने झुक जाना, क्याेंकि सब राेशनी उसकी है.
 
इस देश में इसीलिए ताे सूरज भी देवता हाे गया, चांद भी देवता हाे गया, बादल के भी देवता हाे गए.बिजली चमकी ताे उसका भी देवता हाे गया. इसके पीछे बड़ा राज है. राज है : हमने झुकने के काेई निमित्त नहीं छाेड़े. आकाश में बिजली चमकी, हमने वह बहाना भी नछाेड़ा; हमने घुटने टेक दिए जमीन पर; हम अपनी प्रार्थना में लीन हाे गए. बिजली चमक रही थी. भाैतिकवादी दृष्टि का आदमी कहेगा : क्या पागलपन कर रहे हाे, बिजली बिजली है, इसके सामने क्या झुक रहे हाे? मैं एक घर में मेहमान था एक ग्रामीण घर में. अब ताे बिजली आ गयी उस गांव में. बिजली जली, अब घर की बिजली है, खुद ही ग्रामीण ने जलायी और खुद ही सिर झुकाकर नमस्कार किया. मेरे साथ एक मित्र बैठे थे पढ़े-लिखे हैं, डाक्टर हैं.
 
उन्हाेंने कहा : यह क्या पागलपन है? अब ताे बिजली हमारे हाथ में है. अब ताे यह काेई इंद्र का धनुष नहीं है. अब ताे यह काेई इंद्र के द्वारा लायी गयी चीज नहीं है. यह ताे हमारे हाथ में है, हमारे इंजीनियर ला रहे हैं. और तू खुद अभी बटन दबाकर इसकाे जलाया है.
वह ग्रामीण ताे चुप रह गया. उसके पास उत्तर नहीं था. लेकिन मैंने उन डाक्टर काे कहा कि उसके पास भला उत्तर न हाे, लेकिन उसकी बात में राज है और तुम्हारी बात में राज नहीं है. और तुम्हारी बात बड़ी तर्कपूर्ण मालूम पड़ती है. यह सवाल ही नहीं है कि बिजली कहां से आयी. कुल सवाल इतना है कि झुकने का काेई बहाना मिले ताे चूकना मत. जिंदगी जितनी झुकने में लग जाए उतना शुभ है, क्याेंकि उतनी ही प्रार्थना पैदा हाेती है. और जितने तुम झुकते हाे उतना ही परमात्मा तुम में झांकने लगता है! झुके हुओं में ही झांकता है!