बिहार में मतदाता सूची का कठाेर सत्यापन क्यों जरूरी है?

    16-Jul-2025
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बिहार विधानसभा चुनाव के पहले मतदाता सूची के सत्यापन और पुनरीक्षण पर मचे सियासी बवाल की धमक अब सुप्रीम काेर्ट तक पहुंच गई है. निर्वाचन आयाेग के 24 जून के आदेश काे माैलिक अधिकाराें का हनन बताते हुए उसे रद्द करने के लिए याचिका दायर हुई है. ममता बनर्जी ने इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से भी ज्यादा खतरनाक बताते हुए आराेप लगाया है कि अगले साल पश्चिम बंगाल में हाेने वाले विधानसभा चुनाव इस अभियान का असली लक्ष्य है.गाैरतलब है कि चुनाव आयाेग की यह कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद-326, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और निर्वाचन पंजीकरण नियमावली, 1960 के नियमाें के अनुरूप हाे रही है. वित्तीय धाेखाधड़ी राेकने के लिए बैंक खाताें और लाॅकर्स का नियमित केवाईसी, साइबर फ्राॅड राेकने के लिए माेबाइल नंबराें का सत्यापन, अपराध राेकने के लिए किरायेदाराें की जांच और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में घाेटालाें काे राेकने के लिए डुप्लीकेट राशनकार्ड काे रद्द करने की कार्रवाई का काेई विराेध नहीं हाेता.
महाराष्ट्र में 40 लाख मतदाता बढ़ने पर चल रहे विवाद के बीच चुनाव आयाेग ने बिहार के बाद सभी राज्याें में मतदाता सूची की गड़बड़ियाें काे ठीक करने का फैसला लिया है. इसलिए संविधान की 75वीं वर्षगांठ पर मतदाता सूची शुद्धिकरण का विशेष अभियान सभी राज्याें में सफलतापूर्वक चले, ताे 2029 के लाेकसभा चुनावाें के पहले पूरे देश में मतदाता सूची दुरुस्त हाे जाएगी.
आजादी के बाद मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण अब तक 9 बार हाे चुका है और आखिरी बार विशेष पुनरीक्षण 2003 में हुआ था. चुनाव आयाेग के अनुसार, 22 साल पहले पुनरीक्षण की प्रक्रिया एक महीने में पूरी हुई थी. याचिका के अनुसार, कराेड़ाें लाेगाें के नाम मतदाता सूची से कट सकते हैं, लेकिन 7.89 कराेड़ में से लगभग 4.96 कराेड़ का नाम 2003 की मतदाता सूची में शामिल था, उन्हें गणना फाॅर्म के साथ सिर्फ 2003 की मतदाता सूची में अपने नाम का विवरण बीएलओ काे देना हाेगा.
बकाया तीन कराेड़ मतदाताओं में, जिनके माता-पिता का नाम 2003 के मतदाता सूची में है, उनके लिए भी आसान प्रकिया है.
उसके बाद बचे मतदाताओं काे गणना फाॅर्म के साथ काेई दस्तावेज नहीं देना है, लेकिन 11 मान्य दस्तावेजाें में से एक कागज देना हाेगा. इनमें सरकारी नाैकरी या पेंशन, पासपाेर्ट, मैट्रिक प्रमाणपत्र, निवास, वन अधिकार, जाति, पारिवारिक रजिस्टर, भूमि या मकान के स्वामित्व आदि के प्रमाणपत्र और दस्तावेज शामिल हैं.समस्या की असली जड़ काे समझने के लिए साल-2022 में हुए जातीय सर्वे के साथ राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे और भारत मानव विकास सर्वे की रिपाेर्ट के नवीनतम आंकड़ाें काे समझना जरूरी है. उनके अनुसार जन्म प्रमाणपत्र 2.8 फीसदी, पासपाेर्ट 2.4 फीसदी, मैट्रिक प्रमाणपत्र 45 फीसदी, जाति प्रमाणपत्र 16 फीसदी और सरकारी नाैकरी के प्रमाणपत्र सिर्फ 1.57 फीसदी लाेगाें के पास हैं.
जन्म-प्रमाणपत्र के पंजीकरण के लिए साल-1969 में संसद ने कानून बनाया था, लेकिन बिहार में सिर्फ एक-चाैथाई बच्चाें का ही जन्म के बाद पंजीकरण हाे रहा है. 2011 के सामाजिक- आर्थिक सर्वे की रिपाेर्ट के अनुसार, ग्रामीण इलाकाें के 1.78 कराेड़ परिवाराें में से 65.58 फीसदी लाेगाें के पास भू-स्वामित्व नहीं है.इसलिए 11 दस्तावेजाें के साथ आधारकार्ड, पैनकार्ड, राशनकार्ड, मनरेगा, जाॅब कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस काे मान्यता देने की मांग हाे रही है. लेकिन दस्तावेजाें में हाे रहे फर्जीवाड़े की वजह से उन्हें नागरिकता की विधिक मान्यता मिलना मुश्किल है. इसकी वजह से मतदाताओं काे समस्या झेलने के साथ चुनाव आयाेग काे भी अनुचित आलाेचना का सामना करना पड़ रहा है. दस्तावेजाें की कमी की वजह से आधार या राशनकार्ड काे मान्यता देना संविधान के साथ छल और लाेकतंत्र के साथ धाेखा हाेगा. खाद्य मंत्रालय की नवंबर, 2024 की रिपाेर्ट के अनुसार, 80 कराेड़ लाभार्थियाें में से लगभग 5.8 कराेड़ के राशनकार्ड काे फर्जीवाड़े की वजह से रद्द किया गया था.
जन्मतिथि या जन्मस्थान के सत्यापन के बगैर जारी आधारकार्ड नागरिकता का दस्तावेज नहीं है. मतदाता सूची काे आधारकार्ड से जाेड़ने का विराेध हाे रहा है, ताे फिर आधार कार्ड काे नागरिकता के दस्तावेज के ताैर पर शामिल करने की मांग तर्कसंगत नहीं है. गाैरतलब है कि संविधान के अनुसार, मतदाता सूची में नाम भारतीय नागरिकता का सबूत है, इस नाते इसकी कठाेर पड़ताल जरूरी है. जिन मतदाताओं का नाम निधन के बाद भी मतदाता सूची में शामिल है, उनका नाम मतदाता सूची से हटना ही चाहिए.
जाे लाेग बिहार से बाहर निवास करते हैं और उनका नाम दूसरे राज्य की मतदाता सूची में शामिल है, उनका नाम भी बिहार की मतदाता सूची से हटना चाहिए.सत्यापन प्रक्रिया में विदेशी लाेगाें की पहचान हाेने से राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत हाेगी. सत्यापन की इस प्रक्रिया में पार्टियाें से जुड़े 1.56 लाख बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) भी शामिल रहेंगे. नियमाें के तहत प्रत्येक बीएलए राेजाना मतदाता सत्यापन के 50 आवेदन प्रस्तुत कर सकता है.अगर सभी पार्टियाें से जुड़े बीएलए लाेकतंत्र के शुद्धिकरण के इस प्रयास में सहयाेग करें, ताे राेजाना 75 लाख आवेदन जमा हाेने पर यह प्रक्रिया 11 दिन में पूरी हाे सकती है.
- विराग गुप्त