तमिल की राजनीति में अब एक नया सितारा भी उतरा

    17-Jul-2025
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तमिलनाडु की सियासत में एक और फिल्मी सितारा उभर रहा है, ‘थलापति विजय’. ्नया वह राजनीति में सफल हाेंगे और अपने पूर्ववर्तियाें-एमजी रामचंद्रन और जे जयललिता की तरह मुख्यमंत्री बनेंगे या फिर ‘म्नकल तिलगाम’ शिवाजी गणेशन व सुपरस्टार रजनीकांत जैसे दिग्गजाें की तरह पिछड़ जाएंगे? पिछले हफ्ते विजय ने अपनी नई पार्टी तमिलगा वेट्री कषगम की ओर से खुद काे 2026 के विधानसभा चुनावाें के लिए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घाेषित किया. उन्हाेंने यह भी स्पष्ट किया कि वह तमिलनाडु की राजनीति के दाे ध्रुवाें-द्रमुक और अन्नाद्रमुक में से किसी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. इन दाेनाें पार्टियाें के साथ समान दूरी बनाए रखने का उनका इरादा निस्संदेह अपेक्षित था, पर जाे बात नई थी, वह थी-मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में अकेले आगे बढ़ने का फैसला.
 
यह 2026 के चुनाव में अपनी हैसियत जांचने, 2031 में सिंहासन के प्रमुख दावेदार के रूप में खुद काे पेश करने और सूबे की सियासत में लंबी दाैड़ का खिलाड़ी बनने के उनके इरादे का संकेत देता है.हालांकि, विजय काे शायद यह एहसास है कि उनकी लाेकप्रियता उन्हें वाेट ताे दिला सकती है, पर द्रमुक व अन्नाद्रमुक वाले गठबंधनाें काे हराने व राज्य की राजनीति में नंबर एक बनने के लिए पर्याप्त नहीं हाे सकेगी. ऐसा इसलिए, क्योंकि तमिल राजनीति में दाेनाें द्रविड़ पार्टियां अच्छी तरह से स्थापित हैं और उनकी जड़ें काफी गहरी हैं.दाेनाें काडर आधारित दलाें के पास समर्थकाें का एक बड़ा नेटवर्क है. जाे बूथ स्तर की समितियाें तक फैले हुए हैं.फिर, बीते कुछ वर्षाें में राज्य की राजनीति दाे-ध्रुवीय हाे गई है.
 
जिसमें ये दाेनाें दल-एक-दूसरे से भिड़ रहे हैं और तीसरे के लिए बहुत कम जगह छाेड़ी है. बहरहाल, समय की कसाैटी पर द्रमुक गठबंधन खरा उतरा है और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की अगुवाई वाले माैजूदा गठबंधन ने विधानसभा व संसदीय चुनावाें में सफल प्रदर्शन किए हैं. हालांकि, घटक दलाें ने मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व का मसला उठाया है, मगर वे द्रमुक काे शायद ही छाेड़ सकेंगे, क्योंकि भाजपा के साथ वे दूसरे गठबंधन का हिस्सा नहीं बनना चाहेंगे. ऐसा इसलिए, क्योंकि कुछ अन्य बाताें के अलावा अहम यह भी है कि राज्य में करीब 10 प्रतिशत अल्पसंख्यक वाेट हैं, जिसमें मुस्लिम व ईसाई शामिल हैं.विजय 51 साल के हैं.
 
उनके लिए स्टालिन के बेटे उदयनिधि के नेतृत्व वाले द्रमुक नेताओं की अगली पीढ़ी से मुकाबला करना आसान हाे सकता है, जाे लगभग उन्हीं की उम्र के हैैं और फिल्म स्टार भी हैं, लेकिन उन्हाेंने उनकी तरह प्रशंसक नहीं कमाए हैं. विजय की टीवीके पार्टी बमुश्किल एक साल पुरानी है और उन्हें अपनी पार्टी काे जमीन पर खड़ा करना हाेगा.उनकाे एक राजनेता के ताैर पर अपने विचाराें काे भी धार देनी हाेंगी. अब तक उन्हाेंने अपनी विचारधारा काे द्रविड़वाद और तमिल उप-राष्ट्रवाद के मिश्रण के रूप में पेश किया है, मगर राज्य काे परेशान करने वाले कई मुद्दाें पर अपने विचार स्पष्ट नहीं किए हैं. वह कभी भी लाेकप्रिय आंदाेलन का हिस्सा नहीं रहे या अपने तीखराजनीतिक रूख के लिए नहीं जाने जाते हैं वह द्रमुक काे अपना ‘राजनीतिक दुश्मन’ और भाजपा काे ‘वैचारिक दुश्मन’ बताकर खुद काे राजनीतिक विकल्प के रूप में स्थापित करने की काेशिश कर रहे हैं.
 
मगर अन्नाद्रमुक व उसके नेताओं पर कथित नरम रूख रखना संभवत: तटस्थ लाेगाें काे अपनी ओर आकर्षित करने की उनकी नीति हाे सकती है या अगर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनती है, ताे समझाैते के लिए वह दरवाजा खुला रखना चाहते हैं.
मगर तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में हमेशा स्पष्ट फैसला ही आता है और मतदाता दाेनाें द्रविड़ पार्टियाें में से ही किसी का चुनाव करते रहे हैं. हालांकि, 2006 में द्रमुक ने ‘अल्पमत की सरकार’ चलाई थी, जाे राज्य बनने के बाद पहला माैका था, क्योंकि पहली बार चुनावाें में किसी काे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. मगर तब मुख्यमंत्री करुणानिधि सहयाेगियाें के समर्थन के बावजूद अपना कार्यकाल पूरा न कर सके थे.
 
विजय संभवत: फिल्म इंडस्ट्री के अपने पूर्ववर्तियाें की गल्तियाें से सबक ले रहे हैं. सुपरस्टार रजनीकांत भाजपा के बहुत करीब आ गए थे, लेकिन अंत-अंत तक वह अपना मन नहीं बना सके और स्वास्थ्य कारणाें का हवाला देकर राजनीति से बाहर निकल आए. कमल हासन ने एक नई मध्यमार्गी धारा बनाने की काेशिश जरूर की, पर जब यह कारगर नहीं हुआ, ताे राज्यसभा में जाने के लिए वह द्रमुक के साथ जुड़ गए. अभिनेता विजयकांत एकमात्र ऐसे सितारे हैं, जाे राज्य की राजनीति में कुछ हद तक अपनी छाप छाेड़ सके. विजयकांत ने 2006 में डीएमडीके के बैनर तले अकेले सभी सीटाें पर अपनी किस्मत आजमाई थी.उन्हें 8.38 फीसदी मत जरूर मिले, पर वह सिर्फ एक सीट जीत सके. अगले चुनाव में उन्हाेंने जयललिता के साथ गठबंधन किया और 28 सीटें जीतीं. उनकी डीएमडीके राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई.
- एस. श्रीनिवासन, वरिष्ठ पत्रकार